For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sushil Sarna's Blog (851)

सुधि आँगन ....

सुधि आँगन ....

याद  आये  वो   बैन   तुम्हारे

तृषित नयनों का सिंगार हुआ

संग समीर के

उलझी अलकें

स्मृति कलश से फिर

छलकी पलकें

याद  आये  वो  अधर तुम्हारे

फिर मूक पल हरसिंगार हुआ



स्मृति मेघों की

निर्मम गर्जन

देह कम्पन्न का

करती अभिनन्दन



याद आये वो स्पर्श तुम्हारे

आलिंगन क्षण अंगार हुआ



जब देह से देह की

गंध मिली

तब स्वप्निल पवन

मकरंद चली

याद आये…

Continue

Added by Sushil Sarna on April 26, 2016 at 9:41pm — 8 Comments

ज़िंदगी के सागर से ....

ज़िंदगी के सागर से ....



मेरी आँखों के मुंडेरों पर

तुम आज भी

मेरे ख़्वाबों के

रूहे मुहब्बत का

पहला अहसास बने बैठे हो //



तुम्हारे साथ गुजरे लम्हे

मेरी तन्हाईयों के साथ

सरगोशियां करते हैं //



तमाम शब मेरा बदन

तुम्हारे लम्स की गिरफ़्त में

करवटें बदलता है //



बारिशों के मौसम में

रुख़सार पर गिरी ज़ुल्फ़ों के ख़म

अब तक किसी के इंतज़ार में उलझे

हवाओं से शिकायत करते हैं //



तुम्हारे अलम * में

गुजरता… Continue

Added by Sushil Sarna on April 22, 2016 at 10:03pm — 11 Comments

ज़िंदगी डूब जाती है ....

ज़िंदगी डूब जाती है ....

ऐ बशर !

इतना ग़रूर अच्छा नहीं

ये दौलत का सुरूर अच्छा नहीं

साया तेरे करमों का

हर कदम तेरे साथ है

कुछ दूर तक दिन है

फिर लम्बी अंधेरी रात है

रातों में साये भी रूठ जाते हैं

दिन के करम

तमाम शब सताते हैं

शब की तारीकियों में

अहम के पैराहन

जिस्म से उतर जाते हैं

ज़न्नत और दोज़ख

सब सामने आ जाते हैं

बशर ख़ाके सुपुर्द हो जाता है

लाख चाहता है

फिर लौट नहीं पाता है

फिर न कोई रहबर होता…

Continue

Added by Sushil Sarna on April 19, 2016 at 9:48pm — 4 Comments

आईने तो आईने हैं ...

आईने तो आईने हैं ...

क्यूँ ,आखिर क्यूँ

आईनों से बात करते हो

ये करीबियां ये दूरियां

सब फ़िज़ूल हैं

कांच के टुकड़ों की तरह

टूटे हुए ज़ज़्बात

कब जुड़ पाते हैं

गर्द की आंधियां

ज़र्द पत्तों पर ही कहर ढाती हैं

बेज़ान जिस्मों पर

कब कोई तरस खाता है

बेमन से ही सही

हर कोई उसे ख़ाके सुपुर्द कर जाता है

कुछ भी तो हासिल न होगा

यूँ अपने अक्स से बात करके

हर सवाल मुंह चिढ़ाएगा

हर जवाब मुहं मोड़ जाएगा

आँखों का भीगापन…

Continue

Added by Sushil Sarna on April 12, 2016 at 9:49pm — 2 Comments

कुछ लम्हे ....

कुछ लम्हे ....

वो कुछ लम्हे

जो हमने मिलकर

अपनी झोली फैलाकर

ख़ुदा की हर चौखट पर

सर झुकाकर

मांगे थे //

वो कुछ लम्हे

जो हमारे ज़हन में

आज तक

इक दूसरे के वास्ते

वक्ते इज़हार के इंतज़ार में

ज़िंदा हैं //

वो कुछ लम्हे

जो हम दोनों ने

दो जिस्म इक जां

हो जाने के लिए मांगे थे

अब जब वो लम्हे

हमें नसीब हुए

तुम उनसे विमुख होने का सोच रही हो

अपनी ही आरज़ुओं का

अजन्मे ही गला घोंट…

Continue

Added by Sushil Sarna on April 12, 2016 at 2:01pm — 2 Comments

वही नर्म अहसास ....

वही नर्म अहसास ....

