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Nilesh Shevgaonkar's Blog (189)

ग़ज़ल -निलेश 'नूर'- नहीं चलता है वो मुझ को

1222/ 1222/ 1222/ 1222

.

नहीं चलता है वो मुझ को जो कहता है कि चलता है,

यही अंदाज़ दुनियाँ का हमेशा मुझ को खलता है.

***

सलामी उस को मिलती है, चढ़ा जिसका सितारा हो,

मगर चढ़ता हुआ सूरज भी हर इक शाम ढलता है.

***

न तुम कोई खिलौना हो, न मेरा दिल कोई बच्चा,

मगर दिल देख कर तुमको न जाने क्यूँ मचलता है.

***

किनारे है…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on October 27, 2013 at 8:30am — 12 Comments

ग़ज़ल -निलेश 'नूर'- वक़्त ज़ाया करो, न राहों में....

२१२२ १२१२ २२   

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वक़्त ज़ाया करो, न राहों में,

मंजिलों को रखो निगाहों में.

.

फूल ही फूल दिल में खिलते है,

आप होते हो जब भी बाहों में.

.

है नुमाया पता नहीं क्या कुछ,

और क्या कुछ छुपा है चाहों में.

.

तख़्त ताज़ों को ये उलट देंगी,

वो असर है मलंग की आहों में.

.

है डराती मुझे मेरी वहशत,

तू मुझे ले ही ले पनाहों में.

.  

आज है वक़्त तू संभल नादां,

क्यूँ फंसा है बता गुनाहों में.

.

साथ देने लगे हो…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on October 24, 2013 at 11:47am — 14 Comments

ग़ज़ल-निलेश 'नूर'- कोई दर्द आँखों में दिखता नहीं है...

122, 122, 122, 122



कोई दर्द आँखों में दिखता नहीं है,

है इंसान कैसा, जो रोया नहीं है??

***

मेरी बात मानों, न यूँ ज़िद करो अब,

दुखाना किसी दिल को अच्छा नहीं है.

***

सभी है किसी और की खाल ओढ़े,

तेरे शह्र में, कोई सच्चा नहीं है.

***

मुझे देख रंगत बदलता है अपनी,

वगरना वो बीमार लगता नहीं है.

***

लगाया करो आँख में…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on October 22, 2013 at 6:27pm — 13 Comments

ग़ज़ल - निलेश 'नूर'- धडक मत ऐ दिले नादाँ, किसी की याद आई है

१२२२,१२२२,१२२२,१२२२

.

वो लेतें है शिकायत में, कि लेतें है मुहब्बत में,

हमारा नाम लेतें है वो अपनी हर ज़रूरत में,

***

मै राजा और तुम रानी, ये दुनियाँ सल्तनत अपनी,

हक़ीक़त में नहीं होता, ये होता है हिक़ायत में.

***

ये रुतबा, ओहदा, शुहरत, सभी हमनें भी देखें है,

छुपा है कुछ, नुमाया कुछ, शरीफ़ों की शराफ़त में. 

*** 

मेरे ही क़त्ल का इल्ज़ाम क़ातिल ने मढ़ा मुझ पर,

गवाही भी वही देगा, वो ही मुंसिफ़…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on October 22, 2013 at 9:40am — 24 Comments

मिला नज़र से नज़र, सब्र आज़माते रहे,

1212 1122 1212 22  .... अंतिम रुक्न ११२ भी पढ़ा गया है ..

.

नज़र, नज़र से मिला, सब्र आज़माते रहे,

मेरे रक़ीब मुझे देख, तिलमिलाते रहे.  

घटाएँ, रात, हवा, आँधियाँ करें साज़िश,

मगर चिराग़ ये बेखौफ़ जगमगाते रहे.

.

गुनाह, जुर्म, सज़ा, माफ़ आपकी कर दी,

ये कह दिया तो बड़ी देर सकपकाते रहे.

.

खफ़ा खफ़ा से रहे बज़्म में सभी मुझसे,

वो पीठ पीछे मेरे शेर गुनगुनाते रहे.  

