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''तुझको तेरी नज़रों में गिराने की है कोशिश !''

दिल को आज पत्थर बनाने की है कोशिश !
ज़ज़्बात आज मेरे दबाने की है कोशिश !
.........................................
इल्ज़ाम नहीं तुझ पर तू सख्त दिल ही था ,
नरमाई मेरे दिल की मिटाने की है कोशिश !
........................................................
दरियादिली से मेरी उसको है शिकायत ,
आँखों में आंसू मेरे लाने की है कोशिश !
........................................................
हैं ज़ख्म दिए गहरे लफ़्ज़ों की कटारों से ,
दामन पे मेरे दाग लगाने की है कोशिश !
..........................................................
सब कह रहे हैं 'नूतन' हम तुझसे बेहतर इन्सां ,
तुझको तेरी नज़रों में गिराने की है कोशिश !

["मौलिक व अप्रकाशित" ]

शिखा कौशिक 'नूतन'

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Comment by shikha kaushik on August 9, 2016 at 9:33pm

 adarniy kanta ji ,laxman ji v jayniyt ji -protsahan hetu hardik aabhar .

Comment by जयनित कुमार मेहता on February 23, 2016 at 10:01pm

बहुत अच्छी ग़ज़ल है आदरणीय शिखा कौशिक जी।

कृपया मंच के नियमानुसार रचना के ऊपर बह्र/मीटर लिख देतीं तो सुविधा होती।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 23, 2016 at 11:48am

बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है l हार्दिक बधाई l

Comment by kanta roy on February 23, 2016 at 10:02am
यह कोशिश बड़ी ही उम्दा है ।यह गजल बडी़ ही सुंदर है । शेर दर शेर लाजवाब बने है आपके । बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया शिखा कौशिक जी ।

कृपया ध्यान दे...

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