वही नर्म अहसास

किसी सुर्ख शफ़क़ से

पलकों की खिड़की में

यादों की शरर बन

जाने कब

मेरी रूह में उतर गए//

वही नर्म अहसास

मेरी तन्हाईयों को

मुझसे लिपट

मेरी करवटों को

ख़ुशनुमा सुरों से सजा

मेरी हयात को

जीने की अदा दे गए//

वही नर्म अहसास

फिर किसी गुजरे लम्हे से निकल

दिल के करीब यूँ हंसे

मानो फ़िज़ाओं ने हौले से

अपनी पाज़ेब छनकाई हो

शोखियों में डूबी

जैसे कोई…

Continue

Added by Sushil Sarna on April 6, 2016 at 9:00pm — 2 Comments

पी लेने दो ...

पी लेने दो ... (एक प्रयास एक ग़ज़ल )

२२ २२ २२ २२

इक लम्हा तो जी लेने दो
अब जी भर के पी लेने दो !!१!!

एक   कतरा  है पैमाने में
खो के  हस्ती  पी लेने दो !!२!!
आये न कभी अब होश हमें
अब लब अपने सी लेने दो !!३!!

दम घुटता है अब यादों का
अब शब को भी जी लेने दो !!४!!

जाने   कैसा   तूफां   है   ये 
हाँ मिट कर फिर जी लेने दो !!५!!

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on April 1, 2016 at 5:26pm — 10 Comments

बस मैं जानूं या तुम जानो ......

बस मैं जानूं या तुम जानो ......



पीर पीर   को    क्या    जाने

नैन   विरह   से      अनजाने

वो दृग स्पर्श की अकथ कथा

बस   मैं   जानूं या तुम जानो ....... 



पल बीता  कुछ  उदास  हुआ

रुष्ट श्वास से  मधुमास   हुआ

क्यूँ दृगजल से घन बरस पड़े

बस  मैं  जानूं  या  तुम जानो ....... .

तुम   हर   पल   मेरे साथ थे

मेरी   श्वास   के  विशवास थे

क्यूँ   शेष   बीच  अवसाद रहे

बस  मैं   जानूं  या तुम जानो…

Continue

Added by Sushil Sarna on March 31, 2016 at 5:00pm — 12 Comments

बेवफाई ....

बेवफाई ....

एक जानवर

अपने मालिक को

इंसान समझने की

गलती कर बैठा

उसे अपना खुदा समझ बैठा

वक्त बेवक्त उसकी रक्षा करने को

अपना फर्ज समझ बैठा

उसके हर इशारे पर

जानवर होते हुए भी

खुद को न्योछावर कर बैठा

डाल दिये टुकड़े तो खा लिए

वरना खामोशी से

अपने पेट से समझोता कर बैठा

अपने दर्द को

अपने कर्मों की सजा समझ बैठा

जगता रहा वो रातों को

ताकि मालिक चैन से सो सके

इक जरा सी गलती ने

मालिक ने उसकी पीठ पर

जानवर का…

Continue

Added by Sushil Sarna on March 29, 2016 at 2:53pm — 2 Comments

कुछ गीत सुनाने हैं मुझको .....

कुछ गीत सुनाने हैं मुझको ......

कुछ गीत सुनाने हैं मुझको 

कुछ मीत मनाने हैं मुझको

जो अब तक पूरे हो  न सके 

वो  गीत   बनाने हैं मुझको

कुछ गीत सुनाने हैं मुझको ....

कब मौसम जाने रूठ गया

कब शाख से पत्ता टूट गया

जो रिश्तों में हैं सिसक रहे

वो दर्द अपनाने हैं  मुझको

कुछ गीत सुनाने हैं मुझको ....

क्यूँ नैन शयन में  बोल उठे

क्यूँ सपन व्यर्थ में डोल उठे

अवगुंठन में तृषित हिया के

अंगार   मिटाने  …

Continue

Added by Sushil Sarna on March 26, 2016 at 6:22pm — 10 Comments

मन बहुत उदास है ...

मन बहुत उदास है ...

जाने क्यूँ आज

मन बहुत उदास है

वज़ह भी कोई ख़ास नहीं

फिर भी एक

अंजानी से उदासी ने

हृदय में पाँव पसार रखे हैं //

लगता है शायद

कुछ ऐसा रह गया

जो अपनी पूर्णता को

प्राप्त न कर सका हो //

या फिर कोई लम्हा

शब की चादर में

अधूरी ख्वाहिशों की उदासी के साथ

धीरे धीरे अंगड़ाई लेते लेते

जाग गया हो //

या फिर कोई याद

तन्हाईयों में रक्स करती

उदासी के घरौंदे में…

Continue

Added by Sushil Sarna on March 22, 2016 at 4:25pm — 4 Comments

संग तुम्हारे नाम के ......

