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Mohammed Arif's Blog (84)

कविता-- लाजमी है अब मरना

हमें अब मरना होगा

अपने आदर्शों के साथ

गला घोंटना होगा

अपने ही सिद्धांतों का

सूली पर चढ़ाना होगा मान्यताओं को

इन सबका औचित्य समाप्त - सा हो गया है

सच की अँतड़ियाँ निकल आई है

काल के दर्पण पर कुछ भद्दे चेहरें

मुँह चिढ़ा रहे है खोखले मानव को

दिन सारे दहशत में झुलसते रहते हैं

दोपहर को लू लग गई है

कँपकँपी-सी लगी रहती है शाम को

रातें आतंकी के विस्फोट -सी लगती है

हमें अब मरना होगा अपने आंदोलनों के साथ

भूख हड़ताल और आमरण अनशन…

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Added by Mohammed Arif on February 25, 2018 at 8:00am — 5 Comments

कविता--फागुन

फागुन
अलसाई हुई भोर को
फागुनी दस्तक की
गंध ने महका दिया
मेरे अंदर भी
बीज अंकुरित होने लगे
तुम्हारे अहसासों के
शायद तुम भी
गुनगुना रही होगी
होली का गीत
प्रेम की मादल पर
कुछ पुरानी यादें भी
थाप दे रही होंगी
हृदय के आँगन में
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Mohammed Arif on February 20, 2018 at 12:30am — 10 Comments

कविता --पारदर्शिता



कितनी पारदर्शिता है

इस सदी में

किसानों की बर्बाद फसल का

तगड़ा मुआवज़ा देने की

सरकार खुलेआम घोषणा कर रही है

मगर मुआवज़ा

आत्महत्या में बदल रहा है

मीडिया सुबह की पहली किरण के साथ

दिखला रहा है

भूख-ग़रीबी , बेरोज़गारी , आँसू , सिसकी

मगर सरकार कहती है

हमने करोड़ों का बजट में

प्रावधान बढ़ा दिया है

आँकड़ों में

मृत्यु दर लगातार घट रही है

सरकारी अस्पतालों में

मौत सस्ती बिक रही है

हीरा और हवाला कारोबारी

करोड़ों की चपत लगा रहे…

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Added by Mohammed Arif on February 18, 2018 at 7:56am — 4 Comments

कविता--नए संस्करण

अब पैमाने

तय किए जा रहे हैं

राष्ट्रीयता के

ब्रेन मेपिंग और नार्को टेस्ट के ज़रिए

उगलवाया जाएगा राष्ट्रीयता का अमृत्व

भूल से स्वप्न में भी

गांधी का चश्मा मत देख लेना

चश्में सारे सरकार बाँटेगी

भूख बाँटने के काम में भी वह दक्ष हो गई है

जंतर-मंतर पर अनशन

भूख हड़ताल की पसलियाँ बाहर निकल आई है

संसद में भेड़िये घूस आए हैं

नोच डालना चाहते हैं संविधान की प्रतियों को

बहुत भूखे हैं

खाना चाहते हैं सारी संसदीय मर्यादा को

" रघुपति राघव राजा राम "…

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Added by Mohammed Arif on February 12, 2018 at 1:11am — 14 Comments

कविता--बहुत बेईमानी लगता है

आत्मा के

कल-कल छल-छल जल में

शब्दों की ध्वनियाँ तैरती है

देर तक गूँजती रहती है

तब बहुत बेईमानी लगता है

इस युग के मुहाने की छाती पर

नंगे पैर खड़े होकर चलना

समझौतों के ताबीज पहनना

मक्कारी का मंत्र जाप करना

रोज़ आत्मा का गला घोटना

खंडित-खंडित होकर

अखंडित समाधि बनना

बहुत बेईमानी लगता है

इस युग के रिश्तों में जीना

जहाँ रिश्तों में डाका पड़ा है

ख़ूनी हाथ अट्टहास करते हैं

अकेलेपन की साँसें थम गई है

रातरानी को लकवा हो गया है

गुलाब…

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Added by Mohammed Arif on February 6, 2018 at 9:08pm — 15 Comments

