For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-88 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार का विषय है 'मार्गदर्शन'। तो आइए इस विषय के किसी भी पहलू को कलमबंद करके एक प्रभावोत्पादक लघुकथा रचकर इस गोष्ठी को सफल बनाएँ।  
:  
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-88
"विषय: 'संतान'
अवधि : 30-07-2022  से 31-07-2022 
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.    
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 2197

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

हार्दिक आभार आदरणीय योगराज प्रभाकर जी। आपकी टिप्पणियों/ सुझावों की हमेशा प्रतीक्षा रहती है।

वाह! बहुत ही भावपूर्ण लघुकथा 

समझ तो रहे हो न! 


"तुम्हारे लेट-लतीफ़ और बेतरतीब कामकाज पर मैं तुम्हें डाँट नहीं रहा हूँ। इस समय तुम मुझे अपना प्राचार्य मत समझो; मान लो कि मैं तुम्हारा पिता हूँ और तुम मेरे विद्यालय के शिक्षक नहीं, मेरे बेटे हो!"

"जी।"

"बेटे, तुम बहुत भावुक किस्म के हो... बिल्कुल मेरी तरह! भावुकता में तुम अपना ध्यान अपने विद्यालयीन दायित्वों की तरफ़ एकाग्र नहीं कर पा रहे हो, जिस कारण विद्यार्थियों और स्टाफ़ को तुमसे तरह-तरह की शिकायतें हैं... समझ रहे हो न!"

"जी! आपको तो पता है न... मैं अपने बड़े से फ्लैट में चौदहवीं मंज़िल पर अकेला ही रहता हूँ। सो मेरे बीमार पिताजी मेरे साथ यहाँ रहना नहीं चाहते। वे नज़दीक के शहर में छोटे भाई के पास ही रहते हैं... किसी तरह उसके परिवार से सामंजस्य बिठाते हुए। सो मैं पिताजी की सेवा करने से वंचित... पत्नी सरकारी नौकरी की वज़ह से दूर दूसरे राज्य में रहती है। हमारे संबंध वैसे न रहे, जैसे होने चाहिए... प्राइवेट नौकरी में मेरी कम आय के कारण! बिटिया होस्टल में रहती है और बेटा प्राइवेट कम्पनी में नौकरी। दोनों ही मुझसे दूर रहते हैं। दोनों माँ से ही अधिक प्रेम करते हैं। औपचारिकताओं से दिन कट रहे हैं। योग, ध्यान, संगीत, शौकों का सहारा भी नियमित औपचारिकताओं जैसा... बस!"

"मर्द हो न! बाप हो न! बाप को... मर्द को मज़बूत रहना होता है। मर्द को दिल पर पत्थर रखकर जीना होता है, समझे! विद्यालय के बच्चों को ही अपने बच्चे मानो... बेटे और बेटियाँ!"

"... जी... लेकिन आपकी आँखों में यूँ आँसू क्यों? आपकी आवाज़ भी...!"

"समझ तो रहे हो न! कामयाबी के साथ जीने के लिए हर जगह 'गुड विल' बरकरार रखना मुश्किल होता है ऐसे हालात में हम मर्दों के लिए... हर बाप के लिए!"


(मौलिक व अप्रकाशित)

संवाद-शैली में अच्छी लघुकथा कही है भाई उस्मानी जी, बधाई प्रेषित है. लेकिन एक चीज़ मुझे बहुत खटक रही है. 285 शब्दों की इस लघुकथा में एक संवाद 127 शब्दों का है जो रचना का लगभग 45% बनता है. इतने लंबे संवाद ने रचना की गति धीमी करके कथ्य को बोझिल बना दिया है. लघुकथा में संवाद चुस्त और चुटीले होने चाहिएँ. बाक़ी आप ख़ुद समझदार हैं. 

