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अश्रुओं से सींचता 

हर स्वप्न मन का ,

प्रेम का प्रारब्ध 

परिवर्तित विरह में ,

इन्द्र धनुषी हास 

अधरों के निकट आ,

दे रहा प्रतिक्षण 

प्रशिक्षण वेदना को !

आद्यंत डूबी श्रष्टि 

मोही विवश सी,

मात्र आकर्षण -

विकर्षण की कहानी,

प्राण का उद्गम यही 

आनंद प्रियतम,

प्रीति के अस्तित्व की 

दुनिया दीवानी !

भोग से प्रारंभ होती 

योग की यह यात्रा है ,

मैं नहीं सक्षम मिटाऊँ ,

किस तरह इस चाहना को,

किस तरह आलोचना 

कर दूं ह्रदय के समर्पण की,

हारता मस्तिष्क अंतिम 

विजय मिलती भावना को.....!!


मौलिक/अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Priyanka singh on May 4, 2013 at 7:22pm

सुन्दर....

Comment by KAVI DEEPENDRA on May 4, 2013 at 7:20pm

बहुत सुन्दर प्रस्तुति.....

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 4, 2013 at 7:18am

आदरणीया सादर, जीवन में प्रेम भाव का अपना महत्त्व है. सुन्दर रचना. बधाई.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 3, 2013 at 7:53am

कविता में भाव-शब्द भले लगे. 

बधाई.

Comment by वेदिका on May 2, 2013 at 11:27pm

आदरणीया भावना जी!
बहुत सुंदर और प्रेरक काव्य प्रस्तुत किया आपने ..सभी आयामों को आपने काव्य में समाहित किया है ..

किस तरह आलोचना 

कर दूं ह्रदय के समर्पण की,

हारता मस्तिष्क अंतिम 

विजय मिलती भावना को.....!!

सहजता से पठनीय काव्य पर आपको अनंत शुभकामनायें

Comment by shalini rastogi on May 2, 2013 at 11:22pm

मैं नहीं सक्षम मिटाऊँ ,

किस तरह इस चाहना को,

किस तरह आलोचना 

कर दूं ह्रदय के समर्पण की,

हारता मस्तिष्क अंतिम 

विजय मिलती भावना को.... vaah bhavna ji bahut sundar panktiyan .... badhai sveekaar karen .

Comment by राजेश 'मृदु' on May 2, 2013 at 1:59pm

किस तरह आलोचना 

कर दूं ह्रदय के समर्पण की,

हारता मस्तिष्क अंतिम 

विजय मिलती भावना को.....!!

आपकी जय हो । बहुत सुंदर तरीके से हर भाव को शब्‍द प्रदान किए हैं आपने ।  हरेक पंक्ति सीधे संवाद करती है, सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 2, 2013 at 9:53am

प्रेम के प्रारब्ध से पराकाष्ठा तक प्रेम भावना से लिपटा होता है, मन भावन बयार उसे पल्लवित और पोषित करती है | 

प्रेमयोग और भोग का केंद्र बिंदु भी कहाँ जो सकत़ा है | प्रस्तुति के लिए बधाई 

Comment by manoj shukla on May 2, 2013 at 9:45am
बहुत सुन्दर प्रस्तुति... बधाई स्वीकार करें आदर्णीया
Comment by Vindu Babu on May 2, 2013 at 9:37am
आदरेया रचना का शब्द संयोजन और शिल्प प्रशंसनीय है।
गहन अभिव्यक्ति के लिए सादर बधाई स्वीकारें।

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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