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Seema agrawal's Blog (22)

घनाक्षरी और कुंडलिया छंद

श्याम  घन माला बिच दामिनी दमकती ज्यों,घनश्याम अंक गोरी राधिका समा रही 

बरखा की बूँद मानो टोली गोप-गोपियों की, नाच नाच नाच मुद् मंगल मना रही 

पवन की डोरियाँ डोलाय  रहीं झूलानिया  कृष्ण-कृष्णप्रिया द्वै को झूलनी झुला रही 

लख लख प्रकृति के रूप ये अनूप गूँज  ,राधे-कृष्ण, राधे-कृष्ण चहूँ दिसी  छा रहीं 

 

कुटिया कुटीर डूब रहे दृग सलिल मे,कब प्रिय मेघ मेरे अंगना पधारोगे 

जलती अवनि बिन जल प्यासी सूख रही,कब इन्द्र देव कृपा अपनी उतारोगे

पावस मे पावक से…

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Added by seema agrawal on August 12, 2012 at 7:30pm — 2 Comments

भाव निर्झरणी बहे /गीत

भाव निर्झरणी बहे बस है विनत यह कामना 

जब लिखे दिल से लिखे कवि,सत्य हो या कल्पना



परख सत्यासत्य की रख ,सृजन पथ गढ़ते रहें 

त्याग व्यष्टि समष्टि हित ,शब्द नद भरते रहें 

कर नवल,चिंतन,मनन शुभ ,गूंथ माला काव्य की

शारदे माँ की हृदय से कवि करो तुम अर्चना 



भाव निर्झरणी बहे बस है विनत यह कामना 

जब लिखे दिल से लिखे कवि,सत्य हो या कल्पना …



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Added by seema agrawal on August 6, 2012 at 11:00pm — 17 Comments

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