कविता -संघर्ष

हौसलों की बैसाखी से

हर मंज़िल को पार किया है

दया-सहानुभूति को

हरदम दर किनार किया है

जब-जब घिरे बादल विपत्ति के

बिजलियाँ चमकीं विचलन की

ख़ुद को मैंने धारदार किया है

बाधाओं को परास्त करता गया

बीज सफलता के बोता गया

भय के काँटों को लाचार किया है

गिरा नहीं , लड़खड़ाया नहीं

इरादा कभी मेरा डगमगाया नहीं

जीवन सुनामी को पार किया है

किया सदैव साहस का आलिंगन

धैर्य का उपवन सजाया है

संघर्षों का मैंने श्रृंगार किया है ।…

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Added by Mohammed Arif on February 1, 2018 at 8:30am — 9 Comments

देशभक्ति मुक्तक

शत्रु दल को धूल चटाई वो मेरा हिन्दुस्तान है ,
आज़ादी की धुन बजाई वो मेरा हिन्दुस्तान है ,
बलिदानियों की गाता हरदम शौर्य गाथा ,
कर्म की बजी शहनाई वो मेरा हिन्दुस्तान है ।
*********

बलिदानी रंग से सजा मेरा हिन्दुस्तान है ,
हरा-गुलाबी , केसरिया मेरा हिन्दुस्तान है ,
मेरा तो जीना मरना सबकुछ इसके साथ है
खुशी-उल्लास में डूबा मेरा हिन्दुस्तान है ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Mohammed Arif on January 25, 2018 at 3:53pm — 7 Comments

कविता- बसंत


हृदय की फुलवारी में
राग-बसंती छिड़ गया
अंग-प्रत्यंग प्रफुल्लित
आनंदित हो गया
चहुँदिश दिशा में
छा गया यौवन
लग गया बाग़ों में फिर से
सरसों , जूही , केतकी का मेला
चटखने लगी कमसिन कलियाँ
उन्हें भी प्रेम निमंत्रण मिलने लगा
मतवाले भँवरों का कारवाँ चला
देखो, कामदेव का जादू फिर चला ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Mohammed Arif on January 21, 2018 at 10:06am — 19 Comments

कटाक्षिकाएँ



(1) राष्ट्रीय पर्व पर

मिला किसी को

पद्म भूषण , पद्म विभूषण

तो किसी को मिला पद्म श्री

लेकिन जो थे सच्चे हक़दार

नहीं मिला उन्हें यह सम्मान

क्योंकि उनकी नहीं थी कोई

राजनैतिक पहचान । 

 

(2) जिन बच्चों को माँ-बाप ने

चलना -फिरना , उठना-बैठना

आदि का सलीका सिखाया

उन्हीं बच्चों ने बड़ा होकर

बुढ़ापे में वृद्धाश्रम पहुँचाया ।

 

(3) दुर्घटना और बीमारियाँ

बहुत सस्ती हो गईं हैं

इसीलिए तो-

बीमा किश्त महँगी…

Continue

Added by Mohammed Arif on January 14, 2018 at 7:00am — 12 Comments

दोहे--नव वर्षाभिनंदन

ख़ुशियों से हो ये भरा,नया हमारा साल ।
मेल जोल सबसे बढ़े, बदले सबकी चाल ।।

घर आँगन में हो ख़ुशी,चले हास-परिहास ।
पीड़ाओं की आँधियाँ, फटकें कभी न पास ।।

साल नया ख़ुश हाल हो,सब हों माला माल ।
जीवन में दुख का कभी,आये नहीं सवाल ।।

नये साल में हम करें,कोई अच्छा काम ।
युग -युग तक जपते रहें,लोग हमारा नाम ।।

माँगूँ रब से ये दुआ,रहें सभी आबाद ।
बीते दिन कोई यहाँ, करे न'आरिफ़' याद ।।

मौलिक एवं अप्रकाशित ।।

Added by Mohammed Arif on January 1, 2018 at 12:27am — 25 Comments

पर्यावरणीय कविता --"हिंसक"