संग तुम्हारे नाम के ......

इस लम्हा

जब शून्यता ने

मुझे अंगीकार कर लिया है //

मेरे ख्वाब

सूखे शज़र के ज़र्द पत्तों से

बिखर गए हैं 

कम से कम

मुझ पर इतना तो रहम कर दो

तुम अपनी याद का

इक चराग तो जलने दो//

इस लम्हा

जब मेरा वज़ूद

ख़ाक में मिलने से पहले

अंतिम साँसों से

जीने की जिद्दो ज़हद में उलझा है

अपने अस्तित्व की याद को

मेरे ज़हन में जी लेने दो//

इस लम्हा जब

मेरी तमाम हसरतें…

Continue

Added by Sushil Sarna on March 21, 2016 at 2:15pm — 4 Comments

कैनवास ...

कैनवास ...

मुझे बहुत खुशी हुई थी

जब हर शख़्श

तुम्हें सलाम कर रहा था

तुम्हारे हर रंग की कद्र हो रही थी

तुम वाहवाही के नशे में गुम थे //



भीड़ में तन्हा

मैं तुम्हारे चहरे को निहार रही थी

इतने चहरे लिए

न जाने लोग कैसे जी लेते हैं

खुद को ज़िंदा रखने के लिए

न जाने

कितनों की खुशियाँ पी लेते हैं //



तुम कैसे पुरुष हो

औरत चाहते हो पर

उसे समझ नहीं पाते

उसके अहसासों से खिलवाड़ करते हो

न जाने कौन से…

Continue

Added by Sushil Sarna on March 13, 2016 at 6:16pm — 12 Comments

अनाम रिश्ते......

अनाम रिश्ते......

 

मैंने कभी

उसके बारे में सोचा न था

न कभी

उसे ख्वाब में देखा था

उसके नाम से

मैं कभी आशना न थी

न कभी अपने दिलोदिमाग में

उसे पाने की तमन्ना का

कोई बीज बोया था

फिर भी न जाने क्यूँ 

सदा मुझे किसी साये के

करीब होने का अहसास होता था

शब की तारीकियों हों

या मेरी तन्हाईयाँ हों

मेरे हर लम्हे को

वो अपनी मौजूदगी के अहसास से

लबरेज़ करता था

उसके अहसास ने…

Continue

Added by Sushil Sarna on March 10, 2016 at 3:39pm — 7 Comments

मैंने सोचा न था ......

मैंने सोचा न था ......

मुझे गीत का नाम देकर

तुम बार बार

मुझे गुनगुनाओगे

सच ! ऐसा तो कभी

मैंने सोचा न था//

मेरे रक्ताभ अधरों पर

अपनी अनुभूति का

अनमोल स्पर्श छोड़ जाओगे

सच ! ऐसा तो कभी

मैंने सोचा न था//

मेरे अंतरंग पलों में

प्रेम घनों की

नन्ही बूंदों सा बरसता

तुम कोई राग छोड़ जाओगे

सच ! ऐसे तो कभी

मैंने सोचा न था//

कभी मेरी मूक व्यथा

शून्यता से मिल

उसके अंक में…

Continue

Added by Sushil Sarna on March 8, 2016 at 9:34pm — 14 Comments

इक उम्र जी जाती हूँ ....

इक उम्र जी जाती हूँ ....

उसके जाने के बाद मैं

कितनी बेख़बर सी हो गयी हूँ

नींदें सुहाती नहीं

यादें सुलाती नहीं

आईना बेगाना सा लगता है

अक्स भी अंजाना सा लगता है

लिबास बदलूं

तो किस के लिए

शाम-ओ-सहर उदासियों के

मंज़र कहर ढाते हैं

ज़िस्म पर लम्स के अहसास

कतरनों से सजे नज़र आते हैं

चलती हूँ तो न जाने

कितने लम्हे साथ चलते हैं

एक आहट के इंतज़ार में

काफिले अश्कों के पिघलते हैं

शब् तो अब भी होती है मगर

अब हर…

Continue

Added by Sushil Sarna on March 8, 2016 at 2:06pm — 14 Comments

मुस्कुरा भर देती हूँ .....

मुस्कुरा भर देती हूँ .....

