For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल.. निलेश 'नूर' --चलो चलें अब यहाँ से यारो, रहा न अपना यहाँ ठिकाना

1 २ १ २ २ / १ २ १ २ २/ १ २ १ २ २ /१ २ १ २ २

चलो चलें अब यहाँ से यारो, रहा न अपना यहाँ ठिकाना,
नहीं रहा अब, जो हम से रूठे, किसे भला है हमें मनाना.
***
था इश्क़ हमको, था इश्क़ तुमको, मगर बगावत न कर सकें हम,
न तुम ने छोड़ा, न बेवफ़ा हम, न तुम ने समझा, न हम ने जाना.
***
शराब छोड़ी, नशा बुरा था, नज़र से पी ली, नज़र मिलाकर,
नज़र नज़र में नशा चढ़ा यूँ, वो भूल बैठा मुझे पिलाना.
***
न फेरियें मुंह, अभी से साहिब, अभी सफ़र ये शुरू हुआ है,
कत’आ करो तुम अभी न रिश्ता, इसे है सदियों तलक निभाना.
***
खिंचा मै आऊँ, तुम्हारी जानिब, लगे बुलावा, लबों की लरज़िश,
तुम्हारी ज़ुल्फ़ें लगे घटा सी, महक तुम्हारी करे दीवाना.
***
भड़क रहें है दिलों में शोले, थिरक रही है लवें दीयों की,
लगाए सावन, ये आग लेकिन, नहीं वो जानें इसे बुझाना.
***
मुझे अभी तक हैं याद आतें, बिखर गए जो हसीन सपने,
सिसक रहे है जो दिल में अब तक मगर मुनासिब है भूल जाना.
***
सुनों पिया तुम, जवाब दो तुम, कहाँ छुपे हो मेरे ख़ुदा तुम,
बहुत बुरा है ये दिल लगाना, यूँ दर्द देकर दवा छुपाना.
***
तुम्हे लगी जो फ़क़त कहानी, जिया उसे ‘नूर’ जिंदगी भर,
वही तो थी बस मेरी हक़ीक़त, जिसे समझते रहे फ़साना.
*** *** *** *** *** *** *** *** *** *** ***
.
मौलिक एवं अप्रकाशित
निलेश 'नूर' 

Views: 941

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 17, 2013 at 10:52pm

आदरणीय वीनस जी .. लेखन सतत प्रक्रिया है और उसमे सुधार भी ... इसी के तहत कुछ सुधार किये है जिसमे मंच के सदस्यों का योगदान भी है ...
सभी का आभार .. आप को ग़ज़ल पसंद आई .. इससे बहुत उम्मीद और हिम्मत मिली है .. बेहतर रचने का सतत प्रयत्न रहेगा ..
आभार 

Comment by वीनस केसरी on October 17, 2013 at 9:31pm

बहुत अच्छा कहा भाई
अच्छे अच्छे जानकारों को मैंने इस बहर पर औंधे मुंह गिरते देखा है .... बहुत कठिन बहर को बहुत खूबसूरती से निभा ले गए

हालांकि पिछली बार मुझे कुछ बातें दिखी थी.... अब आया हूँ तो ग़ज़ल दोष मुक्त दिख रही है .. आपने दुरुस्त कर लिया होगा 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 17, 2013 at 6:40am

आभार मोहन जी; अरुण जी.. धन्यवाद   


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on October 17, 2013 at 12:18am

आदरणीय नीलेश जी, शानदार गज़ल सुनाने के लिये शुक्रिया..........

शराब छोड़ी, नशा बुरा था, नज़र से पी ली, नज़र मिलाकर,
नज़र नज़र में नशा चढ़ा यूँ, वो भूल बैठा मुझे पिलाना.

वाह, वाह, वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

Comment by मोहन बेगोवाल on October 16, 2013 at 9:39pm

 श्रीमान निलेश जी , उम्दा गजल के लिए बधाई स्वीकार करें 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 16, 2013 at 5:24pm

धन्यवाद राहुल जी.  

Comment by RAHUL VERMA on October 16, 2013 at 5:00pm

वाह निलेश जी....बेहद कठिन 'बहर' को निभाते हुए एक बेहद उम्दा ग़ज़ल कही है आपने......तहे-दिल से मुबारकबाद आपको.....मेरे हिसाब से हासिल-ए-ग़ज़ल शे'र है-
मुझे अभी तक हैं याद आतें, बिखर गए जो हसीन सपने,
सिसक रहे है जो दिल में अब तक मगर मुनासिब है भूल जाना.

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 16, 2013 at 2:52pm

धन्यवाद आदरणीय अरुण शर्मा 'अनन्त' जी. स्नेह एवं मार्गदर्शन करतें रहें.
आभार  

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 16, 2013 at 2:12pm

आदरणीय निलेश जी वाह बहुत ही दमदार अशआर प्रेम रंग में रंगी खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने दिली दाद कुबूल फरमाएं.

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 16, 2013 at 1:45pm

शुक्रिया बृजेश जी. आभार  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
12 hours ago
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
yesterday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service