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Shikha kaushik's Blog (34)

मैंने गलत को गलत कहा

ना कोई सगा रहा,

जिस दिन से होकर बेधड़क

मैंने गलत को गलत कहा!



तोहमतें लगने लगी,

धमकियां मिलने लगी,

हां मेरे किरदार पर भी

ऊंगलियां उठने लगी,

कातिलों के सामने भी

सिर नहीं मेरा झुका!

मैंने गलत को गलत कहा!



चापलूसों से घिरे

झाड़ पर वो चढ़ गये,

इतना गुरूर था उन्हें

कि वो खुदा ही बन गये,

झूठी तारीफें न सुन

हो गये मुझसे ख़फा!

मैंने गलत को गलत कहा!



मेरी सब बेबाकियों की

दी गई ज़ालिम सज़ा,

फांसी… Continue

Added by shikha kaushik on May 12, 2017 at 5:40pm — 15 Comments

गीत -''ये तो मोहब्बत नहीं !

तेरी ज़िद है तू ही सही ;

मेरी अहमियत कुछ नहीं ,

बहुत बातें तुमने कही ;

मेरी रह गयी अनकही ,

ये तो मोहब्बत नहीं !

ये तो मोहब्बत नहीं !!

.......................................

हुए हो जो मुझ पे फ़िदा ;

भायी है मेरी अदा ,

रही हुस्न पर ही नज़र ;

दिल की सुनी ना सदा ,

तुम्हारी नज़र घूरती ;

मेरे ज़िस्म पर आ टिकी !

ये तो मोहब्बत नहीं !

ये तो मोहब्बत नहीं !!

..................................

रूहानी हो ये सिलसिला ;

ना इसमें हवस को मिला…

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Added by shikha kaushik on August 9, 2016 at 9:27pm — 3 Comments

''तुझको तेरी नज़रों में गिराने की है कोशिश !''

दिल को आज पत्थर बनाने की है कोशिश !

ज़ज़्बात आज मेरे दबाने की है कोशिश !

.........................................

इल्ज़ाम नहीं तुझ पर तू सख्त दिल ही था ,

नरमाई मेरे दिल की मिटाने की है कोशिश !

........................................................

दरियादिली से मेरी उसको है शिकायत ,

आँखों में आंसू मेरे लाने की है कोशिश !

........................................................

हैं ज़ख्म दिए गहरे लफ़्ज़ों की कटारों से ,

दामन पे मेरे दाग लगाने… Continue

Added by shikha kaushik on February 21, 2016 at 12:33pm — 4 Comments

मैं नहीं लिखता कोई मुझसे लिखाता है !

मैं नहीं लिखता ;

कोई मुझसे लिखाता है !

कौन है जो भाव बन ;

उर में समाता है !

....................................

कौंध जाती बुद्धि- नभ में

विचार -श्रृंखला दामिनी ,

तब रची जाती है कोई

रम्य-रचना कामिनी ,

प्रेरणा बन कर कोई

ये सब कराता है !

मैं नहीं लिखता ;

कोई मुझसे लिखता है !

.........................................................

जब कलम धागा बनी ;

शब्द-मोती को पिरोती ,

कैसे भाव व्यक्त हो ?

स्वयं ही शब्द…

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Added by shikha kaushik on June 1, 2015 at 11:00pm — 11 Comments

फिर से जन्म लेकर आऊंगा !

हुए न लक्ष्य पूर्ण किन्तु

मृत्यु द्वार आ गयी ,

देखकर मृत्यु को हाय !

ज़िंदगी घबरा गयी ,

हूँ नहीं विचलित मगर मैं ,

मृत्यु से टकराउँगा !

लक्ष्य पूरे करने फिर से

जन्म लेकर आऊंगा !

.....................................

