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जुल्फ है कारे मोती झरते
रतनारे मृगनयनी नैन
हंस नैन हैं गोरिया मेरे
'मोती ' पी पाते हैं चैन
आँखें बंद किये झरने मैं
पपीहा को बस 'स्वाति' चैन
लोल कपोल गाल ग्रीवा से
कँवल फिसलता नाभि मेह
पूरनमासी चाँद चांदनी
जुगनू मै ताकूँ दिन रैन
धूप सुनहरी इन्द्रधनुष तू
धरती नभ चहुँ दिशि में फ़ैल
मोह रही मायावी बन रति
कामदेव जिह्वा ना बैन
डोल रही मन 'मोरनी'…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 23, 2014 at 6:14pm — 16 Comments
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