For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sanjiv verma 'salil''s Blog (225)

मुक्तिका: क्या कहूँ?... संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

संजीव 'सलिल'

*

क्या कहूँ कुछ कहा नहीं जाता.

बिन कहे भी रहा नहीं जाता..



काट गर्दन कभी सियासत की

मौन हो अब दहा नहीं जाता..



ऐ ख़ुदा! अश्क ये पत्थर कर दे,

ऐसे बेबस बहा नहीं जाता.



सब्र की चादरें जला दो सब.

ज़ुल्म को अब तहा नहीं जाता..



हाय! मुँह में जुबान रखता हूँ.

सत्य फिर भी कहा नहीं जाता..



देख नापाक हरकतें जड़ हूँ.

कैसे कह दूं ढहा नहीं जाता??



सर न हद से अधिक उठाना तुम…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on January 10, 2013 at 10:30am — 5 Comments

मुक्तिका : संजीव 'सलिल'

मुक्तिका :

नया आज इतिहास लिखें हम

संजीव 'सलिल'


*

नया आज इतिहास लिखें हम.

गम में लब पर हास लिखें हम..



दुराचार के कारक हैं जो

उनकी किस्मत त्रास लिखें हम..



अनुशासन को मालिक मानें

मनमानी को दास लिखें हम..



ना देवी, ना भोग्या मानें

नर-नारी सम, लास लिखें हम..



कल की कल को आज धरोहर

कल न बनें, कल आस लिखें हम..

(कल = गत / आगत / यंत्र / शांति)



नेता-अफसर सेवक…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on January 10, 2013 at 10:00am — 4 Comments

दोहा सलिला: गले मिले दोहा यमक

दोहा सलिला:

गले मिले दोहा यमक

संजीव 'सलिल'

*

मनहर ने मन हर लिया, दिलवर दिल वर मौन.

पूछ रहा चितचोर! चित, चोर कहाँ है कौन??

*

देख रही थी मछलियाँ, मगर मगर था दूर.

रखा कलेजा पेड़ पर, कह भागा लंगूर..

*

कर वट को सादर नमन, वट सावित्री पर्व.

करवट ले फिर सो रहे, थामे हाथ सगर्व..

*

शतदल के शत दल खुले, भ्रमर करे रस-पान.

बंद हुए शतदल भ्रमर, मग्न करे गुण-गान..

*

सर हद के भीतर रखें, सरहद करें न पार.

नत सर गम की गाइये,…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on January 9, 2013 at 11:30am — 6 Comments

नीरज के ८९ वें जन्म दिन पर काव्यांजलि: संजीव 'सलिल'

कालजयी गीतकार नीरज के ८९ वें जन्म दिन पर काव्यांजलि:

संजीव 'सलिल'

*

गीतों के सम्राट तुम्हारा अभिनन्दन,

रस अक्षत, लय रोली, छंदों का चन्दन...

*

नवम दशक में कर प्रवेश मन-प्राण तरुण .

जग आलोकित करता शब्दित भाव अरुण..

कथ्य कलम के भूषण, बिम्ब सखा प्यारे.

गुप्त चित्त में अलंकार अनुपम न्यारे..

चित्र गुप्त देखे लेखे रचनाओं में-

अक्षर-अक्षर में मानवता का वंदन

गीतों के सम्राट तुम्हारा अभिनन्दन,

रस अक्षत, लय रोली, छंदों का…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on January 5, 2013 at 11:01am — 10 Comments

व्यंग्य रचना: हो गया इंसां कमीना... संजीव 'सलिल'

व्यंग्य रचना:

हो गया इंसां कमीना...

संजीव 'सलिल'

*

गली थी सुनसान, कुतिया एक थी जाती अकेली.

दिखे कुछ कुत्ते, सहम संकुचा गठी थी वह नवेली..

कहा कुत्तों ने: 'न डरिए, श्वान हैं इंसां नहीं हम.

आंच इज्जत पर न आयेगी, भरोसा रखें मैडम..

जाइए चाहे जहाँ सर उठा, है खतरा न कोई.

आदमी से दूर रहिए, शराफत उसने है खोई..'



कहा कुतिया ने:'करें हडताल लेकर एक नारा.

आदमी खुद को कहे कुत्ता नहीं हमको गवारा..'

'ठीक कहती हो बहिन तुम, जानवर कुछ तुरत बोले.

मांग हो…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on December 30, 2012 at 9:08am — 11 Comments

गीत: झाँक रही है... संजीव 'सलिल'

गीत:

झाँक रही है...

संजीव 'सलिल'

*

झाँक रही है

खोल झरोखा

नए वर्ष में धूप सुबह की...  

