For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल; निलेश 'नूर' -झटक के ज़ुल्फ़

1212 1122 1212 22 

 

झटक के ज़ुल्फ़ किसी ने जो ली है अंगडाई,
ये कायनात लगे है हमें कुछ अलसाई.
**

किसी से प्यार न पाया सभी ने ठुकराया,
मिली यहाँ है मुहब्बत में सिर्फ रुसवाई.
**

किये थे रब्त सभी आपने कत’आ मुझसे,
जो कामयाब हुआ तब बढ़ी शनासाई. 
**

बता रहे थे मुझे, एक दिन, सभी पागल,
हुए सभी वो यहाँ लोग, आज सौदाई.
**

मुहब्बतों के सफ़र से ही लौट कर हमनें,
न करिए इश्क़ कभी, बात सबको समझाई.
**

यहाँ सभी है लगे जिसको आज़मानें में,
अभी सिखा के गया ‘नूर’ वो मसीहाई.   

******************************************
मौलिक एवं अप्रकाशित 
निलेश 'नूर'

Views: 604

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 21, 2013 at 8:08am

लेकिन ये जगजीत सिंह जी की ग़ज़ल के शेर जैसा हो जाएगा ...
.
किसी को प्यार मिले और किसी को रुसवाई 
मुहब्बतों के सफ़र भी अजीब होतें है ...
ये पीने वालें बहुत ही अजीब होतें है .......
ऊपर से बहर भी यही है :(  कुछ और सोचता हूँ 


Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 21, 2013 at 7:28am

आदरणीय वीनस केसरी  जी, ग़ज़ल के शेर आप की ज़बान पर चढ़ने लगे, आपकी इस टिप्पणी से मेरे हौसले बढ़ने लगे ..बहुत बहुत धन्यवाद .. आप की सलाह आज्ञा तुल्य है. विचार करते करते कुछ मुझ से भी बन पड़ा है वो आप की नज्र करता हूँ ...आप की इजाज़त होगी तो तरमीम करूँगा ..पेश है ..
.
किसी से प्यार न पाया सभी ने ठुकराया, 
मुहब्बतों के सफ़र में मिली है रुसवाई.  

Comment by वीनस केसरी on October 21, 2013 at 1:04am

एक और कामयाब ग़ज़ल के लिए ढेरो दाद हर शेर ज़बान पर चढ जा रहा है

बहुत खूब

इसे ऐसा कर दें तो किस रहेगा !!!

किसी से प्यार न पाया हर एक ने ठुकराया,
मिली सभी से मुहब्बत में सिर्फ रुसवाई.

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 19, 2013 at 2:44pm

धन्यवाद बृजेश जी, चन्द्र शेखर जी, नीरज जी ...
आभार

 

Comment by Neeraj Neer on October 19, 2013 at 8:50am

मुहब्बतों के सफ़र से ही लौट कर हमनें,
न करिए इश्क़ कभी, बात सबको समझाई.

बहुत खूब ..

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on October 19, 2013 at 1:32am
वाहहहहह
Comment by बृजेश नीरज on October 18, 2013 at 11:06pm

अच्छी ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 18, 2013 at 9:52pm

आदरणीय गिरिराज जी, रामनाथ जी, गणेश जी ... आप को ग़ज़ल पसंद आई तो लिखना सार्थक हुआ. धन्यवाद
आभार

   


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 18, 2013 at 9:12pm

//किसी से प्यार न पाया सभी ने ठुकराया, 
मिली यहाँ है मुहब्बत में सिर्फ रुसवाई.//
वाह वाह, क्या कहने, बढ़िया शेर हुआ है, इस ग़ज़ल की प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें । 

Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 18, 2013 at 6:53pm

क्या कहने....नूर साहब.........मजा आ गया....शानदार ग़ज़ल...!!!..

इस शे'र के लिए जिंदाबाद...........!!!!!!............

.मुहब्बतों के सफ़र से ही लौट कर हमनें,
न करिए इश्क़ कभी, बात सबको समझाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
19 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
19 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
19 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
19 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
19 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
19 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
19 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आ. भाई तमाम जी, हार्दिक आभार।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आ. भाई तिलकराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति , स्नेह और मार्गदर्शन के लिए आभार। मतले पर आपका…"
19 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, आपकी टिप्पणी एवं मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार। सुधार का प्रयास करुंगा।…"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। आ. भाई तिलकराज जी के सुझाव से यह और निखर गयी है।…"
20 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service