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Harivallabh sharma's Blog – October 2014 Archive (3)

गीत: रँग जीवन हैं कितने

*रँग जीवन हैं कितने.

सुख अनंत मन की सीमा में,

दुख के क्षण हैं कितने ?

अभिलाषा आकाश विषद है,

है प्रकाश से भरा गगन.

रोक सकेंगे बादल कितना,

किरणों का अवनि अवतरण.

चपला चीर रही हिय घन का,

तम के घन हैं कितने ?

..दुख के क्षण हैं कितने ?

काल-चक्र चल रहा निरंतर,

निशा-दिवस आते जाते,

बारिश सर्दी गर्मी मौसम,

नव अनुभव हमें दिलाते.

है अमृतमयी पावस फुहार,

जल प्लावन हैं कितने ?

..दुख के क्षण हैं कितने ?

अनजानों की ठोकर सह…

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Added by harivallabh sharma on October 16, 2014 at 11:29pm — 14 Comments

गज़ल : वो कहानी है नहीं.

हट गया तूफ़ान जुल्मत वो कहानी है नहीं.

हो गये आज़ाद हम सब अब गुलामी है नहीं.

फूट के कारण हमेशा लुट रहा हिन्दोस्तां,

बँट गए टुकड़े अलहदा एकनामी है नहीं.

ये मुसल्माँ वो है हिन्दू धर्म ये किसने गढ़े,

भेद इंसानों में करते धूप पानी है नहीं.

स्वर्ण पंछी देश था ये जानता सारा जहाँ,

आज वो वैभव पुनः पाने की ठानी है नहीं.

मुल्क को नीलाम करते देश के गद्दार ये,

कोई नेता देश सेवक खेजमानी है…

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Added by harivallabh sharma on October 15, 2014 at 3:00pm — 8 Comments

दीप कोई प्रीत का अंतस जले

**दीप कोई प्रीत का अंतस जले.

 

हो चुकी है रात आधी,

घोर तम मावस पले.

इस अमा में दीप कोई,

प्रीत का अंतस जले.

--

हर तरफ खुशियाँ बिछी हैं,

द्वार तोरण से सजे.

आतिशी होते धमाके,

वाद्य मंगल धुन बजे.

कौन देता ध्यान उनपर,

भूख से मरते भले.

--

बाल दे इक दीप कोई,

रौशनी भी हो यहाँ.

झोपड़ी को राह तकते,

घिर चूका है कहकशाँ.

लूटते सारी ख़ुशी वो,

काट सकते जो…

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Added by harivallabh sharma on October 7, 2014 at 2:07pm — 13 Comments

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