हमने एक दुनिया उजाड़ दी
शेरों और नील गायों की
ख़रीद ली उनकी खाल
बारह सींगों के
सींगों से कर रहे हैं
घर की दीवारों का श्रृंगार
अब आदमखोर
शेरों को नहीं
इंसानों को कहना होगा बेहतर
हिंसक हरकतें सारी
चुरा ली है
शेरों से इंसानों ने
कितने ही लक्षण आ गए हैं
पशुओं वाले इंसानों में
ऐसे में लाजमी है
जंगलों का ख़त्म होना
शेरों का ख़त्म होना ।

मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Mohammed Arif on December 17, 2017 at 7:10am — 14 Comments

जाड़े के दोहे

तेवर देखे ठंड के , थर-थर काँपे गाँव ।
सभी तलाशे धूप को , सूनी लगती छाँव ।।

यार बढ़े हैं आज तो , ठंडक के वो भाव ।
बस्ती के हर मोड़ पर , सुलगे देख अलाव ।।

बदला मौसम ने ज़रा , देखो अपना रूप ।
कितनी प्यारी लग रही , जाड़े की ये धूप ।।

अदरक वाली चाय से , होती सबकी भोर ।
बच्चों का भी शाम से , थम जाता है शोर ।।

किट-किट करते दाँत हैं , काँप रहे हैं हाथ ।
गर्मी लाने के लिये , गर्म चाय का साथ ।।

मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Mohammed Arif on December 10, 2017 at 10:35pm — 16 Comments

कविता--उम्मीद की कुनकुनी धूप

लो फिर आ गई !

नए साल के स्वागत में

उम्मीद की कुनकुनी धूप

भरोसे की मुँडेर पर

आशा-आकांक्षा की परियाँ भी

धीरे-धीरे उतरेंगी धैर्य के आँगन में

नई सोच का बाज़ीगर

सजाएगा नये-नये सपनें

जमा है जो तुम्हारे पास

अडिग विश्वास की पूँजी

अब उसे खर्च करना होगा

नये साल में मितव्ययिता के साथ

नया साल आहिस्ता-आहिस्ता

आज़माएगा तुम्हें

सावधान !! डरना नहीं

धारण कर लो अपना

फौलादी इरादों वाला कवच

जो तुमने गढ़ा है श्रम से ।

मौलिक एवं अप्रकाशित…

Continue

Added by Mohammed Arif on December 5, 2017 at 12:06am — 12 Comments

लघुकथा--रिटर्न गिफ़्ट

" सबसे पहले मैं आप सभी उपस्थित महानुभावों , परम मित्रों , परिजनों , रिश्तेदारों और मीडिया जगत के तमाम साथियों का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ । आप सभी ने मेरे छोटे से आग्रह पर उपस्थित होकर मेरा मान बढ़ाया । मैं कोई बहुत बड़ा आदमी नहीं हूँ । साधारण-सा , अदना-सा आपके बीच का आदमी हूँ । कई दिनों से बेचैनी में था । सोच रहा था अपने अट्ठावनवें जन्म दिन पर क्या रिटर्न गिफ्ट दूँ ? तो मैं आप सभी के समक्ष घोषणा करता हूँ आज के अपने अट्ठावनवें जन्म दिन पर रिटर्न गिफ्ट के तौर पर जीते जी अपनी एक किडनी दान करता… Continue

Added by Mohammed Arif on December 1, 2017 at 12:35am — 18 Comments

ग़ज़ल--बह्र फेलुन×5+फा

कुछ भूला कुछ पहचाना सा लगता है
कोई मुझको दीवाना सा लगता है ।

थोड़ी उलझन थोड़े आँसू जैसा वो
जीवन का ताना बाना सा लगता है ।

ग़ुरबत में देखा जो मुझको यारों ने
बोले कोई अंजाना सा लगता है ।

वक़्त बदलते देर नहीं लगती भाई
अपना होकर बेगाना सा लगता है ।

शाइर बनकर घूम रहा है देखो तो
'आरिफ़'कोई दीवाना सा लगता है ।

मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Mohammed Arif on November 23, 2017 at 12:02am — 23 Comments