छोड़ दूंगा प्राण पर

प्रण नहीं तोड़ूँगा मैं ,

अपनी लक्ष्य-प्राप्ति से

मुंह नहीं मोड़ूँगा मैं ,

है विवशता देह की

त्याग दूंगा मैं अभी ,

पर नहीं झुक पाउँगा

मृत्यु के आगे कभी ,

मैं पुनः नई देह…

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Added by shikha kaushik on May 27, 2015 at 12:00pm — 12 Comments

'' कविता.. कविता सी लगे ''

कैसे लिखूं कि कविता ;

एक कविता सी लगे ,

बहते हुए भावों की ;

एक सरिता सी लगे !



चंचल किशोरी सम जो ;

खिलखिलाए खुलकर ,

बांध ले ह्रदय को ;

नयनों के तीर चलकर ,

ऐसी रचूँ कि कुमकुम सी

मांग में सजे !

कैसे लिखूं कि कविता ;

एक कविता सी लगे !



हो मर्म भरी ऐसी ;

जो चीर दे उरों को ,

एक खलबली मचा दे ;

पिघला दे पत्थरों को ,

निर्मल ह्रदय जो कर दे ;

वो सुर लिए सधे !

कैसे लिखूं कि कविता ;

एक कविता सी लगे…

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Added by shikha kaushik on January 10, 2015 at 9:00pm — 11 Comments

'मेरी कविता से मुझे एक नयी पहचान मिले !'

हूँ कवि , मन में मेरे नित यही अरमान पले !

मेरी कविता से मुझे एक नयी पहचान मिले !

...........................................................

कवि हूँ कल्पना को मैं साकार कर देता ,

घुमड़ते उर-गगन में नित सृजन-अम्बुद घने ,

रचूँ कुछ ऐसा यशस्वी 'नूतन' अद्भुत ,

मिले आनंद उसे जो भी इसे पढ़े-सुने ,

कभी नयनों को करे नम कभी मुस्कान खिले !

मेरी कविता से मुझे एक नयी पहचान मिले !

...........................................................

नहीं रच सकता कोई…

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Added by shikha kaushik on November 15, 2014 at 10:30pm — 7 Comments

'हौले हौले बह समीर मेरा लल्ला सोता है '

'हौले हौले बह समीर मेरा लल्ला सोता है '







हौले हौले बह समीर मेरा लल्ला सोता है ,

मीठी निंदिया के अर्णव में खुद को डुबोता है .

हौले हौले बह समीर मेरा लल्ला सोता है !



मखमल सा कोमल है लल्ला नाम है इसका राम ,

मैं कौशल्या वारी जाऊं सुत मेरा भगवान ,

ऐसा सुत पाकर हर्षित मेरा मन होता है !

हौले हौले बह समीर मेरा लल्ला सोता है !



मुख की शोभा देख राम की चन्द्र भी है शर्माता ,

मारे शर्म के हाय ! घटा में जाकर है छिप जाता ,

फिर… Continue

Added by shikha kaushik on April 19, 2013 at 11:09pm — 5 Comments

ये भरत अभागा पापी है प्रभु से वियोग जो सहता है !

हे लक्ष्मण तू बड़भागा है श्री राम शरण में रहता है ,

ये भरत अभागा पापी है प्रभु से वियोग जो सहता है !

 

प्रभु इच्छा से ही संभव है प्रभु सेवा का अवसर मिलना ,

हैं पुण्य प्रताप तेरे लक्ष्मण प्रभु सेवा अमृत फल चखना ,

मेरा उर व्यथित होकर के क्षण क्षण ये मुझसे कहता है !

ये भरत अभागा पापी है प्रभु से…

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Added by shikha kaushik on April 17, 2013 at 10:00pm — 5 Comments

ढक दिया जाता है नकाब से चेहरा !

 Portrait of young beautiful happy indian bride with bright makeup and golden jewelry - stock photo Close-up portrait of the female face in blue sari. Vertical photo - stock photo

 

सजा औरत को देने में मज़ा  है  तेरा  ,

क़हर ढहाना, ज़फा करना जूनून है तेरा !