.

मिला हमें न सुकूँ दफ्न कब्र में होकर,

किसी…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on October 20, 2013 at 10:30pm — 26 Comments

ग़ज़ल; निलेश 'नूर' -झटक के ज़ुल्फ़

1212 1122 1212 22 

 

झटक के ज़ुल्फ़ किसी ने जो ली है अंगडाई,

ये कायनात लगे है हमें कुछ अलसाई.

**

किसी से प्यार न पाया सभी ने ठुकराया,

मिली यहाँ है मुहब्बत में सिर्फ रुसवाई.

**

किये थे रब्त सभी आपने कत’आ मुझसे,

जो कामयाब हुआ तब बढ़ी शनासाई. 

**

बता रहे थे मुझे, एक दिन, सभी पागल,

हुए सभी वो यहाँ लोग, आज सौदाई.

**

मुहब्बतों के सफ़र से ही लौट कर हमनें,

न करिए इश्क़ कभी, बात सबको समझाई.…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on October 17, 2013 at 3:30pm — 11 Comments

ग़ज़ल -निलेश 'नूर' $अगर राधा न बन पाओ बनो मीरा मुहब्बत में$

१२२२, १२२२, १२२२, १२२२,

**

हुआ है तज्रिबा मत पूछ हम को क्या मुहब्बत में,........पहले तज़ुर्बा लिखा था जो गलत था .. अत: मिसरे में तरमीम की है. 

लगा दीदा ए तर का आब भी मीठा मुहब्बत में.

**

जो चलते देख पाते हम तो शायद बच भी सकते थे,

नज़र का तीर दिल पे जा लगा सीधा मुहब्बत में.

**

ख़ुमारी छाई रहती है, ख़लिश सी दिल में होती है,      

अजब है दर्द जो ख़ुद ही लगे चारा मुहब्बत में.

**

रवायत आज भी भारी ही…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on October 17, 2013 at 9:00am — 16 Comments

ग़ज़ल.. निलेश 'नूर' --चलो चलें अब यहाँ से यारो, रहा न अपना यहाँ ठिकाना

1 २ १ २ २ / १ २ १ २ २/ १ २ १ २ २ /१ २ १ २ २

चलो चलें अब यहाँ से यारो, रहा न अपना यहाँ ठिकाना,

नहीं रहा अब, जो हम से रूठे, किसे भला है हमें मनाना.

***

था इश्क़ हमको, था इश्क़ तुमको, मगर बगावत न कर सकें हम,

न तुम ने छोड़ा, न बेवफ़ा हम, न तुम ने समझा, न हम ने जाना.

***

शराब छोड़ी, नशा बुरा था, नज़र से पी ली, नज़र मिलाकर,

नज़र नज़र में नशा चढ़ा यूँ, वो भूल बैठा मुझे पिलाना.

***

न फेरियें मुंह, अभी से साहिब, अभी सफ़र ये शुरू हुआ है,

कत’आ करो…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on October 15, 2013 at 1:00pm — 21 Comments

इस मंच पर ग़ज़ल कहने का प्रथम प्रयास.. एक तरही ग़ज़ल .."ज़रूरत से ज़ियादा क्यूँ करें हम?"

1222, 1222, 122.

.

ज़रूरत से ज़ियादा क्यूँ करें हम?

लहू दिल से निचोड़ा क्यूँ करें हम?

.

फ़ना हो जाएगा सबकुछ जहां में,

ये झूठा फिर दिखावा क्यूँ करें हम?

.

उगेंगे एक दिन कांटें ही कांटें,

ज़हन में याद बोया क्यूँ करें हम?

.

नहीं परवाह है उनको हमारी,

बिना कारण ही रोया क्यूँ करें हम?

.

हमारे काम खुद ही बोलतें है,

ज़ुबानी कोई दावा क्यूँ करें हम?

.

जुदा है रास्ते तुमसे हमारे,

बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on October 13, 2013 at 12:30pm — 26 Comments

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