सादर नमस्कार आदरणीय सर जी। जी, त्वरित मार्गदर्शन हेतु शुक्रिया। ध्यान रखूँगा।  उस संवाद को दूसरी तरह से कहने की भी कोशिश करूँगा।अभी किसी तरह पिताजी के घर आकर प्रविष्टि का कथानक याद कर तैयार की। कल रात यह कथानक विस्मृत हो गया था।

परिवार बच्चों से  दूर रह रहे एक पिता के दर्द का लेखा जोखा। पुरुष का पक्ष/दर्द समाज को कम दिखता है।भावपूर्ण लघुकथा। हार्दिक बधाई आदरणीय उस्मानी जी।संवादों की कसावट रचना को और मुखर करेगी। 

जी, रचना पटल पर समय.देकर मार्गदर्शन सहित हौसला अफ़ज़ाई हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जोशी जी। रचना विषयांतर्गत नहीं लगी क्या?

जी बिल्कुल विषय अनुरूप ही लगी

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख़ शहज़ाद जी। बहुत सुन्दर लघुकथा।

आदाब। हार्दिक धन्यवाद आदरणीय तेजवीर सिंह जी।

जी, धन्यवाद।

संतान
आज उसके माता-पिता दोनों बेटी को उसके नए पद पर छोड़कर घर आए। भले ही वे हिम्मत से आगे बढ़ रहे थे, लेकिन फिर भी... जबकि पहले जरूरत के मुताबिक रहने के लिए घर न मिलने की चिंता थी। लेकिन जब उसे घर जैसे बड़े घर का हिस्सा मिल गया तो उसे इस बात की चिंता सता रही थी कि ऐसे घर में वह अकेली कैसे रहेगी। क्योंकि घर में बाकी सभी लोग कहीं और रह रहे हैं।

बेटी ने उन्हें बहुत प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा, "एक दिन हमें घर छोड़ना ही होगा, आज मान लेना. कोई बात नहीं."

जब वह छोटी थी तो देश के कोने-कोने में खेलों में भाग लेने जाती थी। "यहाँ रह कर तो हम ने लोगों की सेवा करनी है,उस तरह की जिसे लोग भगवान का दर्जा देते हैं , ऐसे में ख़तरा , क्या ? जैसा कि आपने हमें लोगों के साथ रहना और रहना सिखाया है। आपको अपने बच्चों पर गर्व होना चाहिए। अगर आपने उन्हें अच्छे खिलाड़ी बनने और अच्छी शिक्षा प्राप्त करने में मदद की है। जब आपको अच्छे पद मिलते हैं और क्यों करते हैं आपको ऐसा लगता है?

क्या अब हम अपनी रक्षा भी नहीं कर पा रहे हैं? यह दुनिया हमारी है, चाहे कुछ भी हो जाए, हमें उस बदलाव का हिस्सा बनना है।"
जब बेटी यह सब वीडियो कॉल पर कह रही थी। उसके माता-पिता अपना सिर ऊंचा रखे हुए थे ।

"मौलिक व अप्रकाशित" 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर और उम्दा प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"आदाब।‌ बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब।"
Monday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी।"
Monday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी। आपकी सार गर्भित टिप्पणी मेरे लेखन को उत्साहित करती…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"नमस्कार। अधूरे ख़्वाब को एक अहम कोण से लेते हुए समय-चक्र की विडम्बना पिरोती 'टॉफी से सिगरेट तक…"
Sep 29
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"काल चक्र - लघुकथा -  "आइये रमेश बाबू, आज कैसे हमारी दुकान का रास्ता भूल गये? बचपन में तो…"
Sep 29
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"ख़्वाबों के मुकाम (लघुकथा) : "क्यूॅं री सम्मो, तू झाड़ू लगाने में इतना टाइम क्यों लगा देती है?…"
Sep 29
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"स्वागतम"
Sep 29
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"//5वें शेर — हुक्म भी था और इल्तिजा भी थी — इसमें 2122 के बजाय आपने 21222 कर दिया है या…"
Sep 28
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय संजय शुक्ला जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल है आपकी। इस हेतु बधाई स्वीकार करे। एक शंका है मेरी —…"
Sep 28
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"धन्यवाद आ. चेतन जी"
Sep 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय ग़ज़ल पर बधाई स्वीकारें गुणीजनों की इस्लाह से और बेहतर हो जायेगी"
Sep 28

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service