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Sulabh Agnihotri's Blog – October 2014 Archive (2)

चौराहे-चौपाल हर जगह मिलते हैं बौराए लोग --- सुलभ अग्निहोत्री

चौराहे-चौपाल हर जगह मिलते हैं बौराये लोग

हमसे, तुमसे, इससे, उससे, सबसे आजिज आये लोग

बड़ी दिलेरी दिखलाते थे बिला वजह हर मौके पर

वक्त पड़ा तो सबसे पहले भागे पूँछ दबाये लोग

भाई का कंधा भी अपने कंधे से उठता देखा

कैसे उसके कद को छांटें, सोच-सोच पगलाये लोग

नुक्कड़-नुक्कड़ ढोल पीटते अपने सूरज होने का

सूरज जब निकला तो बरबस चुंधियाये अँधराये लोग

खुद ही तमगे गढ़े टांककर खुद ही अपने सीने पर

अपने चारण बने आप ही अपने पर…

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Added by Sulabh Agnihotri on October 7, 2014 at 12:00pm — 13 Comments

उनका अभिनंदन है जो कुछ कर गुजरते हैं - सुलभ अग्निहोत्री

उनका अभिनंदन है जो कुछ कर गुजरते हैं ।

भाग्य की प्राण-प्रतिष्ठा के हवन में भी

कर्म ही यजमान बनकर होम करते हैं ।

मेरे शब्दों को अभी स्वर की तमन्ना है,

फड़फड़ाते पंख को आकाश बनना है,

वेदना के गर्भ में संकल्प पलता है

हर अमा को चीर कर सूरज निकलता है

आश्वासन आस से परिहास मत करना

आँसुओं से अन्ततः अंगार झरते हैं ।

चेतना की बाँसुरी को स्नेह की सरगम,

भावना को दे नये उद्गम, नये संगम,

ओस बन अन्तःकरण के कुसुम को धो दे

बीज…

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Added by Sulabh Agnihotri on October 2, 2014 at 8:30pm — 12 Comments

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