फ़रेबी रात …
छोडिये साहिब !
ये तो बेवक्त
बेवजह ही
ज़मीं खराब करते हैं
आप अपनी अंगुली के पोर
इनसे क्यूं खराब करते हैं
ज़माने के दर्द हैं
क्योँ अपनी रातें
हमारी तन्हाई पे खराब करते हैं
ज़माने की निगाह में
ये नमकीन पानी के अलावा
कुछ भी नहीं
रात की कहानी
ये भोर में गुनगुनायेंगे
आंसू हैं,निर्बल हैं
कुछ दूर तक
आरिजों पे फिसलकर
खुद-ब-खुद ही सूख जायेंगे
हमारे दर्द हैं
हमें ही उठा लेने दीजिये…
Added by Sushil Sarna on May 16, 2016 at 4:31pm — 6 Comments
ख्वाब-ऐ-बशर ...
आज फिर
किसी का चूल्हा
उदास ही
बिन जले सो गया।
आज फिर
सांझ के दामन पे
भूख लिख गया कोई।
आज फिर
पेट की आग
झूठी आशा की बर्फ से
ठंडी कर
सो गया कोई।
आज फिर
कटोरे से
सिक्कों की आवाज़
रूठी रही।
आज फिर
खारा जल
पकी दाढ़ी को
धोता रहा।
आज फिर
निराशा का कफ़न ओढ़े
बिन साँसों के
सो गया कोई।
आज फिर…
ContinueAdded by Sushil Sarna on May 12, 2016 at 2:47pm — 6 Comments
ज़िंदगी के फ्रेम में ....
यादें
आज पर भारी
बीते कल की बातें
वर्तमान को अतीत करती
कुछ गहरी कुछ हल्की
धुंधलके में खोई
वो बिछुड़ी मुलाकातें
हाँ ! यही तो हैं यादें
ये भीड़ में तन्हाई का
अहसास कराती हैं
आँखों से अश्कों की
बरसात कराती हैं
सफर की हर चुभन
याद दिलाती हैं
जब भी आती हैं
ये ज़ख़्म कुरेद जाती हैं
अहसासों के शानों पर
ये कहकहे लगाती हैं
ज़हन की तारीकियों में
ये अपना घर बनाती हैं…
Added by Sushil Sarna on May 10, 2016 at 3:54pm — 4 Comments
Added by Sushil Sarna on May 7, 2016 at 7:30pm — 4 Comments
अखियाँ ढूंढें अपना गाँव ...
दूर दूर तक
काली सड़कें
न पीपल न छाँव
अखियाँ ढूंढें अपना गाँव
नीला अम्बर
पड़ गया काला
अब धरा पे फैला धुंआ
अखियाँ ढूंढें अपना गाँव
कंक्ट्रीट के
जंगल फैले
अब दिखता नहीं कुआं
अखियाँ ढूंढें अपना गाँव
हल-बैल का
अब युग बीता
ट्रैक्टर हुआ जवां
अखियाँ ढूंढें अपना गाँव
सांझ के खेले
ढपली मेले
खो गए जाने कहाँ
अखियाँ ढूंढें अपना…
Added by Sushil Sarna on May 6, 2016 at 6:01pm — 6 Comments
ख़्वाबों के पैराहन से ....
कभी कभी ज़िंदगी
अपने फैसलों पर
खुद पशेमाँ हो जाती है
मुहब्बत के हसीं मंज़र
ग़मों की गर्द में छुप जाते हैं
थरथारते लबों पे
लफ्ज़ कसमसाते हैं
तल्खियां हर कदम राहों में
यादों के नश्तर चुभोती हैं
खबर ही नहीं होती
मौसम पलकों पे ही बदल जाते हैं
चार कदम के फासले
मीलों में बदल जाते हैं
हमदर्दियों के बोल
लावों में तब्दील हो जाते हैं
सांसें अजनबी बन जाती हैं
कोई अपना
कब चुपके से…
Added by Sushil Sarna on May 5, 2016 at 8:27pm — 4 Comments
तन्हा सफ़र ....
२ २ १ २ / २ १ २ २ /२ २ २ २ / २ १ २
तन्हा सफर और तेरी परछाईयाँ साथ हैं
तुमसे मिली संग मेरे तन्हाईयाँ साथ हैं !!१ !!//
अब तो हमें ज़िंदगी से नफरत सी हो ने लगी
यादें तुम्हारी और वही रुसवाईयाँ साथ हैं !!२!!//
भीगी हुई चांदनी में वो शोला सा इक बदन//
भीगे बदन की ज़हन में अँगड़ाइयाँ साथ हैं !!३!!//
लगने लगे मौसम सभी अब बेगाने से हमें
यादें वही और तेरी रुसवाईयाँ साथ हैं !!४!!//
लगने लगा है अब *हरीफ़…
ContinueAdded by Sushil Sarna on May 3, 2016 at 5:49pm — 6 Comments
जब से पिया गए परदेस ...
