For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दीप कोई प्रीत का अंतस जले

**दीप कोई प्रीत का अंतस जले.

 

हो चुकी है रात आधी,

घोर तम मावस पले.

इस अमा में दीप कोई,

प्रीत का अंतस जले.

--

हर तरफ खुशियाँ बिछी हैं,

द्वार तोरण से सजे.

आतिशी होते धमाके,

वाद्य मंगल धुन बजे.

कौन देता ध्यान उनपर,

भूख से मरते भले.

--

बाल दे इक दीप कोई,

रौशनी भी हो यहाँ.

झोपड़ी को राह तकते,

घिर चूका है कहकशाँ.

लूटते सारी ख़ुशी वो,

काट सकते जो गले.

--

शोषणों का दौर है ये,

मान बिकता है यहाँ,

आदमी ही आदमी के,

दाम गिनता है यहाँ.

न्याय कब मिल पायेगा,

वो हाथ यूँ कब तक मले.

--

इक तरफ तो है दिवाली,

रात काली इक तरफ.

इक तरफ है स्वर्ण पूजा,

श्रम उपासक इक तरफ.

बेबसी का दौर कैसा,

क्यों दलित पदतल दले.

--

प्रीत की बारिश कभी,

होगी नहीं इस द्वीप में.

बूँद स्वाती की कभी,

क्या आएगी इस सीप में.

मोतियों की आश में हैं,

कौन उन सबको छले.

**हरिवल्लभ शर्मा 

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 687

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by harivallabh sharma on October 15, 2014 at 3:11pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी , आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार , हौसला बढ़ाते रहें, मार्गदर्शन देते रहें .सादर.

Comment by harivallabh sharma on October 15, 2014 at 3:08pm

आदरणीय shardindu mukerji आपकी स्नेहिल प्रति क्रिया पाकर गौरवान्वित हुआ ,आपकी कसौटी पर बना रहूँ आपके मार्गदर्शन वगैर कठिन है..स्नेह बनाये रखें ..मैं कोशिश जारी रखूँगा.हार्दिक आभार आपका.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 10, 2014 at 4:40pm
आदरणीय
बहुत मनोरम गीत

प्रीत की बारिश कभी,
होगी नहीं इस द्वीप में.
बूँद स्वाती की कभी,
क्या आएगी इस सीप में.
मोतियों की आश में हैं,
कौन उन सबको छले

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on October 10, 2014 at 2:32am
आदरणीय हरिवल्लभ जी, आपकी इस रचना में चिंतन की ताज़गी और हृदय का अनुरणन है....इसीलिए यह विशिष्ट है. आपकी संवेदनशील लेखनी से बहुत कुछ पाने की इच्छा लेकर उन्मुख रहूँगा. सादर अभिनंदन.
Comment by harivallabh sharma on October 10, 2014 at 12:34am

आदरणीय Dr Ashutosh Mishra साहब रचना पर स्नेहिल टीप कर उत्साहित्कारने हेतु हार्दिक आभार...कृपया स्नेह बनाए रखें.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 9, 2014 at 2:57pm

इक तरफ तो है दिवाली,

रात काली इक तरफ.

इक तरफ है स्वर्ण पूजा,

श्रम उपासक इक तरफ.

बेबसी का दौर कैसा,

क्यों दलित पदतल दले. आदरणीय हरिवल्लभ जी बहुत ही पसन् आयी ये रचना ..मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by harivallabh sharma on October 8, 2014 at 4:52pm

आदरणीय जितेन्द्र 'गीत' जी आपकी स्नेहिल टीप से निश्चित ही हौसला बढ़ा है...हार्दिक आभार आपका.

Comment by harivallabh sharma on October 8, 2014 at 4:50pm

आदरणीय Dr. Vijai Shanker जी आपका हार्दिक आभार रचना पर आपका स्नेहिल अनुमोदन मिला , कृपया स्नेह बनाए रखे.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 7, 2014 at 11:50pm

शोषणों का दौर है ये,

मान बिकता है यहाँ,

आदमी ही आदमी के,

दाम गिनता है यहाँ.

न्याय कब मिल पायेगा,

वो हाथ यूँ कब तक मले.......बहुत सही लिखा आपने. आज का समय कुछ यही कहता है, बधाई स्वीकारें आदरणीय हरी जी

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 7, 2014 at 9:31pm
शोषणों का दौर है ये,
मान बिकता है यहाँ,
आदमी ही आदमी के,
दाम गिनता है यहाँ.
न्याय कब मिल पायेगा,
वो हाथ यूँ कब तक मले.
और उसके बाद ....
प्रीत की बारिश कभी,
होगी नहीं इस द्वीप में.
बहुत सही कहा आपने आदरणीय हरिवल्लभ शर्मा जी , बहुत बहुत बधाई इस सामयिक सुन्दर प्रस्तुति के लिये .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
44 minutes ago
नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"आद0 सुरेश कल्याण जी सादर अभिवादन। बढ़िया भावभियक्ति हुई है। वाकई में समय बदल रहा है, लेकिन बदलना तो…"
7 hours ago
नाथ सोनांचली commented on आशीष यादव's blog post जाने तुमको क्या क्या कहता
"आद0 आशीष यादव जी सादर अभिवादन। बढ़िया श्रृंगार की रचना हुई है"
7 hours ago
नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post मकर संक्रांति
"बढ़िया है"
7 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

मकर संक्रांति

मकर संक्रांति -----------------प्रकृति में परिवर्तन की शुरुआतसूरज का दक्षिण से उत्तरायण गमनहोता…See More
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

नए साल में - गजल -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

पूछ सुख का पता फिर नए साल में एक निर्धन  चला  फिर नए साल में।१। * फिर वही रोग  संकट  वही दुश्मनी…See More
8 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। दोहों पर मनोहारी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी , सहमत - मौन मधुर झंकार  "
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"इस प्रस्तुति पर  हार्दिक बधाई, आदरणीय सुशील  भाईजी|"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service