2122 - 1122 - 1122 - 22 या 112 |
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तेरे होंठों से जुदा जाम रहा हूँ लेकिन |
रोजे-अव्वल से ही बदनाम रहा हूँ लेकिन |
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हक़ जताने से कभी हक़ नहीं होता… |
Added by मिथिलेश वामनकर on November 16, 2015 at 11:30am — 16 Comments
212---212---212---212 |
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मखमली चाँदनी रोज आया करो |
पर सितारों से आमद छुपाया करो |
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तितलियों ने लिए है नए पैरहन |
ऐ… |
Added by मिथिलेश वामनकर on November 13, 2015 at 9:00am — 16 Comments
1212 - 1122 - 1212 – 22 |
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हरेक बात, करामात कह रहा हूँ मैं |
वो दिन को रात कहें, रात कह रहा हूँ मैं |
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लगे है आज तो खाली ख़याल अच्छे दिन… |
Added by मिथिलेश वामनकर on November 9, 2015 at 11:00pm — 6 Comments
1222—1222—1222—1222 |
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तसव्वुफ़ का है आलम, जिंदगी रोने नहीं देती |
ये मैली-सी चदरिया मोह की धोने नहीं देती |
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दिखे जो नींद में यारो, वो सपने हो नहीं… |
Added by मिथिलेश वामनकर on November 6, 2015 at 10:03pm — 14 Comments
1212 - 1122 - 1212 – 112 |
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न ओंस है, न शफक है, न ताब है कोई |
ये लॉन एक खफ़ा-सी किताब है कोई |
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झुका झुका सा मुझे देख, सब यही कहते … |
Added by मिथिलेश वामनकर on November 5, 2015 at 4:36pm — 19 Comments
221 2121 1221 212 |
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होंठों पे जिनके दीप जलाने की बात है |
सीने में उनके आग लगाने की बात है |
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झाड़ी के फैलते हुए हाथों को काट… |
Added by मिथिलेश वामनकर on November 4, 2015 at 12:34pm — 27 Comments
1222—1222—1222—1222 |
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नज़र अपनी सितारों पर टिकाने से जरा पहले |
जमीं पर तुम जमा लेना सलीके से कदम अपने |
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फलक को चाँद भी रौशन करे खुद के उजालों… |
Added by मिथिलेश वामनकर on November 2, 2015 at 5:28pm — 14 Comments
221—2122—221--2122 |
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संसार हो गया है, अब अंगहीन जैसे |
सब लोग सोचते है, केवल मशीन जैसे |
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ये जात ही जुदा है, बस नाम ‘लोकसेवक’… |
Added by मिथिलेश वामनकर on November 1, 2015 at 11:00pm — 14 Comments
2122---2122---2122---212 |
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दौर बदला है, बदल जा, ऐ सुखनवर साथ चल |
सोचता है जिस जबां में, उस जबां में लिख ग़ज़ल |
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जिंदगी बदलाव है...... गर थम गए… |
Added by मिथिलेश वामनकर on October 29, 2015 at 2:44pm — 36 Comments
22—22—22—22—22—2 |
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गुलशन में फिर भौंरा आया, बढ़िया है |
फूलों से काटों का नाता, बढ़िया है |
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आज उफ़क तक सरसों देखी, दिल बोला-… |
Added by मिथिलेश वामनकर on October 28, 2015 at 4:03pm — 15 Comments
2122---2122---2122---212 |
धूप की तकसीम में कुछ तो हुआ है देखना |
आज फिर सूरज सवालों में घिरा है देखना |
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नीम के ये जर्द पत्ते आंसुओं-से झर गए |
इस फिज़ा की आँख में कंकड़… |
Added by मिथिलेश वामनकर on October 21, 2015 at 3:03pm — 9 Comments
2122-- 1122 --1122 –112 |
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बंदगी जिनका सफीना था, वही पार गए |
नाखुदाओं पे भरोसा जो किया, हार गए |
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अम्न के वास्ते इस पार से उस पार गए… |
Added by मिथिलेश वामनकर on October 20, 2015 at 1:32am — 13 Comments
1222---1222---122 |
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जरा सा पास आकर देख तो लो |
कभी पलकें उठाकर देख तो लो |
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अगरचे तिश्नकामी गम बहुत है |
उसे आँसू… |
Added by मिथिलेश वामनकर on October 19, 2015 at 2:08am — 18 Comments
2122 – 2122 – 2122 – 212 |
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चाँदनी जब रात, गुमसुम क्यों नदी का तीर है? |
मौन है जल किसलिए, पूछो कि क्यों गंभीर है? |
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प्यार के झुरमुट अंधेरों से लिपट सोते… |
Added by मिथिलेश वामनकर on October 15, 2015 at 2:44pm — 12 Comments
212—-212---212---212 |
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पूछते रह गए आप क्या कर चले? |
वो मेरी जिंदगी हादसा कर चले. |
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गुमटियाँ शह्र से जो हटा कर चले… |
Added by मिथिलेश वामनकर on October 14, 2015 at 4:30pm — 23 Comments
1222—1222—1222—1222 |
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कभी मैं खेत जैसा हूँ, कभी खलिहान जैसा हूँ |
मगर परिणाम, होरी के उसी गोदान जैसा हूँ |
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मुझे इस मोह-माया, कामना ने भक्त… |
Added by मिथिलेश वामनकर on September 27, 2015 at 9:30am — 28 Comments
फ़'इ'लात फ़ाइलातुन फ़'इ'लात फ़ाइलातुन |
1121 - 2122 - 1121 – 2122 |
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कभी ये रहा है बेहद, कभी मुख़्तसर रहा है |
मेरा दर्द तो हमेशा, दिलो-जां जिगर रहा है… |
Added by मिथिलेश वामनकर on September 23, 2015 at 10:00am — 18 Comments
2122-- 1122 --1122 --112 |
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इस तरह आज हमें होश में आने का नहीं |
मुफ्त आई है मगर यार पिलाने का नहीं |
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सिर्फ रोता हुआ हर गीत सुनाने का नहीं… |
Added by मिथिलेश वामनकर on September 21, 2015 at 4:25am — 22 Comments
2122---2122---2122---212 |
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वो बदल जाए खुदारा बस इसी उम्मींद पर |
हर दफा उनकी ख़ता रखते रहे ज़ेरे-नजर |
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ये इशारे मानिए दरिया बहुत गहरा… |
Added by मिथिलेश वामनकर on September 19, 2015 at 3:00am — 24 Comments
1222---1222---122 |
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नज़र इंसान की घातक हुई क्या? |
अभी नासाफ़ थी, हिंसक हुई क्या? |
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भरोसा जिन्दगी से उठ गया जो… |
Added by मिथिलेश वामनकर on September 17, 2015 at 4:11am — 21 Comments
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