सौन्दर्य तुम्हारा प्रियतमे, सप्तसुर संगीत है!
धरती-गगन संयुक्तता सा, प्रेम अपना गीत है!
संसार ये अतिशय है तप्त, मै बहुत संतप्त हूं!
संतप्तता के इस गहर में, संग तुम तो शीत है!
जग क्षितिज पर पाषाणता के, है तुम्हे भी कष्ट दे!
परन्तु उसी जग हेतु तुममे, शेष अति नवनीत है!
तुम नित करो नवनीत वर्षण, जग बदल सकता नही!
पाषाण मानव के ह्रदय में, कृतघ्न एक रीत है!
सत्प्रेमता का इस मनुज में, भाव कोई है नही!
सो…
Added by पीयूष द्विवेदी भारत on August 30, 2012 at 11:30am — 8 Comments
काश कोई होता जिसपे मेरा अधिकार होता!
काश कोई होता जिसको मुझसे भी प्यार होता!
जिसके बिन मेरा जीवन पतझड़ सा ही सूना है!
पास है मेरे सबकुछ पर वो नहीं तो फिर क्या है!
पतझड़ से सूने जीवन में बनकर बहार होता!
काश कोई होता जिसको मुझसे भी प्यार होता!
प्रेम कहानी, गीत-गज़ल…
ContinueAdded by पीयूष द्विवेदी भारत on August 29, 2012 at 12:54pm — 6 Comments
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