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Veerendra Jain's Blog – May 2011 Archive (4)

ज़रा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया है ..

सुनी मैंने दिल की जब जब मुझे  रुस्वा कराया है
खुदा तुझको बताकर मुझ से  फिर  सजदा कराया है |
फकत हालात  ही रचते हैं ये  साजिश मेरी खातिर  
कभी तुमसे कभी खुदसे मेरा फासला कराया है |
जिसे सींचा लहू से मेरे अपने  आज उसकी ही
ज़रा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया है |
कभी मेरी कभी तेरी कभी इसकी कभी उसकी
लगा बोली सभी की रूह से धंधा कराया है |
बनाती है, मिटाती है, मिटाकर फिर बनाती…
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Added by Veerendra Jain on May 31, 2011 at 12:27am — No Comments

इबादत...

 

उखाड़ दो खूंटे ज़मीन से इबादतगाहों के ,

 

उतारो गुम्बद,

 

समेटो खम्भे,

 

उधेड़ दो सारे मंदिर-मस्जिदों के धागे,

 

मिट्टी-पत्थरों में ख़ुदा नहीं बसता,

 

सुकूँ…

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Added by Veerendra Jain on May 23, 2011 at 1:40pm — 10 Comments

ज़िन्दगी के कैनवास पर...

 

 

 

ज़िन्दगी के कैनवास पर

जीवन का मनमोहक चित्र

बनाता है वो

रंग भी मुरीद हैं

उसकी इस कला के ,

रंग प्यार के

रंग अपनेपन के

रंग दोस्ती के

रंग करुणा…

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Added by Veerendra Jain on May 16, 2011 at 11:50am — 4 Comments

माँ ......

माँ , रहती हो हर पल मेरे साथ .....



जब निकलता हूँ घर से बाहर , चाहे मैं पलटकर देखूं ना देखूं

खड़ी रहती हो तुम दरवाज़े पर ही जब तक हो ना जाऊं ओझल गली के मोड़ पर ,

और फिर चलने लगती हो साथ मेरे दुआओं के रूप में .....



नींद ना आये जब मुझे तो गुज़ार देती हो सारी रात ,

थपकियाँ देते हुए मेरे माथे पर ,

और सो जाता हूँ मैं सुकून से .....



कभी जो आना-कानी करूँ खाने के नाम पे ,

तो यूं खिलाती हो अपने हाथों से ,

मानो भूख मेरी शांत होती हो और तृप्त… Continue

Added by Veerendra Jain on May 10, 2011 at 12:21am — 7 Comments

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