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आदरणीय काव्य-रसिको,

सादर अभिवादन !

 

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह आयोजन लगातार क्रम में इस बार अण्ठान्बेवाँ आयोजन है.   

 

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ  

22 जून 2019 दिन शनिवार से 23 जून 2019 दिन रविवार तक
 
इस बार का छंद है - 

सार छंद

कुण्डलिया छंद  

हम आयोजन के अंतरगत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या दोहा-ग़ज़ल या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.

साथ ही, रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है.    

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगे 

सार छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें

कुण्डलिया छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, अन्यान्य छन्दों के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.

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आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 

22 जून 2019 दिन शनिवार से 23 जून 2019 दिन रविवार तक, यानी दो दिनों के लिए, रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करेंआयोजन की रचनाओं के संकलन के प्रकाशन के पोस्ट पर प्राप्त सुझावों के अनुसार संशोधन किया जायेगा.
  4. अपने पोस्ट या अपनी टिप्पणी को सदस्य स्वयं ही किसी हालत में डिलिट न करें। 
  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

छंदोत्सव में सुधिजनों का स्वागत है..

नमस्कार आदरणीय सौरभ पांडेय जी 

कुण्डलिया छंद

बिट्टू  मेरे ध्यान से,  सुन ले मेरी बात। 

दी है मेरे लट्ठ ने, बड़े बड़ों को मात।। .

बड़े बड़ों को मात.  समझ मत बुड्ढा मुझको। 

अपने सारे दाँव ,  सिखाऊँगा  मैं  तुझको।।

बिछड़े सारे यार ,आज दादू के तेरे। 

तू मत जाना दूर ,कभी भी बिट्टू मेरे।।

बिट्टू मेरे तू सदा ,देना सच का साथ।

उसको ही मत पूजना,  लाठी जिसके हाथ।।

लाठी जिसके हाथ, मित्र दुर्बल का बनना।

अच्छा बन इंसान,यही है मेरा सपना।।

कल का भारत देश , बनाना जिम्मे तेरे।

सोच समझ हर पाँव, उठाना बिट्टू मेरे।।.

बिट्टू मेरे आजकल ,मन में गड़ते  शूल। 

तेरी दादी है  गई , अब तो  मुझको भूल।।

अब तो मुझको भूल, फोन में चिपकी रहती। 

कभी उफनता दूध , कभी रोटी है जलती।।

ठंडी मिलती चाय ,आजकल रोज सवेरे। 

इस मुश्किल का तोड़ ,बता कुछ बिट्टू मेरे।।

 दादू  मेरे भेद की ,बोलूँ  तुझसे  बात। 

कल कैसे छुट्टी करूँ , सोचूँ ये हर रात।।

सोचूँ ये हर रात ,नहीं शाला है भाती। 

गुस्सा आता खूब, द्वार  जब बस है आती।।

होमवर्क का बोझ , हमेशा मन को घेरे। 

इस सब से आ दूर  ,चलें चल दादू मेरे।।

मौलिक  व  अप्रकाशित  

 

आदरणीया प्रतिभा जी, आपकी कुण्डलिया के सभी पहलू रोचक भी हैं और शैल्पिक तौर पर अनुकरणीय भी हैं. चित्र के मर्म को आपने छंदों के माध्यम से बख़ूबी उभारा है.  तीसरी कुण्डलिया का कथ्य तो अत्यंत रोचक ढंग से उभर कर सामने आया है. 

दादा-पोते की बातचीत में दादा की ओर से तीन कथ्य का आना अनायास हो सकता है, परन्तु, आजके आम दादाओं को वाकई सुनने वाला कौन है ? कितने हैं ? इस हिसाब से प्रस्तुति की सभी कुण्डलियाँ मनोवैज्ञानिक ढंग से भी प्रभावकारी बन पडी है. 

हार्दिक बधाइयाँ और अशेष शुभकामनाएँ 

, रचना की सराहना व उत्साहवर्धन के लिये हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी//आजके आम दादाओं को वाकई सुनने वाला कौन है ? कितने हैं ? // जी सही कहा आपने। वैसे सुना दादियों को भी कम ही जाता है पर महिलायें किसी भी तरह से अपने मन की बाहर उँडेल ही देती हैं जो पुरुष सहजता से नहीं कर पाते हैं।. 

जी, सही कहा आपने.. 

मुहतरमा प्रतिभा पाण्डेय जी आदाब,प्रदत्त चित्र को परिभाषित करते उम्द: कुण्डलिया छन्द लिखे आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर जी

दादा पोते में हुई, बातें हैं भरपूर

भावों का है संग जो, रहे कभी ना दूर

रहे कभी ना दूर, डोर यह होती कच्ची

सह पाती कब ठेस, भले होती है सच्ची

सतविंदर हर हाल, पकड़ का राखो मादा

बच्चों खातिर ख़ास, सदा ही दादी-दादा।

उम्दा संवाद सृजन के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया प्रतिभा दीदी, नमन सादर

छंदमय टिप्पणी के लिये हार्दिक आभार आदरणीय सतविन्दर भाई

आदरणीया प्रतिभाजी

सचमुच आपने पूरी लगन और पूरा समय देकर बड़ी सहजता से चारो कुंडलियाँ को चित्र के अनुरूप शाब्दिक किया है। हृदयतल से बधाई

आदरणीय , प्रतिभा जी , बहुत खूब वर्णन , कुण्डली छंद के माध्यम से , बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें जी |

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