For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122 2122 2122 2122


हैं जो अफसानें पुराने, सब भुलाना चाहता हूँ
इस धरा को स्वर्ग-जैसा ही बनाना चाहता हूँ

देश में अपने सदा सद्भाव फैलाएँ सभी जन
अब सभी दीवार नफरत की गिराना चाहता हूँ

दिल सभी का हो सदा निर्मल नदी-जैसा धरा पर
अब परस्पर प्यार करना ही सिखाना चाहता हूँ

धन कमाऊँगा मगर धोखा न सीखूँगा किसी से
हर कदम अपना पसीना ही बहाना चाहता हूँ

है ये तेरा, है ये मेरा की लड़ाई खत्म हो अब
और खुशियाँ संग सबके ही मनाना चाहता हूँ

है लहू सैनिक बहाता देश के खातिर हमेशा
शीश श्रद्धा से सदा उसको झुकाना चाहता हूँ

( मौलिक एवं अप्रकाशित )
- दयाराम मेठानी

Views: 531

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dayaram Methani on December 2, 2018 at 2:23pm

आदरणीय समर कबीर जी, बहुत बहुत आभार। गज़ल के प्रयास पर आपकी समीक्षा से उत्साहवर्धन हुआ है। आपने जो सुझाव दिये है उनके लिए तहे दिल से आभार।

Comment by Samar kabeer on December 2, 2018 at 8:28am

जनाब दयाराम मेठानी जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

'  इस धरा को स्वर्ग-जैसा ही बनाना चाहता हूँ'

इस मिसरे में 'ही' की जगह "मैं" करना उचित होगा ।

'  अब सभी दीवार नफरत की गिराना चाहता हूँ'

इस मिसरे को यूँ कर लें,गेयता बढ़ जाएगी:-

'इसलिये दीवार नफ़रत की गिराना चाहता हूँ'

'  अब परस्पर प्यार करना ही सिखाना चाहता हूँ'

इस मिसरे में 'अब' की जगह "यूँ" कर लें ।

'  

और खुशियाँ संग सबके ही मनाना चाहता हूँ'

इस मिसरे को यूँ कर लें,गेयता बढ़ जाएगी:-

'मैं यहाँ ख़ुशियाँ सभी के सँग मनाना चाहता हूँ'

Comment by Dayaram Methani on December 1, 2018 at 10:24pm

आदरणीय शैलेश चंद्राकर जी, उत्साहवर्धन के लिए आभार एवं धन्यवाद।

Comment by Dayaram Methani on December 1, 2018 at 10:22pm

आदरणीय राहुल डांगी जी,

उत्साहवर्धन एवं सुझाव हेतु बहुत बहुत आभार।

Comment by Rahul Dangi Panchal on December 1, 2018 at 7:35pm

आदरणीय बहुत सुन्दर भाव पिरोये है हर पंक्ति  में,  बधाई स्वीकार करें ।

बार बार 'अब' की आवर्ती  कविता का सौन्दर्य कम रही है।

आदरणीय जहाँ तक मेरा विचार है ये ग़ज़ल न हो के कविता कही जा सकती है 

क्यूं यदि अगल अगल शे'र पढे तो रब्त की कमी खलती है 

Comment by Shlesh Chandrakar on December 1, 2018 at 3:56pm

बहुत खूब, आदरणीय दयाराम जी, आज के लिए बहुत उपयोगी ग़ज़ल है। हृदय से बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"नमन मंच 2122 2122 2122 212 जो जहाँ होगा वहीं पर वो खड़ा रह जाएगा ज़श्न ऐसा होगा सबका मुँह खुला रह…"
1 hour ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
4 hours ago
Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत ही उत्तम और सार्थक कुंडलिया का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service