For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ज़िंदगी के सागर से ....

ज़िंदगी के सागर से ....

मेरी आँखों के मुंडेरों पर
तुम आज भी
मेरे ख़्वाबों के
रूहे मुहब्बत का
पहला अहसास बने बैठे हो //

तुम्हारे साथ गुजरे लम्हे
मेरी तन्हाईयों के साथ
सरगोशियां करते हैं //

तमाम शब मेरा बदन
तुम्हारे लम्स की गिरफ़्त में
करवटें बदलता है //

बारिशों के मौसम में
रुख़सार पर गिरी ज़ुल्फ़ों के ख़म
अब तक किसी के इंतज़ार में उलझे
हवाओं से शिकायत करते हैं //

तुम्हारे अलम * में
गुजरता वक्त
मेरी उम्र के साये से
खिलवाड़ करता है //

मैं शाम के सूरज से
थोड़ी सी धूप चुरा लेती हूँ
तुम्हारे ख्यालों में
खुद को छुपा लेती हूँ
चराग़ बुझते हैं
मैं फिर जला देती हूँ
तेरे इंतज़ार में
अपनी नींदें गवां देती हूँ //

अब ये हिज़्र की रातें
तन्हा न कट पाएंगी
सन्नाटों के साहिलों पर
यादों की शबीहें *
मेरी चश्म को
नम कर जाएंगी
अब लौट भी आओ
कहीं ये सांसें
तुम्हारे इंतज़ार में
ज़मीदोज़ न हो जाएँ
ज़िंदगी के सागर से
हम रूठी हुई
कोइ मौज* न हो जाएँ

(अलम =ग़म ),(शबीहें =आकृतियां ),(मौज=लहर)

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 606

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on April 25, 2016 at 9:32pm
मुआफ़ी मांग कर मुझे शर्मिन्दा न करें ।
Comment by Sushil Sarna on April 25, 2016 at 8:19pm

आ.गिरिराज भंडारी जी रचना को आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार।  आपकी सूक्ष्म दृष्टि का मैं कायल हूँ।  ये त्रुटि मुझे ज्ञात तो गयी थी लेकिन पोस्ट होने के बाद। इसमें एडिट की सुविधा न  होने से ये दिक्कत आयी।  खैर आपका तहे दिल से शुक्रिया। ऐसे ही अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखें सर। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 25, 2016 at 6:48pm

आदरणीय सुशील भाई , सुन्दर भाव पूर्ण रचना हुई है , दिल से बधाइयाँ स्वीकार करें ।

मेरे ख़्वाबों के
रूहे मुहब्बत का
पहला अहसास बने बैठे हो //       मेरे  ख़्वाबों  की रूहे  -- होगा क्या सोचियेगा  मै शंकित हूँ  , क्योंकि रूह स्त्रीलिंग है ।

Comment by Sushil Sarna on April 25, 2016 at 6:44pm

आ. narendrasinh chauhan   जी आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on April 25, 2016 at 6:43pm

क्षमा आदरणीय टंकण त्रुटि के लिए क्षमा समर कबीर साहिब। अब तो ठीक है न सर। अनुज जान के क्षमा करें सर। अब इसकी पुनरावृति नहीं होगी। 

Comment by Samar kabeer on April 25, 2016 at 6:01pm
भाई एक निवेदन है मेरा नाम सही लिख दिया करें ।
Comment by narendrasinh chauhan on April 25, 2016 at 4:34pm

लाजवाब रचना 

Comment by Sushil Sarna on April 25, 2016 at 3:51pm

आदरणीय समीर कबीर साहिब सृजन पर आपकी ऊर्जावान  प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on April 25, 2016 at 3:49pm

आदरणीया कान्ता रॉय जी प्रस्तुति में निहित भावों को इतनी आत्मीयता देने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Samar kabeer on April 24, 2016 at 2:25pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,हमेशा की तरह लाजवाब करने वाली रचना लिझि है आपने,बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
6 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
19 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service