दर्द औरत का बयां हो न जाये चेहरे से ,

ढक दिया जाता है नकाब से  चेहरा  !

बहक न जाये औरत सुनकर बगावतों की खबर ,

उसे बचपन से बनाया जाता है बहरा !

करे न पार औरत हरगिज़ हया की चौखट ,

उम्रभर देता है मुस्तैद होकर मर्द पहरा !

मर्द की दुनिया में औरत होना है गुनाह ,

ज़ुल्म का सिलसिला आज तक नहीं ठहरा…

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Added by shikha kaushik on March 31, 2013 at 9:02pm — 9 Comments

औरत के पास तो सिर्फ बदन होता है

Muslim_man : Muslim Arabic couple inside the modern mosque Stock Photo stock photo : Young brunette beauty or bride, behind a white veil

मर्द बोला हर एक फन मर्द में ही होता है ,

औरत के पास तो सिर्फ बदन होता है .



फ़िज़ूल बातों में वक़्त ये करती जाया ,

मर्द की बात में कितना वजन होता है !



हम हैं मालिक हमारा दर्ज़ा है उससे ऊँचा ,

मगर द्गैल को ये कब सहन होता है ?



रहो नकाब में तुम आबरू हमारी हो ,

बेपर्दगी से बेहतर तो कफ़न होता है .



है औरत बस फबन मर्द के घर की 'नूतन'

राज़ औरत के साथ ये भी दफ़न होता है…

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Added by shikha kaushik on November 27, 2012 at 1:30pm — 9 Comments

परिवार की इज्ज़त -लघु कथा

'स्नेहा....स्नेहा ....' भैय्या  की कड़क आवाज़ सुन स्नेहा रसोई से सीधे उनके कमरे में पहुंची .स्नेहा से चार साल बड़े आदित्य  की आँखें  छत  पर घूमते पंखें पर थी और हाथ में एक चिट्ठी थी .स्नेहा के वहां पहुँचते ही आदित्य ने घूरते हुए कहा -''ये क्या है ?' स्नेहा समझ गयी मयंक की चिट्ठी भैय्या के हाथ लग गयी है .स्नेहा ज़मीन की ओर देखते हुए बोली -'भैय्या मयंक बहुत अच्छा ....'' वाक्य पूरा कर भी न पायी थी  कि   आदित्य ने  जोरदार तमाचा उसके गाल पर जड़ दिया और स्नेहा चीख पड़ी ''…

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Added by shikha kaushik on November 24, 2012 at 10:30pm — 7 Comments

शौहर की मैं गुलाम हूँ बहुत खूब बहुत खूब

 stock photo : Portrait of a cute young woman Saudi Arabian stock photo : Beautiful brunette portrait with traditionl costume. Indian style

 

शौहर की मैं गुलाम हूँ  बहुत खूब बहुत खूब ,

दोयम दर्जे की इन्सान हूँ  बहुत खूब बहुत खूब .

 

कर  सकूं उनसे बहस बीवी को इतना हक कहाँ !

रखती बंद जुबान हूँ  बहुत खूब बहुत खूब !

 

उनकी नज़र में है यही औकात इस नाचीज़ की ,

तफरीह का मैं सामान…

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Added by shikha kaushik on November 23, 2012 at 12:30pm — 16 Comments

अपमानों के अंधड़ झेले ; छल तूफानों से टकराए

अपमानों के अंधड़ झेले ;

छल तूफानों से टकराए ,

कंटक पथ पर चले नग्न पग

तब हासिल हम कुछ कर पाए !



आरोपों की कड़ी धूप में

खड़े रहे हम नंगे सिर ,

लगी झुलसने आस त्वचा थी

किंचित न पर हम घबराये !



व्यंग्य-छुरी दिल को चुभती थी ;

चुप रहकर सह जाते थे ,

रो लेते थे सबसे छिपकर ;

सच्ची बात तुम्हे बतलाएं !



