For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मिथिलेश वामनकर's Blog – January 2017 Archive (5)

तुम्ही बता दो कैसे आऊँ - (गीत) - मिथिलेश वामनकर

तुम्ही कहो, कैसे आऊँ,

सब छोड़ तुम्हारे पास प्रिये?

 

एक कृषक कल तक थे लेकिन अब शहरी मजदूर बने।

सृजक जगत के कहलाते थे, वो कैसे मजबूर बने?

वे बतलाते जीवन गाथा, पीड़ा से घिर जाता हूँ।

कितने दुख संत्रास सहे हैं, ये लिख दूँ, फिर आता हूँ।

कर्तव्यों के नव बंधन को तोड़ तुम्हारे पास प्रिये,

तुम्ही कहो, कैसे आऊँ,

सब छोड़ तुम्हारे पास प्रिये?

 

कौन दिशा में कितने पग अब कैसे-कैसे है चलना?

अर्थजगत के नए मंच पर, कैसे या कितना…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on January 26, 2017 at 2:00pm — 23 Comments

गीत लिखो कोई ऐसा --(गीत)-- मिथिलेश वामनकर

गीत लिखो कोई ऐसा जो निर्धन का दुख-दर्द हरे।

सत्य नहीं क्या कविता में,  

निर्धनता का व्यापार हुआ?

 

जलते खेत, तड़पते कृषकों को बिन देखे बिम्ब गढ़े।

आत्म-मुग्ध होकर बस निशदिन आप चने के पेड़ चढ़े।

जिन श्रमिकों की व्यथा देखकर क्रंदन के नवगीत लिखे।

हाथ बढ़ा कब बने सहायक, या कब उनके साथ दिखे?

इन बातों से श्रमजीवी का

बोलो कब उद्धार हुआ?

 

अपनी रचना के शब्दों को, पीड़ित की आवाज कहा।

स्वयं प्रचारित कर, अपने को धनिकों से…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on January 19, 2017 at 6:00pm — 26 Comments

शांत है सोया हुआ जल --(गीत)-- मिथिलेश वामनकर

उफ़! करो कोई न हलचल,

शांत सोया है यहाँ जल ।

 

नींद गहरी, स्वप्न बिखरे आ रहे जिसमें निरंतर।

लुप्त सी है चेतना,  दोनों दृगों पर है पलस्तर।

वेदना, संत्रास क्या हैं? कब रही परिचित प्रजा यह?

क्या विधानों में, न चिंता, बस समझते हैं ध्वजा यह।

कौन, क्या, कैसे करे?  जब,

हो स्वयं निरुपाय-कौशल।

 

पीर सहना आदतन, आनंद लेते हैं उसी में।

विष भरा जिस पात्र में मकरंद लेते हैं उसी में।

सूर्य के उगने का रूपक, क्या तनिक भी ज्ञात…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on January 11, 2017 at 3:00pm — 27 Comments

निस्संकोच कृपाण धरो - (गीत) - मिथिलेश वामनकर

भटकन में संकेत मिले तब अंतर्मन से तनिक डरो।

सब साधन निष्फल हो जाएँ, निस्संकोच कृपाण धरो।

 

व्यर्थ छिपाये मानव वह भय और स्वयं की दुबर्लता।

भ्रष्ट जनों की कट्टरता से सदा पराजित मानवता ।

सब हैं एक समान जगत में, फिर क्या कोई श्रेष्ठ अनुज?

मानव-धर्म समाज सुरक्षा बस जीवन का ध्येय मनुज।

प्रण-रण में दुर्बलता त्यागो, संयत हो मन विजय वरो।

 

शुद्ध पंथ मन-वचन-कर्म से, सृजन करो जनमानस में।

भेदभाव का तम चीरे जो,  दीप जलाओ  अंतस में…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on January 5, 2017 at 10:30pm — 25 Comments

दोहा गीत - मिथिलेश वामनकर

पिया खड़े है सामने,

घूंघट के पट खोल।

 

चुप रहने से हो सका, आखिर किसका लाभ,

आज समय की मांग है, नैनो में रक्ताभ।

आधी ताकत लोक की,

अपनी पीड़ा बोल।

 

पौरुषता का वो करें, अहम् हजारों बार,

लेकिन तेरे बिन सखी, बिलकुल है लाचार।

वो आयेंगे लौटकर,

सारी धरती गोल।

 

जननी से बढ़कर भला, ताकत किसके पास,

आज संजोना है तुम्हें, बस अपना विश्वास।

हिम्मत से मिटना सहज,

जीवन का ये झोल।

 

अपने…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on January 3, 2017 at 10:00am — 31 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2019

2017

2016

2015

2014

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Sunday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service