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मुक्तिका: हो रहे संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
हो रहे
संजीव 'सलिल'
*
घना जो अन्धकार है तो हो रहे तो हो रहे।
बनेंगे हम चराग श्वास खो रहे तो खो रहे।।
*
जमीन चाहतों की बखर हँस रही हैं कोशिशें।
बूंद पसीने की फसल बो रहे तो बो रहे।।
*
अतीत बोझ बन गया, है भार वर्तमान भी।
भविष्य चंद ख्वाब, मौन ढो रहे तो ढो रहे।।
*
मुश्किलों के मोतियों की कद्र कीजिए हुजूर!
हौसलों के हाथ माल पो रहे तो पो रहे।।
*
प्राण-मन से एक हुए, मिल न पाए गम नहीं।
दूर हुए तन-बदन, जो दो रहे तो दो रहे।।
*
सफेद चादरों के दाग, डामली सियासतें-
कोयलों से घिस-रगड़ धो रहे तो धो रहे।।
*
गीत जागरण के सुन-सुना रहें हों लोग जब।
न फ़िक्र कर 'सलिल', जो शेष रो रहे तो रो रहे।।
*

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Comment

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 21, 2012 at 5:03pm

अतीत बोझ बन गया, है भार वर्तमान भी। 
भविष्य चंद ख्वाब, मौन ढो रहे तो ढो रहे।।

सत्य हि है, सादर 

Comment by वीनस केसरी on November 27, 2012 at 6:27pm

गीत जागरण के सुन-सुना रहें हों लोग जब।
न फ़िक्र कर 'सलिल', जो शेष रो रहे तो रो रहे।।

शानदार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 27, 2012 at 2:35pm

आदरणीय आचार्यजी, आपकी मुक्तिका भाव समृद्ध होती ही है, कभी-कभी ईऽऽऽ  करवा देती है.  :-))))

दो रदीफ़ों पर एक अच्छी मुक्तिका है. परन्तु, अपने अध्ययन हेतु सादर जानना चाहता हूँ कि यह किस हिसाब से बाँधी गयी है ?

घना जो अंधकार है तो हो रहे, तो हो रहे
बनेंगे हम चराग श्वास खो रहे तो खो रहे।।.. .  १२ १२ १२ १२ १२ १२ १२ १२

प्राण-मन से एक हुए, मिल न पाए गम नहीं। .. २१ २१ २१ १२ २१ २१ २१ २ 
दूर हुए तन-बदन, जो दो रहे तो दो रहे।। .......   २१ १२ २ १ २ १२ १२ १२ १२

इसी तरह आगे की द्विपदियों में भी.. .   मैं मात्राओं को गिरा-उरा कर उपरोक्त हिसाब से ही तक्तीह कर पाया हूँ. आप कृपया समझायें कि मैं कहाँ गलत हूँ.

सादर

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