एकाकी, एकाकी
जीवन है एकाकी...
मैं भी हूँ एकाकी,
तू भी है एकाकी,
जीवन पथ पर चलना है
हम सबको एकाकी I
ना कोई तेरा है,
ना है किसी का तू,
मोह-माया के फेरे में
जीवत्व है एकाकी I
आया तू अकेला था,
जाएगा भी अकेला ही,
आने-जाने के इस क्रम में
होना है एकाकी I
संसार के मेले में,
भ्रमों का रेला है,
बहने की है नियती
जड़ को तो बहना है,
स्मरण मगर रख ले
चेतन ये एकाकी I
ये तन है क्षण भन्गुर,
पल में मिट जाएगा,
माटी का है ढेला ये,
माटी में ही मिल जाएगा,
तन के इस सुख-दुख में
खुद को रख एकाकी I
लाया ना संग कुछ भी,
जाना भी है खाली हाथ,
कर्मों का इक लेखा
होगा बस तेरे साथ,
द्वार पर परमात्मा के
हर आत्मा है एकाकी I
एकाकी, एकाकी
जीवन है एकाकी...
Comment
आचार्य जी... आपने मेरी रचना पढ़ी एवम् मार्गदर्शन किया इसके लिए हार्दिक आभारी हूँ आपका...
आप जैसा कह रहे हैं कि चोला के स्थान पर "लेखा" हो, यही उचित है...चोला शब्द अनुचित ही प्रतीत हो रहा है...मुझे सुधारने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद..
सलिल जी....सामाजिक जीवन को लेकर मेरा सोचना ये था कि सामाजिक दायित्वों का वहन तो हमें करना ही है किंतु, इन सबमे आत्मा को एकाकी रखा जाए, इसलिए मैने ये पंक्तियाँ लिखने की कोशिश की..
बहने की है नियती
जड़ को तो बहना है,
स्मरण मगर रख ले
चेतन ये एकाकी I
कृपया मेरी ये शंका दूर करें एवम् कोई त्रुटि हो तो मुझे अवश्य अवगत कराएँ जिससे मैं स्वयं को सुधार सकूँ...
धन्यवाद...
लाया ना संग कुछ भी,
जाना भी है खाली हाथ,
कर्मों का इक चोला
होगा बस तेरे साथ,
द्वार पर परमात्मा के
हर आत्मा है एकाकी I
जी, यही जीवन का सत्य है । बहुत सुन्दर । यथार्थ को प्रदर्शित करती अइस कविता के लिए बहुत बधाई ।
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