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MAHIMA SHREE's Blog – December 2012 Archive (2)

तुम्हारे साथ ....

ओ तरुणी

मेरे आंसू

तेरे दुख

कम नहीं कर पाएँगे

मेरी संवेदनाएँ

तेरे जख्म नहीं भर पायेंगे 

तार -तार हैं सपने तेरे

रोम रोम में जहर भर गए

कुंठित होगा मन का कोना

घृणा के ज्वार पे तुम सवार

बदले की आग में भी जलोगी

ना कुछ करने की विवशता

आत्महत्या के लिए प्रेरित करेगी

ओ मेरी अनजान…

Continue

Added by MAHIMA SHREE on December 23, 2012 at 6:30pm — 23 Comments

उलझन

जानती हूँ
या कहो
बखूबी समझती हूँ
तुम्हारे चुपचाप रहने का सबब
हमारे बीच समझ का
जो अनकहा पुल है
कभी सच्चा लगता है और
कभी दिवास्वप्न सा
दुविधा की कई बातें हैं
जज्बातों की कई सौगाते भी हैं
जो अकेले बैठ के
अपने मन मंदिर में
कोमल अहसासों से पिरोयें हैं
साझा करने को कभी
पुल के इस पार तो आओ
दो बातें तो कर जाओ
जानती हूँ तुम्हें
या नहीं जानती की
उलझन तो सुलझा जाओ

Added by MAHIMA SHREE on December 5, 2012 at 4:22pm — 22 Comments

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"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
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"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
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"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
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