For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राम-रावण कथा (पूर्व-पीठिका) 42

कल से आगे ..........

‘‘दोनों बाहर आओ जरा। कुछ वार्ता करनी है।’’ रावण के सो जाने पर सुमाली ने वजृमुष्टि और मारीच से कहा।
दोनों कुटिया से निकल आये। जो मंथन सुमाली के मस्तिष्क में चल रहा था वहीं इनके मस्तिष्कों में भी चल रहा था। रावण की मनस्थिति लंका के सर्वनाश की द्योतक थी। रावण की अनुपस्थिति में विष्णु के लिये उन्हें पुनः समाप्त करना बच्चों का खेल ही था। विष्णु के लिये उन पर आक्रमण करने के लिये कुबेर के साथ किया घात ही पर्याप्त कारण था। और देखो तो विष्णु की टाँग यहाँ भी अड़ी थी। कैसे भी हो रावण को चैतन्य करना ही होगा।
कुटिया से थोड़ी दूर आकर, इतनी दूर कि रावण यदि औषधि के प्रभाव से मुक्त भी हो जाये तो इनकी बातें न सुन पाये और इतनी पास भी कि उनजाने में कोई जंगली जानवर कुटिया की ओर रुख न कर पाये ये लोग खड़े हो गये।
‘‘क्या किया जाये ?’’
‘‘कर भी क्या सकते हैं हम ? बस रावण को शीघ्रातिशीघ्र लंका ले चलने की व्यवस्था करनी है। वहाँ चल कर इसे चैतन्य करने का प्रयास करना है।’’ मारीच बोला।
‘‘मैं इस बच्ची की बात कर रहा हूँ, मूर्खों ! यह हमारे सर्वनाश का कारण बनने वाली है।’’
‘‘वह नन्ही सी जान भला क्या कर लेगी ?’’
‘‘कई बातें हैं जो उसके बिना किये ही हो जायेंगी ?’’
‘‘मैं नहीं समझा, स्पष्ट कहिये।’’
‘‘पहली तो उसके शारीरिक लक्षण कह रहे हैं कि वह पितृकुल के लिये महाविनाश साथ में लेकर आई है।’’
‘‘क्या ?’’ सब चैंक पड़े - ‘‘आपने ठीक से तो देखा।’’
‘‘बच्चा नहीं हूँ मैं जो इतनी महत्वपूर्ण बात में कोई चूक कर जाऊँ ! न ही रावण की भांति उन्माद में हूँ।’’
‘‘फिर ?’’
‘‘जब तक यह बच्ची जीवित रहेगी यह रावण को उस वेदवती की याद दिलाती रहेगी, उसके लिये बहुत कठिन होगा सामान्य स्थिति में आना। पर उसकी कोई बहुत अधिक चिंता नहीं है, समय सारे घाव भर देता है। मुझे तो चिंता इस बात की है कि कहीं इस मनस्थिति में वह विष्णु से जाकर न उलझ जाये। मैं नहीं चाहता कि अभी वह विष्णु के साथ कोई झगड़ा पाले।’’
‘‘आप ठीक कह रहे हैं।’’
‘‘सोचो सब लोग, सोचो ! इस कन्या से कैसे छुटकारा पाया जाये। यह जीवित रही तो सर्वनाश निश्चित है।’’
‘‘इसे कैसे मार सकते हैं ? रावण का क्या होगा ? रावण क्या करेगा ?’’
‘‘यही तो कंटक है पुत्रों ! नहीं तो इसे समाप्त कर ही दिया होता। इसे समाप्त करने का प्रयास करते ही कहीं रावण हमारे ही विरुद्ध न खड़ा हो जाये तो ....’’ सुमाली ने सिर झटकते हुये बात अधूरी छोड़ दी।
‘‘कैसी स्थिति है ? एक जरा सी जान जिसे एक फूँक में उड़ा सकते हैं, हम उसका कुछ नहीं कर पा रहे।’’
‘‘काश कोई वन्य-पशु आकर इसे उठा ले जाये और काम तमाम कर दे इसका !’’ मारीच लम्बी सांस छोड़ते हुये बोला।
‘‘तुम मूर्ख ही रहोगे सदैव मारीच ! रावण के होते क्या ऐसा संभव है ? और रावण के पीछे हमने कुछ होने दिया तो रावण हमें ही दोषी मानेगा। रावण के एक क्षण के आवेग ने सब नष्ट कर दिया। फिर उसके लक्षण कह रहे हैं कि हम उसका कुछ नहीं बिगाड़ पायेंगे। वह जीवित रहेगी और हमारे सिर पर तलवार की भांति लटकती रहेगी।’’
बहुत देर तक विचार विमर्श चला पर कोई कारगर उपाय नहीं सूझा। अंततः प्रातः कोई फैसला करने का निश्चय कर सब कुटिया में आकर सो गये।
रात में सुमाली को एक कमजोर ही सही पर युक्ति सूझ ही गयी। उसने प्रयास करने का निश्चय किया। सुबह दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होते ही वह रावण के पास जाकर बैठ गया। आज रावण अपेक्षाकृत सामान्य था। सुमाली समझ रहा था कि उसके हृदय में आग जल रही है पर उसने अपनी भावनाओं के ज्वार पर काबू पा लिया था।
