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क्या भरोसा जिन्दगी का कल रहे या ना रहे।

क्या पता यह बुलबुला कुछ पल रहे या ना रहे।।

 

है भयंकर इक समन्दर ये जहाँ उठ्ठे तूफां,

तैरती कागज की कश्ती तेज मौजों में यहाँ।

है किसे मालूम कब ये गल रहे या ना रहे।।

 

पूरी हो पायेंगी शायद ही खुशी ओ ख्वाहिशें,

मिट्टी के इस ढेले पे होतीं गमों की बारिशें।

क्या पता पानी में कब ये घुल रहे या ना रहे ।।

 

हो गई मुश्किल न कम है जिन्दगी अब बोझ से,

मौत रूपी माशूका की गोद में सब मौज से ।

लेटे लेटे देखो कर हलचल रहे या ना रहे।।

 

लो लगा लो लाजिमी मिट जायें ताकि सब वहम,

चुक गई बाती मगर फिर भी अभी बाकि है दम।

दीप ये बिन नेह तिल तिल जल रहे या ना रहे।।

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