हाइकु

(1) बचे न जीव
ख़त्म होते जंगल
है अमंगल ।
(2) सूखी धरती
बरसे न बादल
गायब जल ।
(3) भारतवर्ष
संस्कृतियों की गंगा
मन है चंगा ।
(4) आओ बनाएँ
खुशहाल भारत
है ज़रूरत ।
(5) रक्षा नायक
राष्ट्र का रखवाला
सेना नायक ।
(6) जातीय भेद
देश का नुकसान
घटाए शान ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Mohammed Arif on November 15, 2017 at 6:26pm — 14 Comments

लघुकथा--एटीकेट्स

" विजेश ! विजेश ! हू इज़ विजेश ।"

" आई एम विजेश सर ।" डरता-डरता विजेश सिर झुकाकर खड़ा हो गया ।

" व्हेरी गुड ! यू आर विजेश । तुम्हारी कई दिनों से शिकायतें आ रही है कि तुम क्लास और स्कूल परिसर में गुटखा-पाऊच खाते हो । क्या यह सच है ? जवाब दो ।"

थोड़ी चुप्पी के बाद वह साहस जुटाकर बोला-" सॉरी सर , बट आज के बाद कभी नहीं खाऊँगा । प्रॉमिस सर !"

" ओके ! सीट डाउन एण्ड मैण्टेन यूअर एटीकेट्स । अब सभी बुक निकालकर रीडिंग शुरू करें ।" पूरी क्लास लेसन रीडिंग में तल्लीन हो गई । थोड़ी ही देर में… Continue

Added by Mohammed Arif on November 11, 2017 at 11:17pm — 12 Comments

लघुकथा-- परिचय

" जी , आपका परिचय ?"
" मुझे 'धर्मनिरपेक्षता' कहते हैं ।"
" बहुत ख़ूब ! आपके साथ ये कौन है ?"
" ये मेरी बड़ी बहन ' राष्ट्रीयता ' है ।"
" लेकिन आपने अपना परिचय नहीं दिया , आप कौन ?"
" मेरा कोई एक परिचय हो तो दूँ । फिर भी कुछ लोग मुझे वादे , नारे , भाषण-राशन , बयानबाज़ी , आशीर्वाद की भूखी 'राजनीति' कहते हैं ।"
राष्ट्रीयता तिलमिलाकर बोली-" सीधे-सीधे क्यों नहीं कहती कि मुझे 'चरित्रहीन' कहते हैं ।"
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Mohammed Arif on November 3, 2017 at 10:10pm — 15 Comments

लघुकथा---शट अप

शट अप
ओफ्फ हो ! क्या माँ आप हरदम ज़ोर-ज़ोर से बोलती हो । ये गाँव नहीं है ,वीआईपी कॉलोनी है । यहाँ सभी वेल एजुकेटेड लोग रहते हैं ,धीमे स्वर में बोलते है । वेल कल्चर हैं यहाँ , वेल कल्चर समझी ।"
" मगर मुझे एक बात समझ में नहीं आई। जब से यहाँ आई हूँ देख रही हूँ कि कोई किसी से बतियाता है न बातचीत करता है । क्या यहाँ की वेल कल्चर है ?"
" शट अप !!"
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Mohammed Arif on November 1, 2017 at 8:30am — 24 Comments

कटाक्षिकाएँ

(1) घपला !
घोटाला !
सुर्खियाँ !
मीडिया !
जाँच आयोग !
पुन: जाँच आयोग !
परिणाम -
शून्य ! शून्य ! शून्य !!
(2) इन दिनों मैं
एक अजीबों गरीब
बीमारी का शिकार हूँ
लक्षण यह है कि -
समाजों में रहने और
इंसानों से डरने लगा हूँ ।
(3) हत्या ! लूट !!
बलात्कार ! बलवा !!
मुक़द्दमा !
तारीख़ें !
सज़ा !
जेलों में सुविधा ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Mohammed Arif on October 25, 2017 at 11:40pm — 12 Comments

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