‘‘पुत्र एक प्रश्न पूछूँ ?’’
‘‘पूछिये मातामह ?’’ रावण ने सिर झुकाये-झुकाये ही उत्तर दिया। वह बेटी के बदन पर हाथ फेर रहा था।
‘‘तुम कह रहे थे कि वेदवती की इच्छा थी कि वह विष्णु को प्राप्त करे।’’
‘‘हाँ !’’
‘‘मृत्यु के समय उसने कहा था कि अब उसकी बेटी विष्णु को प्राप्त करेगी।’’
‘‘हाँ ! वह बोली कि ‘मेरी तपस्या फलीभूत अवश्य होगी। अब मेरी बेटी विष्णु को प्राप्त करेगी।’’
‘‘पर पुत्र क्या तुम्हारी पुत्री का विष्णु से विवाह किसी भी प्रकार संभव है ?’’
इस प्रश्न पर रावण मौन हो गया। अब वह सोचने-समझने की स्थिति में आ चुका था, प्रश्न की गंभीरता वह अनुभव कर रहा था। सुमाली धैर्य से उसके बोलने की प्रतीक्षा करता रहा। लम्बे मौन के बाद आखिर रावण बोला -
‘‘नहीं मातामह ! देवों के साथ जो रिश्ते बन गये हैं उनके चलते न तो मैं अपनी कन्या को इसकी अनुमति दे सकता हूँ और यदि दे भी दूँ तो विष्णु तो कदापि ऐसे किसी भी प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेगा। मैं जानता हूँ अभी मैंने देवों का कुछ नहीं बिगाड़ा है किंतु फिर भी वे मुझे अपना सबसे बड़ा शत्रु मानते हैं। मैं शत्रुता त्याग भी दूँ भी वे नहीं त्यागेंगे। उनकी कुटिलता का कोई पार नहीं। और विष्णु ... वह तो सारे देवों से अधिक कुटिल है।’’
‘‘तो क्या तुम्हारी वेदवती की अंतिम इच्छा अधूरी रह जायेगी ? अत्यंत शुभलक्षणी है यह कन्या ! मैं देख रहा हूँ इसे दीर्घायु का योग है। मैं देख रहा हूँ कि यह किसी परम प्रतापी व्यक्ति का वरण करेगी।’’
‘‘वह परम प्रतापी क्या विष्णु होगा ?’’
‘‘हो भी सकता है। यह तो कन्या के भाग्य और उसकी माता के दृढ़ विश्वास पर निर्भर करता है।’’
‘‘यह भी है। पता नहीं कौन सी शक्ति है जो सब कुछ नियंत्रित करती है ? मुझे पता हो जाता तो मैं उससे लड़ कर इसके भाग्य में विष्णु का वरण लिखवा लाता। वेदवती की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिये मैं सबसे लड़ सकता हूँ।’’
‘‘यदि तुम एक बड़ा त्याग करने को तत्पर हो जाओ तो यह संभव हो सकता है।’’
‘‘क्या मातामह ?’’ रावण ने इतनी देर में पहली बार नजरें उठायीं- ‘‘क्या मैं विष्णु मेरी प्रार्थना स्वीकार कर लेगा ?’’
‘‘नहीं पुत्र ! वह कदापि नहीं स्वीकार करेगा।’’
‘‘फिर मातामह ? फिर व्यर्थ की आशा क्यों दिलाते हैं ?’’ रावण के स्वर में फिर हताशा आ गयी थी।’’
‘‘यदि कोई यह जाने ही नहीं कि यह तुम्हारी कन्या है। यदि यह किसी प्रकार किसी ऐसे व्यक्ति की कन्या हो जाये जिससे विष्णु को कोई वैमनस्य न हो, तो ऐसा हो सकता है।’’
‘‘पर यह तो मेरी कन्या है, मातामह ! किसी दूसरे की कन्या कैसे हो सकती है ?’’ रावण की समझ में सुमाली की बात नहीं आई थी। सुमाली चाहता भी नहीं था कि वह एकदम से सारी बात समझ जाये।
‘‘यह अभी से चुपचाप किसी ऐसे व्यक्ति के पास पहुँच जाये।’’
‘‘कैसे पहुँच जायेगी मातामह, और वह क्योंकर इसे स्वीकार ही कर लेगा। जो भी विष्णु के भले हैं वे सब तो रावण के बैरी हैं।’’
‘‘उसकी ना जानकारी में कि यह तुम्हारी कन्या है। बस तुम्हें तुम्हें एक बड़ा त्याग करना होगा, इसे स्वयं से अलग करना होगा। कभी भी इससे इसका पिता बन कर नहीं मिलना होगा।’’
‘‘मातामह ! क्या मैं अपनी कन्या यूँ ही किसी के भी पास डाल दूँगा ? आखिर यह रावण की कन्या है।’’
‘‘सब हो जायेगा ! यह आर्यावर्त के सबसे श्रेष्ठ नरेश के पास जायेगी। ऐसे नरेश के पास जिसकी सब इज्जत करते हैं, जिसका कोई भी शत्रु नहीं है।’’
‘‘ऐसा तो एक ही व्यक्ति है मातामह ! विदेहराज।’’
