For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Naveen Mani Tripathi's Blog – August 2017 Archive (8)

ग़ज़ल

2122 2122 2122 212

वो तेरा छत पर बुलाकर रूठ जाना फिर कहाँ ।

वस्ल के एहसास पर नज़रें चुराना फिर कहाँ ।।



कुछ ग़ज़ल में थी कशिश कुछ आपकी आवाज थी ।

पूछता ही रह गया अगला तराना फिर कहाँ ।।



आरजू के दरमियाँ घायल न हो जाये हया ।

अब हया के वास्ते पर्दा गिराना फिर कहाँ ।।



कातिलाना वार करती वो अदा भूली नहीं ।

शह्र में चर्चा बहुत थी अब निशाना फिर कहाँ ।।



तोड़ते वो आइनों को बारहा इस फिक्र में ।

लुट गया है हुस्न का इतना खज़ाना फिर कहाँ… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on August 28, 2017 at 12:18am — 9 Comments

ग़ज़ल -- शरबती आंखों से अब पीना पिलाना फिर कहाँ

2122 2122 2122 212

वो तेरा छत पर बुलाकर रूठ जाना फिर कहाँ ।

वस्ल के एहसास पर नज़रें चुराना फिर कहाँ ।।



कुछ ग़ज़ल में थी कशिश कुछ आपकी आवाज थी ।

पूछता ही रह गया अगला तराना फिर कहाँ ।।



आरजू के दरमियाँ घायल न हो जाये हया ।

अब हया के वास्ते पर्दा गिराना फिर कहाँ ।।



कातिलाना वार करती वो अदा भूली नहीं ।

शह्र में चर्चा बहुत थी अब निशाना फिर कहाँ ।।



तोड़ते वो आइनों को बारहा इस फिक्र में ।

लुट गया है हुस्न का इतना खज़ाना फिर कहाँ… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on August 25, 2017 at 10:30pm — 2 Comments

ग़ज़ल -

221 1221 1221 122



माना कि तेरे दिल की इनायत भी बहुत थी ।

पर साथ इनायत के हिदायत भी बहुत थी ।।



आते थे वो बेफिक्र मेरे शहर में अक्सर ।

तहजीब निभाने की रवायत भी बहुत थी ।।



महंगे मिले हैं लोग मुहब्बत के सफ़र में ।

यह बात अलग है कि रिआयत भी बहुत थी।।



चेहरे को पढा उसने कई बार नज़र से ।

महफ़िल में तबस्सुम की किफ़ायत भी बहुत थी ।।



वो हार गए फिर से अदालत में सरेआम ।

हालाकि नजीरों की हिमायत भी बहुत थी ।।



छूटी हैं… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on August 23, 2017 at 9:00am — 8 Comments

ग़ज़ल - चाँद छिपता रहा फासले के लिए

212 212 212 212



इक नज़र क्या उठी देखने के लिए ।

चाँद छिपता गया फासले के लिए ।।



कोई सरसर उड़ा ले गई झोपड़ी ।

सोचिये मत मुझे लूटने के लिए ।।



मौत मुमकिन मेरी उसको आना ही है ।

दिन बचे ही कहाँ काटने के लिए ।।



जहर जो था मिला आपसे प्यार में ।

लोग कहते गए घूँटने के लिए ।।



रात आई गई फिर शहर हो गई ।

याद कहती रही जागने के लिए ।।



जब रकीबो से चर्चा हुई आपकी ।

फिर पता मिल गया ढूढने के लिए ।।



सज के आए हैं… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on August 22, 2017 at 6:00pm — 10 Comments

नए चेहरों की कुछ दरकार है क्या

1222 1222 122



नए चेहरों की कुछ दरकार है क्या ।

बदलनी अब तुम्हें सरकार है क्या ।।



बड़ी मुश्किल से रोजी मिल सकी है ।

किया तुमने कोई उपकार है क्या ।।



सुना मासूम की सांसें बिकी हैं ।

तुम्हारा यह नया व्यापार है क्या ।।



इलेक्शन लड़ गए तुम जात कहकर ।

तुम्हारी बात का आधार है क्या ।।



यहां पर जिस्म फिर नोचा गया है ।

यहां भी भेड़िया खूंखार है क्या ।।



बड़ी शिद्दत से मुझको पढ़ रहे हो ।

मेरा चेहरा कोई अखबार है क्या…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on August 20, 2017 at 4:30pm — 12 Comments

ग़ज़ल

122 122 122 122

ख़यानत की खातिर मुहब्बत नहीं है ।

मेरी आशिकी क्या अमानत नहीं है ।।



हुई दफ़अतन जो ख़ता थी नज़र से ।

हमें अब नज़र से शिकायत नहीं है ।।



मिटा कर चले जा रहे हैं उमीदें ।

बची आप में भी सराफ़त नहीं है ।।



चले आइये बज्म में रफ्ता रफ्ता ।

मेरी आप से अब अदावत नहीं है ।।



ठहर जाने वाले यकीं कर मेरा तू ।

मेरे दिल की अब तक इज़ाजत नहीं है ।।



तेरे दर पे आना मुनासिब कहाँ अब ।

वहां आशिकों की निज़ामत नहीं है… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on August 7, 2017 at 5:25pm — 15 Comments

ग़ज़ल

221 2121 1221 212

इतनी जफ़ा शबाब पे लाया न कीजिये ।

मुझको मेरा वजूद बताया न कीजिये ।।



भूखें हैं नौजवान कटोरा है हाथ में ।

थाली किसी के हक़ की हटाया न कीजिये ।।



बेटा पढा लिखा के वो नीलाम हो गया ।

कोटे की राजनीति कराया न कीजिये ।।



अब न्याय क्या करेंगे कभी आप मुल्क से ।

झूठी तसल्लियों को दिलाया न कीजिये ।।



कुर्सी पे जात ढूढ के चेहरा दिखा दिया ।

गन्दा है जातिवाद सिखाया न कीजिये ।।



वो जल रहा है आज भी मण्डल की आग से… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on August 4, 2017 at 7:53pm — 3 Comments

ग़ज़ल -कायम रहा रुतबा तेरा

2212 2212 2212 2212



बस रात भर की बात थी , फिर भी रहा पहरा तेरा ।

ऐ चाँद तेरी बज़्म में कायम रहा रुतबा तेरा ।।



वो तीरगी जाती रही रोशन लगी हर शब मुझे ।

मेरे तसव्वुर में कभी जब अक्स ये उभरा तेरा ।।



टूटा हुआ तारा था इक हँसता रहा क्यूँ कहकशां ।

यूँ ही जमीं से देखता मैं रह गया लहज़ा तेरा ।।



देकर गई है मुफ़लिसी ,कुछ तज्रिबा भी कीमती ।

मुझको अभी तक याद है ,बख़्शा हुआ सदक़ा तेरा।।



है जिक्र तेरे हुस्न का बाकी कोई चर्चा नहीं ।

है… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on August 1, 2017 at 2:00pm — 10 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

vibha rani shrivastava replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
""ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123विषय : जय/पराजय आषाढ़ का एक दिन “बुधौल लाने के…"
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आपकी रचना का। प्रदत्त विषयांतर्गत बेहद भावपूर्ण और विचारोत्तेजक कथानक व कथ्य…"
3 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
15 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सुन, ससुराल में किसी से दब के रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अरे भाई, हमने कोई फ्री में सादी थोड़ी की…"
15 hours ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
21 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
yesterday
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service