16,16 पर यति,चार पद, दो-दो पद समतुकांत
बढ़ती जाती है आबादी,रोजगार की मजबूरी है
पैसे की खातिर देख बढ़ी,किस-किस से किसकी दूरी है
उस बड़े शहर में जा बैठे, घर जहाँ बहुत ही छोटे हैं
विचार महीन उन लोगों के, जो दिखते तन के मोटे हैं
पहले गाँवों में बसते थे,घर आँगन मन था खुला-खुला
थोड़े में भी खुश रहते थे,हर इक विपदा को सभी भुला
कोई कठिनाई अड़ी नहीं,मिल उसका नाम मिटाते थे
जो रूखा-सूखा होता था,सब साथ बाँट कर खाते थे
तब धमा चौकड़ी होती…
ContinueAdded by सतविन्द्र कुमार राणा on December 25, 2017 at 2:21pm — 12 Comments
22 22 22 22
मोम नहीं जो दिल पत्थर है
उसका चर्चा क्यों घर-घर है?
मंजिल को पा लेता है वो
जिसने साधी खूब डगर है
लोग पुराने बात पुरानी
फिर भी उनका आज असर है
देख! सँभलना उसने सीखा
जिसने भी खायी ठोकर है
होठों पर मुस्कान भले हो
दिल में गम का इक सागर है
माना सच होता है कड़वा
'राणा' कहता ख़ूब मगर है
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on December 16, 2017 at 8:00pm — 20 Comments
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