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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-87

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 87वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब अमीर मीनाई साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"ये वो क़िस्मत का लिखा है जो मिटा भी  सकूँ "

2122    1122   1122   112/22

फाइलातुन  फइलातुन  फइलातुन  फइलुन/फेलुन

(बह्र: रमल मुसम्मन् मख्बून मक्तुअ )

रदीफ़ :- भी न सकूँ
काफिया :- आ (मिटा, जला, उड़ा, हटा, दबा आदि)
विशेष: 

१. पहला रुक्न फाइलातुनको  फइलातुन अर्थात २१२२  को ११२२भी किया जा सकता है 

२. अंतिम रुक्न फेलुन को फइलुन अर्थात २२ को ११२ भी किया जा सकता है| 

 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 22 सितम्बर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 23 सितम्बर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 22 सितम्बर दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

किंचित विलम्ब से ही सही,पर परिमार्जन हो गया अब:
घाव ऐसा दे गया वह जो दिखा भी न सकूँ
दर्द हासिल जो हुआ है,वो छिपा भी न सकूँ।1
खूब सूरत* है बनी अब,की भी क्या क्या जुगतें
आ नहीं पाया कभी,फिर मैं तो जा भी न सकूँ।2
आज मंजर है ये कैसा!मैं छला हूँ हरपल
खूब लगती है नजर,यार!लगा भी न सकूँ।3
ख्वाहिशों का ये दिया अब तो बुझा,था झिलमिल
चाहता,उसको जला दूँ,रे!जला भी न सकूँ।4
शोख नजरों के मुताबिक हो सकी है रुत कब?
ये वो किस्मत का लिखा है जो मिटा भी न सकूँ।5
*सूरत:स्थिति
ग़ज़ल अब भी समय चाहती है,जल्दबाज़ी ह् करें आराम से देखें ।
आभारी हूँ आपका।

आ. मनन जी, ऐसा लगता है कि ग़ज़ल को जो समय मिलना चाहिए था वो नहीं मिल पाया. शायद ऐसा समयाभाव के कारण रहा हो. मिसरे अटक रहे हैं और बात खुल कर नहीं आ रही. उदाहरण के लिए आपके पहले दो शेरों का परिवर्तित रूप प्रस्तुत कर रहा हूँ. 

घाव ऐसा दे गया है जो दिखा भी न सकूँ

दर्द हासिल वो हुआ है जो छिपा भी न सकूँ

इश्क़ में अपने यही, बस यही सूरत बने है

वो बुलाए न कभी और मैं जा भी न सकूँ

थोड़े से प्रयास से यह एक उम्दा ग़ज़ल हो जाएगी. मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

आभारी हूँ आदरणीय।
आ. भाई मनन जी हार्दिक बधाई ।
आभारी हूँ आदरणीय मित्र।

आदरणीय मनन जी ग़ज़ल के कई मिसरे बहर से खारिज हैं , नज्रेसानी कर लें|

आदरणीय राणा प्रताप जी,आपका शुक्रिया।परिमार्जन करता हूँ।
एक बार फिर...
घाव ऐसा है मिला जो कि दिखा भी न सकूँ
दर्द हासिल जो हुआ है,वो छिपा भी न सकूँ।1
आज सूरत* क्या हुई है,की भी सारी जुगतें
वह बुला सकता नहीं,और मैं जा भी न सकूँ।2
देख मंजर है ये कैसा!मैं छला हूँ हरपल
रूठ गयी उसकी नजर,प्यार जता भी न सकूँ।3
ख्वाहिशों का ये दिया अब तो बुझा,था झिलमिल
चाहता,उसको जलाना,रे!जला भी न सकूँ।4
शोख नजरों के मुताबिक हो सकी है रुत कब?
ये वो किस्मत का लिखा है जो मिटा भी न सकूँ।5
*सूरत:स्थिति
अब कुछ ठीक हुई,तीसरे शैर का सानी अभी और समय चाहता है
शुक्रिया आपका।बचा समय अगली गजल के हिस्से रहा।

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"आदरणीय दयाराम जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार कीजिये अमित जी की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर है सादर"
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