‘‘ठीक समझे।’’
‘‘मातामह पर वे तो विदेहराज है, सहज, सरल, सत्यवक्ता ... वे कैसे छिपायेंगे यह रहस्य कि यह रावण की कन्या है। उनके पास यदि यह रहेगी तो मैं तो इससे बिछोह स्वीकार कर भी लूँगा।’’
‘‘उन्हें यह पता ही नहीं होगी कि यह रावण की पुत्री है।’’
‘‘कैसे होगा यह ?’’
‘‘यह मुझ पर छोड़ दो। विदेहराज का राज्य थोड़ी दूर पर है और हमारे मार्ग में भी है।’’
‘‘फिर भी मातामह कैसे होगा यह ? मुझे तो कोई तरीका नहीं दिखाई दे रहा।’’
‘‘तुम तो पुत्र एक वर्ष से सारी दुनियाँ से कटे रहे हो। तुम्हें पता ही क्या है।’’
‘‘ठीक हैं आप, पर इससे क्या अन्तर पड़ता है ?’’
‘‘पुत्र विदेहराज कल प्रातः यज्ञ के लिये यज्ञभूमि महारानी के साथ स्वयं हल से जोत कर समतल करेंगे। बस वहीं यह कन्या एक मंजूषा में उन्हें प्राप्त हो जायेगी। वे सहज ही इसे अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार करेंगे, पूरा प्यार देंगे।’’
‘‘देंगे ! कोई शंका नहीं इसमें। विदेहराज पर रावण को पूरा भरोसा है। आर्यों में वे ही तो एक सज्जन हैं।’’
‘‘तब फिर बात पक्की रही ?’’
‘‘मातामह ! कितने क्रूर हैं आप ! वेदवती चली गई और अब आप उसकी निशानी भी मुझ से छीन लेना चाहते हैं।’’
‘‘क्या और कोई मार्ग है पुत्र ? हो तो मुझे बताओ।’’
‘‘नहीं है मातामह।’’
‘‘तो अब मुझे मेरी कन्या के साथ अकेला छोड़ दीजिये। आज रात्रि तक कोई न आये हमारे बीच।’’
‘‘ऐसा ही होगा पुत्र किंतु दैनिक क्रियाओं से तो निवृत्त हो लो।’’
‘‘नहीं आज कुछ नहीं करेगा रावण। केवल अपनी पुत्री से बात करेगा। पता नहीं विधि दुबारा इससे बात करने का सौभाग्य देगी भी रावण को या नहीं !’’
‘‘चलो तुम्हारी बात ही सही।’’
‘‘किंतु मातामह देखिये इसे मंजूषा में कोई असुविधा न हो, इसे चोट लगने का कोई भय न हो - सारी व्यवस्थायें देख लीजियेगा। और हाँ इसे तभी मंजूषा में रखियेगा जब आप उस स्थान पर पहुँच जायें और हाँ इसके लिये मंजूषा में दूध का प्रबंध कैसे करेंगे - यदि इसे भूख लग आई तो, और यह अपने आप पियेगी कैसे ? और ...’’
‘‘अरे पुत्र क्या तुम्हें अपने मातामह पर भरोसा नहीं ? क्या तुम्हारी पुत्री सुमाली की कुछ नहीं है ? सुमाली के लिये तो यह सृष्टि का सबसे अनमोल रतन है। सुमाली को यह सृष्टि में सबसे प्रिय है - उसके रावण से भी अधिक।’’ कहते हुये सुमाली हँस पड़ा। उसके सीने से बहुत बड़ा पत्थर हट गया था। फिर भी वह सोच रहा था कि काश इस कन्या से पूरी मुक्ति पाने का कोई मार्ग होता ?
रावण भी इस बात पर मुस्कुरा उठा। फिर बोला -
‘‘फिर भी मातामह पूरी सावधानी रखियेगा।’’

क्रमशः

मौलिक एवं अप्रसारित

- सुलभ अग्निहोत्री

Views: 452

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
2 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
14 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
15 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
16 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
17 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
17 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
17 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
17 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीया, पूनम मेतिया, अशेष आभार  आपका ! // खँडहर देख लें// आपका अभिप्राय समझ नहीं पाया, मैं !"
17 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय रिचा यादव जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
17 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service