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ज़िंदगी के सागर से ....

ज़िंदगी के सागर से ....

मेरी आँखों के मुंडेरों पर
तुम आज भी
मेरे ख़्वाबों के
रूहे मुहब्बत का
पहला अहसास बने बैठे हो //

तुम्हारे साथ गुजरे लम्हे
मेरी तन्हाईयों के साथ
सरगोशियां करते हैं //

तमाम शब मेरा बदन
तुम्हारे लम्स की गिरफ़्त में
करवटें बदलता है //

बारिशों के मौसम में
रुख़सार पर गिरी ज़ुल्फ़ों के ख़म
अब तक किसी के इंतज़ार में उलझे
हवाओं से शिकायत करते हैं //

तुम्हारे अलम * में
गुजरता वक्त
मेरी उम्र के साये से
खिलवाड़ करता है //

मैं शाम के सूरज से
थोड़ी सी धूप चुरा लेती हूँ
तुम्हारे ख्यालों में
खुद को छुपा लेती हूँ
चराग़ बुझते हैं
मैं फिर जला देती हूँ
तेरे इंतज़ार में
अपनी नींदें गवां देती हूँ //

अब ये हिज़्र की रातें
तन्हा न कट पाएंगी
सन्नाटों के साहिलों पर
यादों की शबीहें *
मेरी चश्म को
नम कर जाएंगी
अब लौट भी आओ
कहीं ये सांसें
तुम्हारे इंतज़ार में
ज़मीदोज़ न हो जाएँ
ज़िंदगी के सागर से
हम रूठी हुई
कोइ मौज* न हो जाएँ

(अलम =ग़म ),(शबीहें =आकृतियां ),(मौज=लहर)

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on April 25, 2016 at 9:32pm
मुआफ़ी मांग कर मुझे शर्मिन्दा न करें ।
Comment by Sushil Sarna on April 25, 2016 at 8:19pm

आ.गिरिराज भंडारी जी रचना को आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार।  आपकी सूक्ष्म दृष्टि का मैं कायल हूँ।  ये त्रुटि मुझे ज्ञात तो गयी थी लेकिन पोस्ट होने के बाद। इसमें एडिट की सुविधा न  होने से ये दिक्कत आयी।  खैर आपका तहे दिल से शुक्रिया। ऐसे ही अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखें सर। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 25, 2016 at 6:48pm

आदरणीय सुशील भाई , सुन्दर भाव पूर्ण रचना हुई है , दिल से बधाइयाँ स्वीकार करें ।

मेरे ख़्वाबों के
रूहे मुहब्बत का
पहला अहसास बने बैठे हो //       मेरे  ख़्वाबों  की रूहे  -- होगा क्या सोचियेगा  मै शंकित हूँ  , क्योंकि रूह स्त्रीलिंग है ।

Comment by Sushil Sarna on April 25, 2016 at 6:44pm

आ. narendrasinh chauhan   जी आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on April 25, 2016 at 6:43pm

क्षमा आदरणीय टंकण त्रुटि के लिए क्षमा समर कबीर साहिब। अब तो ठीक है न सर। अनुज जान के क्षमा करें सर। अब इसकी पुनरावृति नहीं होगी। 

Comment by Samar kabeer on April 25, 2016 at 6:01pm
भाई एक निवेदन है मेरा नाम सही लिख दिया करें ।
Comment by narendrasinh chauhan on April 25, 2016 at 4:34pm

लाजवाब रचना 

Comment by Sushil Sarna on April 25, 2016 at 3:51pm

आदरणीय समीर कबीर साहिब सृजन पर आपकी ऊर्जावान  प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on April 25, 2016 at 3:49pm

आदरणीया कान्ता रॉय जी प्रस्तुति में निहित भावों को इतनी आत्मीयता देने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Samar kabeer on April 24, 2016 at 2:25pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,हमेशा की तरह लाजवाब करने वाली रचना लिझि है आपने,बधाई स्वीकार करें ।

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