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डॉ पवन मिश्र's Blog – September 2016 Archive (5)

ताटंक छन्द- उरी हमले के संदर्भ में

नापाक इरादों को लेकर, श्वान घुसे फिर घाटी में।

रक्त लगा घुलने फिर देखो, केसर वाली माटी में ।।

सूनी फिर से कोख हुई है, माँ ने शावक खोये हैं।

चीख रही हैं बहिनें फिर से, बच्चे फिर से रोये हैं।१।

सिसक रही है पूरी घाटी, दिल्ली में मंथन जारी।

प्रत्युत्तर में निंदा देते, क्यूँ है इतनी लाचारी।।

अंदर से हम मरे हुए हैं, पर बाहर से जिन्दा हैं।

माफ़ करो हे भारत पुत्रों, आज बहुत शर्मिंदा हैं।२।

वो नापाक नहीं सुधरेंगे, कब ये दिल्ली…

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Added by डॉ पवन मिश्र on September 19, 2016 at 3:30pm — 7 Comments

ग़ज़ल- सितारे रक़्स करते हैं

1222 1222 1222 1222



उन्हें देखें जो बेपर्दा सितारे रक़्स करते हैं।

नज़र जो उनकी पड़ जाए नज़ारे रक़्स करते हैं।।



तेरे पहलू में होने से शबे दैजूर भी रौशन।

बरसती चाँद से खुशियाँ सितारे रक़्स करते हैं।।



तुम्हे है इल्म मेरी जिंदगी कुछ भी नही तुम बिन।

इन्हीं वजहों से तो नख़रे तुम्हारे रक़्स करते हैं।।



कभी तो तुम ही आओगे शबे हिज़्रां मिटाने को ।

इसी उम्मीद से अरमां हमारे रक़्स करते हैं।।



जड़ों की कद्र तो केवल समझते हैं वही पत्ते।

शज़र… Continue

Added by डॉ पवन मिश्र on September 18, 2016 at 9:55am — 14 Comments

कुण्डलिया- हिंदी दिवस के सम्बन्ध में

हिन्दी तो अनमोल है, मीठी सुगढ़ सुजान।

देवतुल्य पूजन करो, मात-पिता सम मान।।

मात-पिता सम मान, करो इसकी सब सेवा।

मिले मधुर परिणाम, कि जैसे फल औ मेवा।।

कहे पवन ये बात, सुहागन की ये बिन्दी।

इतराता साहित्य, अगर भाषा हो हिन्दी।१।

 

दुर्दिन जो हैं दिख रहे, इनके कारण कौन।

सबकी मति है हर गई, सब ठाढ़े हैं मौन।।

सब ठाढ़े हैं मौन, बांध हाथों को अपने।

चमत्कार की आस, देखते दिन में सपने।।

सुनो पवन की बात, प्रीत ना होती उर बिन।

होती सच्ची चाह, न…

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Added by डॉ पवन मिश्र on September 14, 2016 at 9:30pm — 13 Comments

ग़ज़ल- वो कहे लाख चाहे ये सरकार है

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वो कहें लाख चाहे ये सरकार है।

मैं कहूँ चापलूसों का दरबार है।।

मेरी लानत मिले रहनुमाओं को उन।

देश ही बेचना जिनका व्यापार है।।

कौम की खाद है वोट की फ़स्ल में।

और कहते उन्हें मुल्क़ से प्यार है।।

सब चुनावी गणित नोट से हल किये।

जीत तो वो गये देश की हार है।।

चट्टे बट्टे सभी एक ही थाल के।

बस सियासत ही है झूठी तकरार है।।

अब बयां क्या करे इस चमन को पवन।

शाख़ पर उल्लुओं की तो…

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Added by डॉ पवन मिश्र on September 9, 2016 at 9:02pm — 6 Comments

गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल- इश्क़ की राहों में

2122 2122 212



इश्क़ की राहों में हैं रुसवाईयाँ।

हैं खड़ी हर मोड़ पर तन्हाईयाँ।।

क्या करे तन्हा बशर फिर धूप में।

साथ उसके गर न हो परछाइयाँ।।

ऐ खवातीनों सुनों मेरा कहा।

क्यूँ जलाती हो दिखा अँगड़ाइयाँ।।

चाहता हूं डूबना आगोश में।

ऐ समंदर तू दिखा गहराइयाँ।।

दिल दिवाने का दुखा, किसको ख़बर ?

रात भर बजती रही शहनाइयाँ।।

तुम गये तो जिंदगी तारीक है।

हो गयी दुश्मन सी अब रानाइयाँ।।

दूर…

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Added by डॉ पवन मिश्र on September 1, 2016 at 9:54pm — 6 Comments

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