कहूं तो केवल कहूं मैं इतना कि कुछ तो परदा नशीन रखना।
कदम अना के हजार कुचले,
न आस रखते हैं आसमां की,
ज़मीन पे हैं कदम हमारे,
मगर खिसकने का डर सताए, पगों तले भी ज़मीन रखना।
उदास पल को उदास रखना,
छिपी तहों में खुशी दबी है,
न झूठी कोई तसल्ली लाना,
हो लाख कड़वी हकीकतें पर, न ख़्वाब कोई हसीन रखना।
दसों दिशाएं विलाप में हैं,
बिसात बातों की बिछ गई है,
बुनाई लफ्जों की हो रही है,
हमारे आधे में तय तुम्हारा रखा है आधा यकीन…
Added by मिथिलेश वामनकर on May 29, 2024 at 11:52pm — 8 Comments
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