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वीनस केसरी's Blog – October 2012 Archive (4)

कहानी - नशा - वीनस केसरी

पांचवा दिन| घर बिखरा हुआ है, हर सामान अपने गलत जगह पर होने का अहसास करवा रहा है, फ्रिज के ऊपर पानी की खाली बोतलें पडी हैं, पता नहीं अंदर एकाध बची भी हैं या नही; बिस्तर पर चादर ऐसी पडी है की समझ नहीं आ रहा बिछी है या किसी ने यूं ही बिस्तर पर फेक दी है; कोई और देखे तो यही समझे की बिस्तर पर फेंक दी है, कोई भला इतनी गंदी चादर कैसे बिछा सकता है | शायद मानसी के जाने के दो या तीन दिन पहले से बिछी हुई है | बाहर बरामदे की डोरी पर मेरे कुछ कपड़ें फैले है | तार में कपड़ों के बीच कुछ जगह खाली है, कपडे…

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Added by वीनस केसरी on October 30, 2012 at 3:23am — 16 Comments

ग़ज़ल - वो मेरी शख्सियत पर छा गया तो

एक ताज़ा ग़ज़ल पेश ए खिदमत है गौर फरमाएं -



वो मेरी शख्सियत पर छा गया तो | 

ये सपना है, मगर जो सच हुआ तो |



दिखा है झूठ में कुछ फ़ाइदा तो |

मगर मैं खुद से ही टकरा गया तो |



मुझे सच से मुहब्बत है, ये सच है,

पर उनका झूठ भी अच्छा लगा तो |



शराफत का तकाज़ा तो यही है,

रहें चुप सुन लिया कुछ अनकहा तो |



करूँगा मन्अ कैसे फिर उसे…

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Added by वीनस केसरी on October 23, 2012 at 12:18am — 16 Comments

दिल की बात कहे दिल वाला .....

लिखा छन्द टेढ़ मेढ़,
कर दिया ऐड़ बेड़,
छंद अनुराग जो भी,
करावाये कम है |

किया है सुधार जब,
छन्द महारथियों ने,
लगा अब रचना में,
आया कुछ दम है |

छन्द का है भूत चढ़ा,
रात दिन रटा पढ़ा,
और अब लिखने को
उठाई कलम है |

दोहा रोला घनाक्षरी,
उल्लाला भी लिखूंगा मैं,
सीखूंगा मैं अपनों से,
काहे की शरम है ||


जय हो

Added by वीनस केसरी on October 21, 2012 at 12:00am — 4 Comments

एक नवगीत : शब्द चित्रों की सफलता के लिए

खूबसूरत दृश्य

हम गढ़ते रहे,

शब्द चित्रों की

सफलता के लिए |





शहर धीरे धीरे

बन बैठा महीन

दिख रहा है हर कोई

कितना जहीन

गाँव दण्डित है

सहजता के लिए || १ ||



घर की दीवारों

में हाहाकार है

लक्ष्मी का रूप

अस्वीकार है

कौन सोचे

नव प्रसूता के लिए || २ ||



जब से हम सब

खुद पे अर्पण हो गये

बस तभी शीशा से

दर्पण हो गये

या सुपारी हैं

सरौता के लिए || ३ ||…



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Added by वीनस केसरी on October 13, 2012 at 1:00am — 6 Comments

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