*

चुन-चुन करती चिड़ियों के संग

कमरे में आ.

बिन बोले बोले मुझसे

उठ! गीत गुनगुना.

सपने देखे बहुत, करे

साकार न क्यों तू?

मुश्किल से मत डर, ले

उनको बना झुनझुना.



आँक रही

अल्पना कल्पना

नए वर्ष में धूप सुबह की...  

*

कॉफ़ी का प्याला थामे

अखबार आज का.

अधिक मूल से मोह पीला

क्यों कहो ब्याज का?

लिए बांह में बांह…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on December 30, 2012 at 8:56am — 8 Comments

मुक्तिका: संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

संजीव 'सलिल'

*

मगरमच्छ आँसू बहाने लगे हैं।
शिकंजे में मछली फँसाने लगे हैं।।
 
कोयल हुईं मौन अमराइयों में।
कौए गजल गुनगुनाने लगे हैं।।
 
न ताने, न बाने, न चरखा-कबीरा 
तिलक- साखियाँ ही भुनाने लगे हैं।।
 

जहाँ से…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on December 25, 2012 at 8:30am — 9 Comments

गीत: नया वर्ष है... संजीव 'सलिल'

गीत:

नया वर्ष है...

संजीव 'सलिल'

*

खड़ा मोड़ पर आकर फिर

एक नया वर्ष है...

*

कल से कल का सेतु आज है यह मत भूलो.

पाँव जमीं पर जमा, आसमां को भी छू लो..



मंगल पर जाने के पहले

भू का मंगल -

कर पायें कुछ तभी कहें

पग तले अर्श है.

खड़ा मोड़ पर आकर फिर

एक नया वर्ष है...

*

आँसू न बहा, दिल जलता है, चुप रह, जलने दे.

नयन उनीन्दें हैं तो क्या, सपने पलने दे..



संसद में नूराकुश्ती से

क्या पाओगे?

सार्थक तब जब आम…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on December 19, 2012 at 2:03pm — 7 Comments

नवगीत: अब तो अपना भाल उठा... संजीव 'सलिल'

नवगीत:

अब तो अपना भाल उठा...

संजीव 'सलिल'

*

बहुत झुकाया अब तक तूने 

अब तो अपना भाल उठा...

*

समय श्रमिक!

मत थकना-रुकना.

बाधा के सम्मुख

मत झुकना.

जब तक मंजिल

कदम न चूमे-

माँ की सौं

तब तक

मत चुकना.



अनदेखी करदे छालों की

गेंती और कुदाल उठा...

*

काल किसान!

आस की फसलें.

बोने खातिर

एड़ी घिस ले.

खरपतवार 

सियासत भू में-

जमी- उखाड़

न न मन-बल फिसले.

पूँछ दबा शासक-व्यालों की…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on December 19, 2012 at 9:36am — 9 Comments

गीत संजीव 'सलिल'

गीत 

संजीव 'सलिल'

*

क्षितिज-स्लेट पर

लिखा हुआ क्या?...

*

रजनी की कालिमा परखकर,

ऊषा की लालिमा निरख कर,

तारों शशि रवि से बातें कर-

कहदो हासिल तुम्हें हुआ क्या?

क्षितिज-स्लेट पर

लिखा हुआ क्या?...

*

राजहंस, वक, सारस, तोते

क्या कह जाते?, कब चुप होते?

नहीं जोड़ते, विहँस छोड़ते-

लड़ने खोजें कभी खुआ क्या?

क्षितिज-स्लेट पर

लिखा हुआ क्या?...

*

मेघ जल-कलश खाली करता,

भरे किस तरह फ़िक्र न करता.…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on December 6, 2012 at 1:00pm — 16 Comments

मुक्तिका: है यही वाजिब... संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

है यही वाजिब...

संजीव 'सलिल'

*

है यही वाज़िब ज़माने में बशर ऐसे जिए।

जिस तरह जीते दिवाली रात में नन्हे दिए।।



रुख्सती में हाथ रीते ही रहेंगे जानते

फिर भी सब घपले-घुटाले कर रहे हैं किसलिए?



