For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नवगीत : सूरज रे जलते रहना.

**सूरज रे जलते रहना.

भीषण हों कितनी पीढायें,

अंतस में दहते रहना.

सूरज रे जलते रहना.

 

घिरते घोर घटा तम बादल,

रोक नहीं तुमको पाते,

सतरंगी घोड़ों के रथ पर,

सरपट तुम बढ़ते जाते.

दिग दिगंत तक फैले नभ पर,

समय चक्र लिखते रहना.

सूरज रे जलते रहना.

 

छीन रहे हैं स्वर्ण चंदोवा,

मल्टी वाले मुस्टंडे.

सीलन ठिठुरन शीत नमी सब,

झुग्गी वाले हैं ठन्डे.

फैले बरगद के नीचे के,

तिनकों की सुनते रहना.

सूरज रे जलते रहना.

 

धुंध धुंआ पाला कुहरा सब.

कष्टों का अम्बार लिए.

कहर ढा रहे ओले बादल,

अपना शस्त्रागार लिए.

शोषण करते इन दुष्टों से.

चौकस हो लड़ते रहना.

सूरज रे जलते रहना.

 

अवयव अपने जला जला कर,

तुम तापस बन तपते हो.,

हरते तमस पीर इस जग की.

परमारथ ही करते हो.

धरती के हर कोने जाकर,

ऊर्जा धन भरते रहना..

सूरज रे जलते रहना. 

 **हरिवल्लभ शर्मा 

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 864

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by harivallabh sharma on January 10, 2015 at 4:05pm

आदरणीय khursheed khairadi साहब  आपका कुशल मार्गदर्शन मिला आपका हार्दिक आभार.

Comment by harivallabh sharma on January 10, 2015 at 4:04pm

आदरणीय somesh kumar जी आपने सुन्दर समीक्षा कर रचना धर्मिता को बल दिया..आपका हार्दिक आभार.

Comment by harivallabh sharma on January 10, 2015 at 4:02pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपका कुशल मार्गदर्शन कलम को शक्ति दे रहा है..कृपया स्नेह बनाए रखें सादर.

Comment by harivallabh sharma on January 10, 2015 at 4:00pm

आदरणीय Sushil Sarna जी आपका हार्दिक आभार आपका  स्नेह मिला 

Comment by harivallabh sharma on January 10, 2015 at 3:58pm

आदरणीय डॉ.गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी , आपका ह्रदय से आभार..आपने रचना को स्नेह देकर सार्थक किया.सादर.

Comment by harivallabh sharma on January 10, 2015 at 3:56pm

आदरणीय laxman dhami जी आपका स्नेह नवगीत को मिला आपका हार्दिक आभार...सादर.

Comment by khursheed khairadi on January 9, 2015 at 11:09am

छीन रहे हैं स्वर्ण चंदोवा,

मल्टी वाले मुस्टंडे.

सीलन ठिठुरन शीत नमी सब,

झुग्गी वाले हैं ठन्डे.

फैले बरगद के नीचे के,

तिनकों की सुनते रहना.

सूरज रे जलते रहना.

आदरणीय हरिवल्लभ सर जी सभी पदों में नये और अछूते प्रयोग किये गये है ,जो मन को बहुत भाए, बधाई |सादर अभिनन्दन | 

Comment by somesh kumar on January 8, 2015 at 4:36pm

छीन रहे हैं स्वर्ण चंदोवा,

मल्टी वाले मुस्टंडे.

सीलन ठिठुरन शीत नमी सब,

झुग्गी वाले हैं ठन्डे.

फैले बरगद के नीचे के,

तिनकों की सुनते रहना.

सूरज रे जलते रहना.

 

धुंध धुंआ पाला कुहरा सब.

कष्टों का अम्बार लिए.

कहर ढा रहे ओले बादल,

अपना शस्त्रागार लिए.

शोषण करते इन दुष्टों से.

चौकस हो लड़ते रहना.

सूरज रे जलते रहना.

 बहुत ही मनोहरी पंक्ति हैं ये इस नवगीत की ,प्रार्थना है  की सूरज रे जलते रहना 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 8, 2015 at 1:29pm

बहुत सुन्दर भाव पूर्ण  गीत रचना के लिये  आपको हार्दिक बधाइयाँ , आदरणीय हरिवल्लभ भाई । 

Comment by Sushil Sarna on January 8, 2015 at 12:46pm

बहुत ही सुंदर भावों से सजे इस  नवगीत के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"वाह वाह  आदरणीय, आपकी प्रस्तुति पर पुन: आता हूँ।  करूँगा मैं चर्चा सबुर आप…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"वाह वाह  आदरणीय, आपकी इस प्रस्तुति पर पुन: आऊँगा।  शुभातिशुभ"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बहुत खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
23 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया

पलभर में धनवान हों, लगी हुई यह दौड़ ।युवा मकड़ के जाल में, घुसें समझ कर सौड़ ।घुसें समझ कर सौड़ ,…See More
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   वाह ! प्रदत्त चित्र के माध्यम से आपने बारिश के मौसम में हर एक के लिए उपयोगी छाते पर…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत कुण्डलिया छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, कुण्डलिया छंद पर आपका अच्छा प्रयास हुआ है किन्तु  दोहे वाले…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया छंद रचा…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आती उसकी बात, जिसे है हरदम परखा। वही गर्म कप चाय, अधूरी जिस बिन बरखा// वाह चाय के बिना तो बारिश की…"
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीया "
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service