For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अश्रुओं से सींचता 

हर स्वप्न मन का ,

प्रेम का प्रारब्ध 

परिवर्तित विरह में ,

इन्द्र धनुषी हास 

अधरों के निकट आ,

दे रहा प्रतिक्षण 

प्रशिक्षण वेदना को !

आद्यंत डूबी श्रष्टि 

मोही विवश सी,

मात्र आकर्षण -

विकर्षण की कहानी,

प्राण का उद्गम यही 

आनंद प्रियतम,

प्रीति के अस्तित्व की 

दुनिया दीवानी !

भोग से प्रारंभ होती 

योग की यह यात्रा है ,

मैं नहीं सक्षम मिटाऊँ ,

किस तरह इस चाहना को,

किस तरह आलोचना 

कर दूं ह्रदय के समर्पण की,

हारता मस्तिष्क अंतिम 

विजय मिलती भावना को.....!!


मौलिक/अप्रकाशित 

Views: 640

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Priyanka singh on May 4, 2013 at 7:22pm

सुन्दर....

Comment by KAVI DEEPENDRA on May 4, 2013 at 7:20pm

बहुत सुन्दर प्रस्तुति.....

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 4, 2013 at 7:18am

आदरणीया सादर, जीवन में प्रेम भाव का अपना महत्त्व है. सुन्दर रचना. बधाई.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 3, 2013 at 7:53am

कविता में भाव-शब्द भले लगे. 

बधाई.

Comment by वेदिका on May 2, 2013 at 11:27pm

आदरणीया भावना जी!
बहुत सुंदर और प्रेरक काव्य प्रस्तुत किया आपने ..सभी आयामों को आपने काव्य में समाहित किया है ..

किस तरह आलोचना 

कर दूं ह्रदय के समर्पण की,

हारता मस्तिष्क अंतिम 

विजय मिलती भावना को.....!!

सहजता से पठनीय काव्य पर आपको अनंत शुभकामनायें

Comment by shalini rastogi on May 2, 2013 at 11:22pm

मैं नहीं सक्षम मिटाऊँ ,

किस तरह इस चाहना को,

किस तरह आलोचना 

कर दूं ह्रदय के समर्पण की,

हारता मस्तिष्क अंतिम 

विजय मिलती भावना को.... vaah bhavna ji bahut sundar panktiyan .... badhai sveekaar karen .

Comment by राजेश 'मृदु' on May 2, 2013 at 1:59pm

किस तरह आलोचना 

कर दूं ह्रदय के समर्पण की,

हारता मस्तिष्क अंतिम 

विजय मिलती भावना को.....!!

आपकी जय हो । बहुत सुंदर तरीके से हर भाव को शब्‍द प्रदान किए हैं आपने ।  हरेक पंक्ति सीधे संवाद करती है, सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 2, 2013 at 9:53am

प्रेम के प्रारब्ध से पराकाष्ठा तक प्रेम भावना से लिपटा होता है, मन भावन बयार उसे पल्लवित और पोषित करती है | 

प्रेमयोग और भोग का केंद्र बिंदु भी कहाँ जो सकत़ा है | प्रस्तुति के लिए बधाई 

Comment by manoj shukla on May 2, 2013 at 9:45am
बहुत सुन्दर प्रस्तुति... बधाई स्वीकार करें आदर्णीया
Comment by Vindu Babu on May 2, 2013 at 9:37am
आदरेया रचना का शब्द संयोजन और शिल्प प्रशंसनीय है।
गहन अभिव्यक्ति के लिए सादर बधाई स्वीकारें।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
19 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Jul 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service