घर में भी बेघर रहोगे, चैन पाओगे नहीं,

आज यह, कल और कोई बाँह में गर चाहिए।।



चाक हो दिल या गरेबां, मौन ही रहना 'सलिल'

मेहरबां से हो गुजारिश- 'और कुछ फरमाइए'।।



आबे-जमजम  की सभी ने चाह की लेकिन 'सलिल'

कोई तो हो जो ज़हर के घूँट कुछ…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on December 6, 2012 at 9:22am — 13 Comments

मुक्तिका: हो रहे संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

हो रहे

संजीव 'सलिल'

*

घना जो अन्धकार है तो हो रहे तो हो रहे।

बनेंगे हम चराग श्वास खो रहे तो खो रहे।।

*

जमीन चाहतों की बखर हँस रही हैं कोशिशें।

बूंद पसीने की फसल बो रहे तो बो रहे।।

*

अतीत बोझ बन गया, है भार वर्तमान भी।

भविष्य चंद ख्वाब, मौन ढो…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 27, 2012 at 9:24am — 3 Comments

गीत: हर सड़क के किनारे --संजीव 'सलिल'

गीत:

हर सड़क के किनारे

संजीव 'सलिल'

*

हर सड़क के किनारे हैं उखड़े हुए,

धूसरित धूल में, अश्रु लिथड़े हुए.....

*

कुछ जवां, कुछ हसीं, हँस मटकते हुए,

नाज़नीनों के नखरे लचकते हुए।

कहकहे गूँजते, पीर-दुःख भूलते-

दिलफरेबी लटें, पग थिरकते हुए।।



बेतहाशा खुशी, मुक्त मति चंचला,

गति नियंत्रित नहीं, दिग्भ्रमित मनचला।

कीमती थे वसन किन्तु चिथड़े हुए-

हर सड़क के किनारे हैं उखड़े हुए,

धूसरित धूल में, अश्रु लिथड़े हुए.....

*

चाह की रैलियाँ,…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 24, 2012 at 8:16am — 9 Comments

दोहा सलिला: नीति के दोहे संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला

नीति के दोहे

संजीव 'सलिल'

*

रखें काम से काम तो, कर पायें आराम .

व्यर्थ  घुसेड़ें नाक तो हो आराम हराम।।



खाली रहे दिमाग तो, बस जाता शैतान।

बेसिर-पैर विचार से, मन होता हैरान।।



फलता है विश्वास ही, शंका हरती बुद्धि।

कोशिश करिए अनवरत, 'सलिल' तभी हो शुद्धि।।



सकाराsत्मक साथ से, शुभ मिलता परिणाम।

नकाराsत्मक मित्रता, हो घातक अंजाम।।





दोष गैर के देखना, खुद को करता हीन।

अपने दोष सुधारता, जो- वह रहे न दीन।।…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 18, 2012 at 1:21pm — 1 Comment

मुक्तिका: तनहा-तनहा संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

तनहा-तनहा

संजीव 'सलिल'

*

हम अभिमानी तनहा-तनहा।

वे बेमानी तनहा-तनहा।।



कम शिक्षित पर समझदार है

अकल सयानी तनहा-तनहा।।



दाना होकर भी करती मति 

नित नादानी तनहा-तनहा।।



जीते जी ही करी मौत की

हँस अगवानी तनहा-तनहा।।



ईमां पर बेईमानी की-

नव निगरानी तनहा-तनहा।।



खीर-प्रथा बघराकर नववधु  

चुप मुस्कानी तनहा-तनहा।।



उषा लुभानी सांझ सुहानी,

निशा न भानी तनहा-तनहा।।



सुरा-सुन्दरी का याचक…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 14, 2012 at 11:51am — 9 Comments

गीत: उत्तर, खोज रहे... --संजीव 'सलिल'

गीत:

उत्तर, खोज रहे...

संजीव 'सलिल'

*

उत्तर, खोज रहे प्रश्नों को, हाथ न आते।

मृग मरीचिकावत दिखते, पल में खो जाते।

*

कैसा विभ्रम राजनीति, पद-नीति हो गयी।

लोकतन्त्र में लोभतन्त्र, विष-बेल बो गयी।।

नेता-अफसर-व्यापारी, जन-हित मिल खाते...

*

नाग-साँप-बिच्छू, विषधर उम्मीदवार हैं।

भ्रष्टों से डर मतदाता करता गुहार है।।

दलदल-मरुथल शिखरों को बौना बतलाते...

*

एक हाथ से दे, दूजे से ले लेता है।

संविधान बिन पेंदी नैया खे लेता…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 2, 2012 at 5:56pm — 7 Comments

विवाह : एक दृष्टि द्वैत मिटा अद्वैत वर... संजीव 'सलिल'

विवाह : एक दृष्टि

द्वैत मिटा अद्वैत वर...