कुछ तो है

तेरे मेरे मध्य

अव्यक्त सा //

शायद कोई शब्द

जो अभिव्यक्ति के लिए

अधरों पर छटपटा रहा हो //

या कोई पीछे छूटा पल

जो समय की आंधी में

अपने अहसासों को

बिखरने की वज़ह ढूंढ रहा हो //

या हृदय के अवगुंठन में

कोई उनींदी से चेतना

जो किसी के

स्नेह्पाश की प्रतीक्षा में

नयन दहलीज़ पर

अधलेटी सी बैठी हो //

क्या है आखिर

ये अव्यक्त और…

Continue

Added by Sushil Sarna on March 4, 2016 at 3:19pm — 10 Comments

दिल के अहसास :

मित्रो , आज दिनांक ०३. ०३. २०१६ को विवाह की ४०वीं वर्षगांठ के

अवसर पर अपने हमसफ़र को समर्पित दिल के अहसास :



मैं नहीं जानता

मेरे अलफ़ाज़

तेरे दिल की गहराईयों में

कब तक गूंजते हैं

मगर जब तेरी नज़र उठती है

मुझे अपने वुज़ूद का

अहसास होता है

जब तेरी पलक की नमी

मेरी पलक को छूती है

मुझे अपनी मुहब्बत का

अहसास होता है

जब तेरे सुर्ख लबों पे

मुस्कुराहट अंगड़ाई लेती है

मेरी धड़कनों को

तेरी करीबी का

अहसास होता है

जब…

Continue

Added by Sushil Sarna on March 3, 2016 at 12:36pm — 10 Comments

नयी क़बा ....

नयी क़बा ....

कितनी अजब होती है

वो प्रथम अभिसार की रात

पुष्पों से सेज सुरभित रहती है

पलकों में उनींदे ख्वाब रहते हैं

एक जिस्म

दो कबाओं में सिमटा

किसी अनजाने पल के इंतज़ार में

ख़ौफ़ज़दा होता है

न चाह कर भी

अपने हाथों से

कुवांरे ख़्वाबों की क़बा का

कत्ल करना पड़ता है

मुहब्बत के

रेशमी  अहसासों का नया पैराहन

खामोश वज़ूद को

एक नया नाम दे देता है

कुवारी क़बा

इक चुटकी भर सिन्दूर में लिपट…

Continue

Added by Sushil Sarna on February 27, 2016 at 8:00pm — No Comments

गूंगी गुड़िया ....



गूंगी गुड़िया ....

कितनी प्रसन्न दिख रही हो

सुनहरे बाल

छोटी सी फ्रॉक

छोटे छोटे पांवों में

लाल रंग की बैली

नटखट आँखें

नृत्य मुद्रा में फ़ैली दोनों बाहें

बिन बोले ही तुम

कितने सुंदर ढंग से

अपने भावों का

सम्प्रेषण कर रही हो

तुम पर

किसी मौसम का

कोई असर नहीं होता

सदैव मुस्कुराती हो

गुड़िया हो न !

शीशे की अलमारी में बंद रह के भी

सदा मुस्कुराती हो//

मैं भी बुल्कुल तुम्हारी तरह…

Continue

Added by Sushil Sarna on February 23, 2016 at 3:38pm — 2 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आ. संजय जी,/शाम को पुन: उपस्थित होऊंगा.. फिलहाल ख़त इस ग़ज़ल का काफ़िया नहीं बनेगा ... ते और तोय का…"
13 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"//चूँकि देवनागरी में लिखता हूँ, इसलिए नस्तालीक़ के नियमों की पाबंदी नहीं हो पाती है। उर्दू भाषा और…"
15 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और सुख़न नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। गिरह भी अच्छी लगी है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीया ऋचा जी, अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें।  6 सुझाव.... "तू मुझे दोस्त कहता है…"
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय संजय जी, //अगर जान जाने का डर बना रहे तो क्या ख़ाक़ बग़वत होगी? इस लिए, अब जब कि जान जाना…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय संजय शुक्ला जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"//'इश्क़ ऐन से लिखा जाता है तो  इसके साथ अलिफ़ वस्ल ग़लत है।//....सहमत।"
5 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय अमीर जी, अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें। "
5 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय अमित जी, बहुत धन्यवाद।  1 अगर जान जाने का डर बना रहे तो क्या ख़ाक़ बग़वत होगी? इस लिए,…"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय यूफोनिक अमित जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और सुख़न नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
5 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय अमीर जी, बहुत धन्यवाद। "
6 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service