प्रेम हीन अब
इस जीवन में
कुछ भी नहीं है शेष
जब से पिया गए परदेस//
नयन घट
सब सूख गए
बिखरे घन से केश
जब से पिया गए परदेस//
दर्पण सूना
हुआ शृंगार से
सूना हिया का देस
जब से पिया गए परदेस//
लगे दंश से
बीते मधुपल
दीप जलें अशेष
जब से पिया गए परदेस//
बिरहन का तो
हर पल सूना
रहे अश्रु न शेष
जब से पिया गए…
Added by Sushil Sarna on May 2, 2016 at 4:54pm — 14 Comments
1. रोशनी ....
क्या ज़मीं
क्या आसमां
हर तरफ
चटख़ धूप है
सहर से सांझ तक
उजालों की बारिश है
बस, तुम आ जाओ
कि मेरी तारीकियों को
रोशनी मिले //
२. यकीन ....
चटख धूप में भी
अब्र चैन नहीं लेते
आधी सी धूप में
आधी सी बारिश है
जैसे अधूरी सी ज़िंदगी की
अधूरी से ख्वाहिश है
सबा भी बेसब्र नज़र आती है
लगता है कोई रूठा पल
मिलन को बेकरार है
शायद कोई वादा
मेरी तन्हाई में
आरज़ू-ऐ-शरर बन के…
Added by Sushil Sarna on April 28, 2016 at 2:27pm — 6 Comments
हौले हौले-(ग़ज़ल - एक प्रयास)
बहर -२२ २२ २२ २
हौले हौले रात चली
हौले हौले बात चली !!१!!
हौले हौले होंठ हिले
हौले से बरसात चली !!२!!
हौले हौले आँखों में
प्यासी प्यासी रात चली !!३!!
हौले हौले जीत हुई
आलिंगन की बात चली !!४!!
हौले हौले ख़्वाबों की
आँखों से बरसात चली !!५!!
हौले हौले आँखों से
जागी जागी रात चली !!६!!
हौले हौले वो महकी
जुगनू की बारात चली !!७!!
सुशील सरना…
Added by Sushil Sarna on April 27, 2016 at 4:40pm — 15 Comments
सुधि आँगन ....
याद आये वो बैन तुम्हारे
तृषित नयनों का सिंगार हुआ
संग समीर के
उलझी अलकें
स्मृति कलश से फिर
छलकी पलकें
याद आये वो अधर तुम्हारे
फिर मूक पल हरसिंगार हुआ
स्मृति मेघों की
निर्मम गर्जन
देह कम्पन्न का
करती अभिनन्दन
याद आये वो स्पर्श तुम्हारे
आलिंगन क्षण अंगार हुआ
जब देह से देह की
गंध मिली
तब स्वप्निल पवन
मकरंद चली
याद आये…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 26, 2016 at 9:41pm — 8 Comments
Added by Sushil Sarna on April 22, 2016 at 10:03pm — 11 Comments
ज़िंदगी डूब जाती है ....
ऐ बशर !
इतना ग़रूर अच्छा नहीं
ये दौलत का सुरूर अच्छा नहीं
साया तेरे करमों का
हर कदम तेरे साथ है
कुछ दूर तक दिन है
फिर लम्बी अंधेरी रात है
रातों में साये भी रूठ जाते हैं
दिन के करम
तमाम शब सताते हैं
शब की तारीकियों में
अहम के पैराहन
जिस्म से उतर जाते हैं
ज़न्नत और दोज़ख
सब सामने आ जाते हैं
बशर ख़ाके सुपुर्द हो जाता है
लाख चाहता है
फिर लौट नहीं पाता है
फिर न कोई रहबर होता…
Added by Sushil Sarna on April 19, 2016 at 9:48pm — 4 Comments
आईने तो आईने हैं ...
क्यूँ ,आखिर क्यूँ
आईनों से बात करते हो
ये करीबियां ये दूरियां
सब फ़िज़ूल हैं
कांच के टुकड़ों की तरह
टूटे हुए ज़ज़्बात
कब जुड़ पाते हैं
गर्द की आंधियां
ज़र्द पत्तों पर ही कहर ढाती हैं
बेज़ान जिस्मों पर
कब कोई तरस खाता है
बेमन से ही सही
हर कोई उसे ख़ाके सुपुर्द कर जाता है
कुछ भी तो हासिल न होगा
यूँ अपने अक्स से बात करके
हर सवाल मुंह चिढ़ाएगा
हर जवाब मुहं मोड़ जाएगा
आँखों का भीगापन…
Added by Sushil Sarna on April 12, 2016 at 9:49pm — 2 Comments
कुछ लम्हे ....