कई चेहरों से हटे मखौटे ;

मुश्किल वक्त में साथ जो छोड़ा ,

नए मिले कई हमें हितैषी

जो जीवन में खुशियाँ लाये… Continue

Added by shikha kaushik on November 21, 2012 at 11:19pm — 9 Comments

मुझे ऐसे न खामोश करें

 

 

आज मुंह खोलूंगी मुझे ऐसे न खामोश करें ,

मैं भी इन्सान हूँ मुझे ऐसे न खामोश करें !

तेरे हर जुल्म को रखा है छिपाकर दिल में ,

फट न जाये ये दिल कुछ तो आप होश करें !…

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Added by shikha kaushik on November 15, 2012 at 7:02pm — 3 Comments

'' हुज़ूर इस नाचीज़ की गुस्ताखी माफ़ हो ''

हुज़ूर इस नाचीज़ की गुस्ताखी माफ़ हो ,

आज मुंह खोलूँगी हर गुस्ताखी माफ़ हो !



दूँगी सबूत आपको पाकीज़गी का मैं ,

पर पहले करें साबित आप पाक़-साफ़ हो !



मुझ पर लगायें बंदिशें जितनी भी आप चाहें ,

खुद पर लगाये जाने के भी ना खिलाफ हो !



मुझको सिखाना इल्म लियाकत का शबोरोज़ ,

पर पहले याद इसका खुद अलिफ़-काफ़ हो !



खुद को खुदा बनना 'नूतन' का छोड़ दो ,

जल्द दूर आपकी जाबिर ये जाफ़ हो !

            …

Continue

Added by shikha kaushik on November 7, 2012 at 1:00pm — 5 Comments

वैदेही सोच रही मन में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते !!

वैदेही सोच रही मन में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते 

लव-कुश की बाल -लीलाओं का आनंद प्रभु संग में लेते .



जब प्रभु बुलाते लव -कुश को आओ पुत्रों समीप जरा ,

घुटने के बल चलकर जाते हर्षित हो जाता ह्रदय मेरा ,

फैलाकर बांहों का घेरा लव-कुश को गोद उठा लेते !

वैदेही सोच रही मन में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते !!



ले पकड़ प्रभु की ऊँगली जब लव-कुश चलते धीरे -धीरे ,

किलकारी दोनों…

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Added by shikha kaushik on November 3, 2012 at 11:30pm — 9 Comments

नादानों मैं हूँ ' भगत सिंह '- बस इतना कहने आया था !!!

कैप्शन जोड़ें

इससे शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता है .शहीद…

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Added by shikha kaushik on November 1, 2012 at 2:00pm — 4 Comments

सीते मुझे साकेत विस्मृत क्यों नहीं होता !

सीते मुझे साकेत विस्मृत क्यों नहीं होता !

सीते मुझे साकेत विस्मृत क्यों नहीं होता !

क्षण क्षण ह्रदय उसके लिए है क्यों मेरा रोता !
 
बिन तात के अनाथ हो गया मेरा साकेत ,
अब कौन सुख की नींद होगा वहां सोता…
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Added by shikha kaushik on October 29, 2012 at 10:30pm — 6 Comments

'' जो शहर के इश्क में दीवाने हो गए ''

कस्बाई सुकून उनकी किस्मत में है कहाँ !

जो शहर के इश्क में दीवाने हो गए .



कैसे बुज़ुर्ग दें उन औलादों को दुआ !

जो छोड़कर तन्हां बेगाने हो गए .



दोस्ती में पड़ गयी गहरी बहुत दरार ,

हम तो रहे वही ; वो जाने-माने हो गए .



देखते ही होती थी सब में दुआ सलाम ,

लियाकत गए सब भूल ;ये फसाने हो गए .



लिहाज के पर्दे फटे ; सब हो रहा नंगा…

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Added by shikha kaushik on October 27, 2012 at 10:30pm — 3 Comments

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