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Dayaram Methani's Blog – December 2018 Archive (3)

गज़ल नफरत

गज़ल
फेलुन x 4 (16 मात्रा)


नफरत की आग लगाना है
मजहब तो एक बहाना है

खूब लाभ का है ये धंधा
बस इक अफवाह उड़ाना है

हर तरफ खून की है बातें
लाशों का ही नजराना है

धर्म नाम के है दीवाने
जुनून बस खून बहाना है

जला रहे जो अपना ही घर
दर्पण उनको दिखलाना है

शुभ आस करो कुछ ‘‘मेठानी’’
अब नई सुबह को लाना है।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)
- दयाराम मेठानी

Added by Dayaram Methani on December 18, 2018 at 1:51pm — 5 Comments

ग़ज़ल: आइना बन सच सदा सबको दिखाता कौन है

2122 2122 2122 212



आइना बन सच सदा सबको दिखाता कौन है

है सभी में दाग दुनिया को बताता कौन है

काम मजहब का हुआ दंगे कराना आजकल

आग दंगों की वतन में अब बुझाता कौन है

आंधियाँ तूफान लाते है तबाही हर जगह

दीप अंधेरी डगर में अब जलाता कौन है

देश में शोषण किसानों का हुआ अब तक बहुत

दाल रोटी दो समय उनको दिलाता कौन है



बात मेठानी सुनो सबकी सदा तुम ध्यान से

भय हमारी जिन्दगी से अब भगाता कौन है

( मौलिक…

Continue

Added by Dayaram Methani on December 12, 2018 at 10:00pm — 8 Comments

ग़ज़ल

2122 2122 2122 2122



हैं जो अफसानें पुराने, सब भुलाना चाहता हूँ

इस धरा को स्वर्ग-जैसा ही बनाना चाहता हूँ

देश में अपने सदा सद्भाव फैलाएँ सभी जन

अब सभी दीवार नफरत की गिराना चाहता हूँ

दिल सभी का हो सदा निर्मल नदी-जैसा धरा पर

अब परस्पर प्यार करना ही सिखाना चाहता हूँ

धन कमाऊँगा मगर धोखा न सीखूँगा किसी से

हर कदम अपना पसीना ही बहाना चाहता हूँ

है ये तेरा, है ये मेरा की लड़ाई खत्म हो अब

और खुशियाँ संग सबके…

Continue

Added by Dayaram Methani on December 1, 2018 at 12:30pm — 6 Comments

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