For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तन्हाई चीखती है कहीं

पगलाई-सी हवा धमक पड़ती है ।

अंधेरे में भी दरवाजे तक पहुँच कर

बेतहाशा कुंडियाँ खटखटाती है।

अकेला सोया पड़ा इंसान अपने ही भीतर हो रहे शोर से

घबड़ा कर उठ बैठता है ।

मोबाइल में चौंक कर देखता है समय

“रात के ढ़ाई ही तो अभी बजे हैं “ बुदबुदाता है।

सन्नाटा उसकी दशा पर मुस्कुराता है।

उधर दुनिया के कहीं कोने में

भीड़ भूख-प्यास से बेकाबू हो कर सड़को पर नहीं निकलती,

सामूहिक आत्महत्याएं कर रही होती हैं ।

मर्सिया गाने का काम

स्वत: सोशल साईटो के तथाकथित बुद्धिजिवियों के पास है।

कवि मरते हुए गाजा के बच्चों के नाम  कविता लिख

अपनी संजिदगी  दिखाता है ।

वहीं दूसरी ओर जेहादी तकरीर के बाद

एक भीड़ हथियारों से लैस होकर निकल पड़ती हैं

दुनिया को ठिकाने लगाने।

एक गरीब देश में भूकम्प आता है

और खाड़ी देशों में  ताजा गुलाबी गोश्त की आमद तेज हो जाती है।

दिल्ली सत्ता के घंमड में चूर अपने विज्ञापनों में इठलाती है।

हाईकोर्ट अधिकारियों को याद दिलाती हैं

उनके बच्चे को कहाँ पढ़ना चाहिए ।

नेता जी कहते हैं

एक स्त्री से एक ही व्यक्ति बलात्कार कर सकता है ।

देश के चौहदियों पर तैनात जवान रिटायमेंट के बाद

एक सेवा एक पेंशन की लड़ाई में कूद पड़ता है।

हम कई कप चाय पीने के बाद निष्कर्ष पर पहुँचते हैं

क्रांति होनी चाहिए !

और फिर टीवी खोल कर बैठ जाते हैं।

मौलिक व अप्रकाशित

 

Views: 720

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 28, 2015 at 8:39pm

क्या यह अधिकांश लोगों के मन की आवाज नहीं है? समझते तो सब हैं पर ...फिर वही 

हम कई कप चाय पीने के बाद निष्कर्ष पर पहुँचते हैं

क्रांति होनी चाहिए !

और फिर टीवी खोल कर बैठ जाते हैं।

Comment by MAHIMA SHREE on August 26, 2015 at 7:37pm

आदरणीय मिथिलेश जी ..आपकी प्रोत्साहित करती विस्तृत प्रतिक्रिया और वर्तनी संबधी सुझाव के लिए हृदयतल से आभार प्रकट करती हूँ .. 

मैंने अापके कहे गए सुझाव के अनुसार  ठीक कर दिया , साभार

Comment by MAHIMA SHREE on August 26, 2015 at 7:31pm

आदरणीया कांता जीआपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया और रचना के  संवेदना के प्रति आपकी सहमती  से बहुत  खुशी  मिली ब हुत  आभारी हूँ..स्नेह बनाए रखे

Comment by MAHIMA SHREE on August 26, 2015 at 7:17pm

रचना  के मनोभाव को समझने और  मान देने  के लिए आपका हृ़दय से आभारी हूँ आ. डॉ विजय शंकर सर  , सादर

Comment by Sushil Sarna on August 25, 2015 at 4:20pm

आज के माहौल के कसैले वातावरण पर एक तीक्ष्ण कटाक्ष है। आपने समाज की सही नस पकड़ी है। इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया महिमा जी। हाँ, आदरणीय मिथिलेश जी की टिप्पणी से मैं सहमत हूँ। 

Comment by Harash Mahajan on August 25, 2015 at 1:26pm

आजकल की व्यथा को समेटते हुए बहुत ही अच्छे से अपने शब्दों में पेश किया आपने आ० सुश्री महिमा जी !! ढेरों बधाईयाँ आपकी इस प्रस्तुति  पर !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 25, 2015 at 11:49am

आदरणीया महिमा जी, बहुत ही संवेदनशील विषयों को समेटते हुए वर्तमान दुनिया में फैली विद्रूपताओं को बहुत सधे हुए ढंग से शाब्दिक किया है इस प्रस्तुति में. इस शानदार रचना पर हार्दिक बधाई. यह भी अवश्य है कि अक्षरी/ वर्तनी दोष ऐसी सशक्त रचनाओं के प्रभाव को भी कम करती है यथा -भुख, बेकाबु, सामुहिक, भुकम्प, कुद .

सादर 

Comment by kanta roy on August 25, 2015 at 8:47am

बहुत बडी चोट की है आपने आज के देशकाल परिस्थितियों पर आदरणीया महिमा जी । सच ही कहा है आपने कि .... अकेला सोया पड़ा इंसान अपने ही भीतर हो रहे शोर से घबड़ा कर उठ बैठता है ।........वाह !!! बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिये ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 24, 2015 at 8:53pm
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, बहुत कुछ जो सामने हो रहा है , उस सब को समेटते हुए , अपने ही एक मौलिक अंदाज में प्रस्तुत किया है आपने , आदरणीय सुश्री महिमा जी , ढेरों ,बधाइयां सादर ,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
4 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
7 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
7 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
8 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
8 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
8 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
23 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service