आदरणीय साहित्य प्रेमियों
सादर वन्दे,
"ओबीओ लाईव महा उत्सव" के २२ वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है. पिछले २१ कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने २१ विभिन्न विषयों पर बड़े जोशो खरोश के साथ और बढ़ चढ़ कर कलम आजमाई की, जैसा कि आप सब को ज्ञात ही है कि दरअसल यह आयोजन रचनाकारों के लिए अपनी कलम की धार को और भी तेज़ करने का अवसर प्रदान करता है, इस आयोजन पर एक कोई विषय या शब्द देकर रचनाकारों को उस पर अपनी रचनायें प्रस्तुत करने के लिए कहा जाता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है:-
"OBO लाइव महा उत्सव" अंक २२
विषय - "चाँद"
आयोजन की अवधि- ८ अगस्त २०१२ बुधवार से १० अगस्त २०१२ शुक्रवार तक
तो आइए मित्रो, उठायें अपनी कलम और दे डालें अपनी कल्पना को हकीकत का रूप, बात बेशक छोटी हो लेकिन घाव गंभीर करने वाली हो तो बात का लुत्फ़ दोबाला हो जाए. महा उत्सव के लिए दिए विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते है साथ ही अन्य साथियों की रचनाओं पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते है |
उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम निम्न है: -
अति आवश्यक सूचना :- "OBO लाइव महा उत्सव" अंक- २२ में सदस्यगण आयोजन अवधि में अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टियाँ ही प्रस्तुत कर सकेंगे | नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा गैर स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटा दिया जाएगा, यह अधिकार प्रबंधन सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी |
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो बुधवार ८ जुलाई लगते ही खोल दिया जायेगा )
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"महा उत्सव" के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
मंच संचालक
धर्मेन्द्र शर्मा (धरम)
(सदस्य कार्यकारिणी)
ओपन बुक्स ऑनलाइन
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Replies are closed for this discussion.
दिल ये चाहे जिसकी दीद
जिसे देख कर होती ईद
छिपा आज क्यों तम की मांद?
ऐ सखि साजन? नहिं सखि चाँद|
वाह वाह हर कह मुकरी शानदार है अंतिम तो बहुत ही ज्यादा पसंद आई|
आदरेया राजेश कुमारी जी, आपका हार्दिक स्वागत है ! सराहना के लिए आभारी हूँ ....
अय-हय, अय-हय ! हय-हय-हय !!
वाह, आदरणीय अम्बरीषजी, वाह ! ... . क्या सुन्दर मुकरियाँ बन पड़ी हैं ! और कथ्य में क्या ही सुन्दर बहाव हुआ है !
दिल ये चाहे जिसकी दीद
जिसे देख कर होती ईद
छिपा आज क्यों तम की मांद?
ऐ सखि साजन? नहिं सखि चाँद |
इस बंद के लिये पुनः बधाई स्वीकार करें, आदरणीय.
स्वागत है आदरणीय सौरभ जी ! आप जैसे विद्वान की सराहना पाकर यह सृजन धन्य तो हुआ ही साथ साथ अपना श्रम भी सार्थक हो गया है ... हार्दिक आभार आदरणीय .......सादर
आपका सादर आभार, आदरणीय अम्बरीषजी. आपने ’मुकरियों’ / ’कह-मुकरियों’ की आत्मा को गोया संतुष्ट किया है.
इस विधा में आज की आवश्यकता तथा वैचारिकता की मांग के अनुसार जिस विधाजन्य तथा तथ्यात्मक परिवर्द्धन की आवश्यकता है उसका होना व उसकी तुष्टि हेतु आपका श्रम सक्षम है. आपके प्रयोगों से इस विधा का बहुमुखी विकास होगा इसमें संशय नहीं. दिन दूर नहीं, आदरणीय. मंच पर हमसभी सहभागी हैं.
सादर
आपका स्वागत है आदरणीय सौरभ जी ! आपका उपरोक्त कथन समय की माँग को संतुष्ट कर रहा है .....इस दिशा में पुनः आभार आदरणीय........हम सभी एक साथ मिलकर प्रयास करेंगे ! ......सादर |
जी.. .
वाह वाह है प्रिय अम्बरीश यही तो आपकी
खासियत है हर एक मुकरी का उत्तर भले एक है
परन्तु सारे के सारे प्रसंग अलग अलग है
हर जगह आपने चाँद का अद्भुत रूप दिखाया है
स्नेह भरी हार्दिक बधाई
प्रणाम आदरणीय उमाशंकर जी! आपकी स्नेहमय सराहना मेरे लिए बहुत महत्व रखती है ! सादर
रोज रोज जियरा तड़पाये
देखे बिना रहा नहिं जाये
वचन न बोले एक सुनंदा
ऐ सखि साजन? नहिं सखि चंदा!!
***********************************
आदरणीय अम्बरीश सर......क्या कह मुकरियाँ रची आपने......हार्दिक बधाई.......
भाई कुमार गौरव जी, कह मुकरियों को सराहने के लिए हार्दिक आभार !
इस विषय पर कहमुकरिया....!!! और वह भी इतने सुन्दर ढंग से.... वाह! अद्भुत...
सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय अम्बर भईया....
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