1222—1222—1222—1222 |
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कभी मैं खेत जैसा हूँ, कभी खलिहान जैसा हूँ |
मगर परिणाम, होरी के उसी गोदान जैसा हूँ |
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मुझे इस मोह-माया, कामना ने भक्त… |
Added by मिथिलेश वामनकर on September 27, 2015 at 9:30am — 28 Comments
फ़'इ'लात फ़ाइलातुन फ़'इ'लात फ़ाइलातुन |
1121 - 2122 - 1121 – 2122 |
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कभी ये रहा है बेहद, कभी मुख़्तसर रहा है |
मेरा दर्द तो हमेशा, दिलो-जां जिगर रहा है… |
Added by मिथिलेश वामनकर on September 23, 2015 at 10:00am — 18 Comments
2122-- 1122 --1122 --112 |
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इस तरह आज हमें होश में आने का नहीं |
मुफ्त आई है मगर यार पिलाने का नहीं |
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सिर्फ रोता हुआ हर गीत सुनाने का नहीं… |
Added by मिथिलेश वामनकर on September 21, 2015 at 4:25am — 22 Comments
2122---2122---2122---212 |
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वो बदल जाए खुदारा बस इसी उम्मींद पर |
हर दफा उनकी ख़ता रखते रहे ज़ेरे-नजर |
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ये इशारे मानिए दरिया बहुत गहरा… |
Added by मिथिलेश वामनकर on September 19, 2015 at 3:00am — 24 Comments
1222---1222---122 |
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नज़र इंसान की घातक हुई क्या? |
अभी नासाफ़ थी, हिंसक हुई क्या? |
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भरोसा जिन्दगी से उठ गया जो… |
Added by मिथिलेश वामनकर on September 17, 2015 at 4:11am — 21 Comments
1212--- 1122---1212---22 |
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अगर नहीं था यकीं क्यों हलफ उठा आया |
ज़रा सी बात पे फिर आज मुँह फुला आया |
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पहाड़ कौन सा टूटा, जो तेरी बातों… |
Added by मिथिलेश वामनकर on September 10, 2015 at 9:30am — 26 Comments
221—2121—1221-212 |
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हमको तो खुल्द से भी मुहब्बत नहीं रही |
या यूं कहें कि पाक अकीदत नहीं रही |
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जाते कहाँ हरेक तरफ यार ही… |
Added by मिथिलेश वामनकर on September 9, 2015 at 9:30am — 18 Comments
1212--- 1122---1212---22 |
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जरा खंरोच जो आई लगे सदा करने |
कलम जो धड़ से है, जाएँ कहाँ दवा करने |
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उसे भरम है अदालत से फैसला… |
Added by मिथिलेश वामनकर on September 7, 2015 at 9:30pm — 36 Comments
2122—1122—1122—22 |
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मेरी नींदों को सताने से बता क्या होगा? |
इस तरह ख़ाब में आने से बता क्या होगा? |
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आज अहसास का सागर जो कहीं गुम यारों … |
Added by मिथिलेश वामनकर on September 5, 2015 at 10:00am — 24 Comments
121-22---121-22---121-22---121-22 |
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मेरी पुरानी जो वेदना थी वो आज थोड़ी सबल हुई है |
ज़रा सी फिर आँख डबडबाई इसी तरह से ग़ज़ल हुई है |
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खुदा के अपने ये… |
Added by मिथिलेश वामनकर on September 4, 2015 at 10:00am — 30 Comments
221—2121—1221-212 |
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इतना तो काम आप को करना पड़ेगा जी |
जन्नत जो देखना है तो मरना पड़ेगा जी |
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माना कि बादशाहे-आसमां है वो… |
Added by मिथिलेश वामनकर on September 3, 2015 at 2:28pm — 12 Comments
22---22---22---22 |
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सूखा है, घर के नल जैसा |
जीवन उजड़ा नक्सल जैसा |
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हुक्कामों से प्रश्न हुआ तो… |
Added by मिथिलेश वामनकर on September 1, 2015 at 9:30am — 18 Comments
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