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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।

पिछले 96 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-97

विषय - "दीपावली"

आयोजन की अवधि- 09 नवम्बर 2018, दिन शुक्रवार से 10 नवम्बर 2018, दिन शनिवार की समाप्ति तक

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)

बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
नज़्म
हाइकू
सॉनेट
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.

रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 09 नवम्बर ' 2018, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा)

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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें

मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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Replies to This Discussion

आदरणीय गणेश भाईजी

फितरत बागी है बागीजी की, खूब उभरकर आई है।

सभी पंक्तियों में सच्चाई, हार्दिक मेरी बधाई है॥

हर उत्सव में लिखते रहिए हमें अच्छी रचनाएँ पढ़ने को मिलेगी।

हृदय से बधाई स्वीकार कीजिए दीपावली एवं नव वर्ष की शुभकामनाओं के साथ।

वर्तमान सच्चाई को उजागर करता हुआ सुन्दर सार्थक व्यंग।  बधाई स्वीकारें माननीय बागी जी। 

'दीप-प्रतीक' (छंदमुक्त/अतुकान्त) :
---------------------------------------
विशाल द्वीप के 'डीप' रस्मो-रिवाज़ में
मैं अभागा 'दीप'!
धार्मिक औपचारिकताओं का शेष प्रतीक!
मोमबत्ती, वैद्युत-सजावट, आतिशबाज़ी, पटाखों के बीच
खिड़कियों और द्वारों पर, रंगोली, पूजा-स्थल के समीप
जलता रहा!
हां, उन सब आडंबरों से बहुत जलता रहा!
बुझ कर, पुनः जलकर पटाखे चलाकर, आतिशबाज़ी करवाता रहा!
गर्म हो-होकर तपता, टूटता रहा, पाये कचरों के 'हीप'(ढेर)!
विशाल द्वीप के 'डीप' रस्मो-रिवाज़ में
मैं अभागा 'दीप'!
प्रदीप, संदीप, कभी कुलदीप, कभी सुदीप!
नाम बड़े, दर्शन छोटे!
आग, दाग़ से भाग
'राम-चरित्र' से दर्शन कहीं न होते!
हर दीवाली पर ढलते-रचते
कुम्हार बच्चे, नर-नारी ढेर ही ढोते!
हस्तशिल्प से भिन्न रूपों में ढीठ दीप
सिंकते, बिकते ओने-पोने दाम!
शानो-शौकत और स्टेटस संग
राम-भक्तों को बस नाम से काम!
होड़-दौड़, आधुनिकता नज़दीक
विशाल द्वीप के 'डीप' रस्मो-रिवाज़ में
मैं अभागा 'दीप'!
मिट्टी, तेल, घी और बाती के
संयोग-वियोग परे मदमस्त से
बाराती-घराती से भक्तगण
व्यंजनों-मिष्ठानों-आभूषण संग
दीवाली का प्रदूषण!
मेल-मिलाप स्वार्थों का,
विलाप निर्धन, पर्यावरण, प्रकृति का!
नववर्ष की बेला समीप!
लाभदायक
उपेक्षित चिराग़!
त्याग, एकता, परिशोधन का संदेश वाहक
विशाल द्वीप के 'डीप' रस्मो-रिवाज़ में
मैं अभागा 'दीप'!


(मौलिक व अप्रकाशित)

आदरणीय शेख शहजाद  भाई

दीपावली पर नई सोच के साथ  अक्षम निर्धन और आम आदमी के इस त्योहार में उन पहलुओं को उजागर किया है जो समर्थ को सोचने पर मजबूर करती है। हृदय से बधाई स्वीकार कीजिए दीपावली एवं नव वर्ष की शुभकामनाओं के साथ।

आदाब। अनुमोदन सहित अपने विचारों से हमें लाभान्वित और मुझे प्रोत्साहित करने के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहिब।

आ0 शेख शहज़ाद उस्मानी जी चायनीज़ कुमकुमों की रोशनी में सिसकते दीपक की व्यथा बहुत प्रभावी तरीके से व्यक्त की। हृदय से बधाई।

बहुत ही कटाक्षपूर्णा और सोचने पर मज़बूर करती रचना । आज के प्रदूषित माहौल में  दीप की आत्मकथा कौन पढ़ता है । हार्दिक बधाई आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी ।

आदरणीय उस्मानी साहब उत्कृष्ट रचना के लिए बहुत बहुत बधाई

रचना पटल पर उपस्थित होकर अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब डॉ. छोटेलाल सिंह साहिब।

आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी साद नमन। उत्तम कटाक्षपूर्ण अतुकांत हुई है। सादर हार्दिक बधाई। /'राम-चरित्र' से/

में /से/ शब्द के अर्थ भ्रमित कर रहे हैं। यह कोई विभक्ति चिह्न है अथवा 'से: समान' अर्थ में लिया है? सादर

रचना पटल पर उपस्थित होकर अपनी राय साझा कर अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब सतविंद्र कुमार राणा साहिब। /से/ से आशय /वाले/ या /के जैसे/ है। इस कमी पर ध्यान आकृष्ट कराने हेतु हार्दिक आभार। इसी तरह इस्लाह हासिल कराते रहिएगा।

प्रदूषण भरे माहौल और  स्वच्छ वातावरण  में साँस लेने की जद्दोजहद के बीच दीप की उपस्थिति तो नगण्य ही हो गयी है।  अच्छी कटाक्षपूर्ण रचना की प्रस्तुति हर हार्दिक बधाई आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी।   


 

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