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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-87 (विषय: मार्गदर्शन)

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-87 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार का विषय है 'मार्गदर्शन'। तो आइए इस विषय के किसी भी पहलू को कलमबंद करके एक प्रभावोत्पादक लघुकथा रचकर इस गोष्ठी को सफल बनाएँ।  
:  
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-87
"विषय: 'मार्गदर्शन'
अवधि : 29-06-2022  से 30-06-2022 
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
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अंतर्व्यथा
मैं पानी की एक बूंद हूं। समंदर के अंदर के उथल - पुथल,कोलाहल और ताप से उत्तप्त हो उठते भाव - भाप के संघनित होने से मैं  नभ में सृजित हुई।फिर प्यासी -झुलसती धरती की प्यास बुझाने की कामना मुझमें जागृत हुई।सोचा,किसी मरते को जीवन देकर क्यों न खुद भी धन्य हो जाऊं?
हवाओं की और अधिक शीतलता से मैं वजनी होती गई।ऊपर से दिलासा कि धरा तक ले जाई जाऊंगी। खुशफहमी में मैं हवाओं संग हिलती -डुलती रही।नीचे आती रही।अब हवायें बवंडर- सी होती गईं।मुझे थपेड़े लगने लगे। संभलने की कोशिश की,पर संभल न सकी।फिर से मैं समंदर के हवाले हो गई।उसमें धकेल दी गई।हवाएं फुर्र हो गईं। सोचती हूं,पुनः भाव -भाप बनूं,तो ऊपर उठूं।
"मौलिक एवं अप्रकाशित"

गद्य में काव्य की अनुभूति हो रही है...

विषय से हटकर  किन्तु   अगीत काव्य सा लगी , प्रस्तुति   !

लघुकथा गोष्ठी का आज अंतिम दिन उम्मीदों से पूर्ण है।लघुकथाएं आयेंगी,लेखक बन्धु भी आयेंगे।

बन्धु का तो पता नहीं... मेरी कोशिश
'मार्गदर्शन'
विभा रानी श्रीवास्तव
"आप क्या सोच रहे हैं पिताजी?"पिता को बड़े गम्भीर मुद्रा में घर के बाहर बैठा देखकर पुत्र ने पूछा।
"देखिए काले बादल ने रवि को छुपाकर दिन को ही रात में बदल डाला है। घर के अन्दर चलकर बातें करते हैं। आप मुझे बताएँ कि आख़िर क्या बात है?" पुत्र ने पुनः पूछा।
"तुम्हारी माँ को किसी संस्था ने वाचस्पति पुरस्कार देने की बात किया है..," पिता ने कहा।
"अरे वाह! यह तो बेहद हर्ष और गर्व की बात है। और आप हैं कि यूँ चिंताग्रस्त बैठे हैं कि न जाने कौन सी बड़ी आपदा आन पड़ी। कोई पकी फसल में आग लग गयी या किसी फैक्ट्री गोदाम में...। मैं भी नाहक घबरा रहा था कि ना जाने क्या बात हो गयी।" पुत्र ने कहा।
"वाचस्पति पुरस्कार पाने के लिए तुम्हारी माँ को पन्द्रह से बीस हजार तक खर्च करने होंगे।" पिता ने कहा।
"बस! इतनी छोटी रकम! इतनी तो माँ घर के किसी कोने में रख छोड़ा होगा...। आपको घबराहट इस बात कि तो नहीं कि माँ अपने नाम में डॉक्टर लगाने लगेगी!" पुत्र ने कहा।
"इस पुराने अमलतास वृक्ष के कोटर में हवा के झोंके या खग-विष्ठा से उग आए बड़-पीपल को देखकर रहे हो! क्या बता सकते हो कि इससे प्रकृति को कितना लाभ होगा ?" पिता ने पुत्र से पूछा।
"..." निःशब्दता। पुत्र की चुप्पी ।
°°
रचना प्रक्रिया : 30 जून 2022
अप्रकाशित और अप्रकाशित रचना

कथ्य  में उलझी  हुई  है, लघुकथा  । पिता की उलझन अथवा  ऊहापोह  भी  निरर्थक  प्रतीत हुई  । 

                        बाई डिफाल्ट 

कालेज के तीन  पहलवान-- बलवान सिंह,  हरकेश और दिनेश कुमार  विश्विद्यालय की टीम में  थे । तीनों  हेवी वेट वर्ग  ( नब्बे  किलो) के पहलवान  थे। कालेज कोच डाँगे साहब को अपने  तीनों पहलवानों पर गर्व था । लेकिन उन्हें बलवान सिंह  बहुत प्रिय था ! अन्तरविश्वविद्यालय  कुश्ती  प्रतियोगिता  में तो एक ही पहलवान जा सकता था  । सो उन्हें  विश्वविद्यालय कोच की राय माननी पड़ी।  अब तीनों पहलवानों को आपस में कुश्ती कराकर सर्वश्रेष्ठ का चयन करना  था  । डाँगे साहब ने  पहलवानों को सूचित किया कि  शाम छह बजे उनको  चयन हेतु कालेज अखाड़े पर पहुँचना  था  । उन्होंने  हरकेश और  दिनेश कुमार पहलवान को  चयनित पहलवान हेतु  बाजार से किट का  प्रबंध करने और दोपहर का खाना बाजार में ही खाकर  शाम को समय से चयन हेतु  कालेज के अखाड़े पर उपलब्ध होने का निर्देश दिया और  दो हजार का नोट हरकेश पहलवान को आवश्यक प्रबंध हेतु  पकड़ा दिया।  दोनों पहलवानों को बाँछें खिल गईं।  ग्रामीण पृष्ठभूमि के दोनों पहलवान  मिठाई,  केले,  चीकू और मन पसंद दोपहर का  भोजन कर और  सस्ती  सी किट लेकर  ऊँघते-सुस्ताते  बड़ी मुश्किल से साढ़े छह बजे कालेज अखाड़े पर पहुँचे। 

                  डाँगे साहब तो पहले से  ही तैयार थे । उन्होंने  दोनों का वजन कराया  जो  नब्बे किलोग्राम  से काफी  अधिक था  । अत: उनका  पहलवान  बलवान सिंह  ही सही वजन का निकला।  और, वही अन्तरविश्वविद्यालय कुश्ती प्रतियोगिता  ही चुन लिया गया। 

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