संजीव 'सलिल'

*

रक्त-शुद्धि सिद्धांत है, त्याज्य- कहे विज्ञान।

रोग आनुवंशिक बढ़ें, जिनका नहीं निदान।।



पितृ-वंश में पीढ़ियाँ, सात मानिये त्याज्य।

मातृ-वंश में पीढ़ियाँ, पाँच नहीं अनुराग्य।।



नीति:पिताक्षर-मिताक्षर, वैज्ञानिक सिद्धांत।

नहीं मानकर मिट रहे, असमय ही दिग्भ्रांत।।



सहपाठी गुरु-बहिन या, गुरु-भाई भी वर्ज्य।

समस्थान संबंध से, कम होता सुख-सर्ज्य।।



अल्ल गोत्र कुल आँकना, सुविचारित…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 2, 2012 at 11:08am — 3 Comments

गीत: समाधित रहो .... संजीव 'सलिल'

गीत:

समाधित रहो ....

संजीव 'सलिल'

+

चाँद ने जब किया चाँदनी दे नमन,

कब कहा है उसी का क्षितिज भू गगन।

दे रहा झूमकर सृष्टि को रूप नव-

कह रहा देव की भेंट ले अंजुमन।।



जो जताते हैं हक वे न सच जानते,

जानते भी अगर तो नहीं मानते। 

'स्व' करें 'सर्व' को चाह जिनमें पली-

रार सच से सदा वे रहे ठानते।।



दिन दिनेशी कहें, जल मगर सर्वहित,

मौन राकेश दे, शांति सबको अमित।

राहु-केतु ग्रसें, पंथ फिर भी न तज-

बाँटता रौशनी, दीप होता…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 2, 2012 at 10:06am — 8 Comments

विचित्र किन्तु...: 'आत्मा' का वजन सिर्फ 21 ग्राम

विचित्र किन्तु ...:

'आत्मा' का वजन सिर्फ 21 ग्राम !

 

इंसानी आत्मा का वजन कितना होता है? 

 

इस सवाल का जवाब तलाशने के लिये 10 अप्रैल 1901 को अमेरिका के…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 21, 2012 at 8:45am — 7 Comments

कजरी गीत: गौरा वंदना --संजीव 'सलिल'

कजरी गीत:

गौरा वंदना

संजीव 'सलिल'

*

गौरा! गौरा!! मनुआ मानत नाहीं, दरसन दै दो रे गौरा!

*

गौरा! गौरा!! तुम बिन सूना है घर, मत तरसाओ रे गौरा!

*

गौरा! गौरा!!  बिछ गये पलक पाँवड़े, चरण बढ़ाओ रे गौरा!

*

गौरा! गौरा!! पीढ़ा-आसन सज गए, आओ बिराजो रे गौरा!

*

गौरा! गौरा!! पूजन-पाठ न जानूं, भगति-भाव दो रे गौरा!

*

गौरा! गौरा!! कुल-सुहाग की बिपदा, पल में टारो रे गौरा!

*

गौरा! गौरा!! धरती माँ की कैयाँ हरी-भरी हो रे गौरा!…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 18, 2012 at 11:00am — 1 Comment

Monthly Archives

2013

2012

2011

2010

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. सौरभ सर,होठों को शहद, रस, जाम आदि तो कई बार देखा सुना था लेकिन पहली बार होंठ पे गमले देखने का…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आभार आ. शिज्जू भाई..मंच पर इसी तरह की चर्चा ही उर्जा भर्ती है आभार "
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. सौरभ सर,आपने मुझे मज़ाक मज़ाक में अब्दुल रज़ाक कर दिया 🤣😂🤣😂🤣😂"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on दिनेश कुमार's blog post ग़ज़ल दिनेश कुमार -- अंधेरा चार सू फैला दमे-सहर कैसा
"बहुत खूब, आदरणीय दिनेश कुमार जी. वाह वाह  इस अच्छे प्रयास पर हार्दिक बधाई स्वीकार…"
4 hours ago
Sushil is now a member of Open Books Online
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"क्या खूब कहा आदरणीय निलेश भाई सादर बधाई,   “जो गुज़रेगा इस रचना से ‘नक्की’…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"हा हा हा.. कमाल-कमाल कर जवाब दिये हैं आप, आदरणीय नीलेश भाई.  //व्यावहारिक रूप में तो चाँद…"
22 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तमन्नाओं को फिर रोका गया है
"धन्यवाद आ. रवि जी ..बस दो -ढाई साल का विलम्ब रहा आप की टिप्पणी तक आने में .क्षमा सहित..आभार "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)
"आ. अजय जी इस बहर में लय में अटकाव (चाहे वो शब्दों के संयोजन के कारण हो) खल जाता है.जब टूट चुका…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. सौरभ सर .ग़ज़ल तक आने और उत्साहवर्धन करने का आभार ...//जैसे, समुन्दर को लेकर छोटी-मोटी जगह…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।  अब हम पर तो पोस्ट…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service