वो कुछ लम्हे
जो हमने मिलकर
अपनी झोली फैलाकर
ख़ुदा की हर चौखट पर
सर झुकाकर
मांगे थे //
वो कुछ लम्हे
जो हमारे ज़हन में
आज तक
इक दूसरे के वास्ते
वक्ते इज़हार के इंतज़ार में
ज़िंदा हैं //
वो कुछ लम्हे
जो हम दोनों ने
दो जिस्म इक जां
हो जाने के लिए मांगे थे
अब जब वो लम्हे
हमें नसीब हुए
तुम उनसे विमुख होने का सोच रही हो
अपनी ही आरज़ुओं का
अजन्मे ही गला घोंट…
Added by Sushil Sarna on April 12, 2016 at 2:01pm — 2 Comments
वही नर्म अहसास ....
वही नर्म अहसास
किसी सुर्ख शफ़क़ से
पलकों की खिड़की में
यादों की शरर बन
जाने कब
मेरी रूह में उतर गए//
वही नर्म अहसास
मेरी तन्हाईयों को
मुझसे लिपट
मेरी करवटों को
ख़ुशनुमा सुरों से सजा
मेरी हयात को
जीने की अदा दे गए//
वही नर्म अहसास
फिर किसी गुजरे लम्हे से निकल
दिल के करीब यूँ हंसे
मानो फ़िज़ाओं ने हौले से
अपनी पाज़ेब छनकाई हो
शोखियों में डूबी
जैसे कोई…
Added by Sushil Sarna on April 6, 2016 at 9:00pm — 2 Comments
पी लेने दो ... (एक प्रयास एक ग़ज़ल )
२२ २२ २२ २२
इक लम्हा तो जी लेने दो
अब जी भर के पी लेने दो !!१!!
एक कतरा है पैमाने में
खो के हस्ती पी लेने दो !!२!!
आये न कभी अब होश हमें
अब लब अपने सी लेने दो !!३!!
दम घुटता है अब यादों का
अब शब को भी जी लेने दो !!४!!
जाने कैसा तूफां है ये
हाँ मिट कर फिर जी लेने दो !!५!!
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on April 1, 2016 at 5:26pm — 10 Comments
बस मैं जानूं या तुम जानो ......
पीर पीर को क्या जाने
नैन विरह से अनजाने
वो दृग स्पर्श की अकथ कथा
बस मैं जानूं या तुम जानो .......
पल बीता कुछ उदास हुआ
रुष्ट श्वास से मधुमास हुआ
क्यूँ दृगजल से घन बरस पड़े
बस मैं जानूं या तुम जानो ....... .
तुम हर पल मेरे साथ थे
मेरी श्वास के विशवास थे
क्यूँ शेष बीच अवसाद रहे
बस मैं जानूं या तुम जानो…
Added by Sushil Sarna on March 31, 2016 at 5:00pm — 12 Comments
बेवफाई ....
एक जानवर
अपने मालिक को
इंसान समझने की
गलती कर बैठा
उसे अपना खुदा समझ बैठा
वक्त बेवक्त उसकी रक्षा करने को
अपना फर्ज समझ बैठा
उसके हर इशारे पर
जानवर होते हुए भी
खुद को न्योछावर कर बैठा
डाल दिये टुकड़े तो खा लिए
वरना खामोशी से
अपने पेट से समझोता कर बैठा
अपने दर्द को
अपने कर्मों की सजा समझ बैठा
जगता रहा वो रातों को
ताकि मालिक चैन से सो सके
इक जरा सी गलती ने
मालिक ने उसकी पीठ पर
जानवर का…
Added by Sushil Sarna on March 29, 2016 at 2:53pm — 2 Comments
कुछ गीत सुनाने हैं मुझको ......
कुछ गीत सुनाने हैं मुझको
कुछ मीत मनाने हैं मुझको
जो अब तक पूरे हो न सके
वो गीत बनाने हैं मुझको
कुछ गीत सुनाने हैं मुझको ....
कब मौसम जाने रूठ गया
कब शाख से पत्ता टूट गया
जो रिश्तों में हैं सिसक रहे
वो दर्द अपनाने हैं मुझको
कुछ गीत सुनाने हैं मुझको ....
क्यूँ नैन शयन में बोल उठे
क्यूँ सपन व्यर्थ में डोल उठे
अवगुंठन में तृषित हिया के
अंगार मिटाने …
Added by Sushil Sarna on March 26, 2016 at 6:22pm — 10 Comments
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