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"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-70 में प्रस्तुत हुई रचनाओं का संकलन

श्रद्धेय सुधीजनो !

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-70, जोकि दिनांक 13 अगस्त 2016 को समाप्त हुआ, के दौरान प्रस्तुत एवं स्वीकृत हुई रचनाओं को संकलित कर प्रस्तुत किया जा रहा है.

इस बार के आयोजन का विषय था – "रक्षाबंधन".

 

पूरा प्रयास किया गया है, कि रचनाकारों की स्वीकृत रचनाएँ सम्मिलित हो जायँ. इसके बावज़ूद किन्हीं की स्वीकृत रचना प्रस्तुत होने से रह गयी हो तो वे अवश्य सूचित करेंगे.

 

सादर

मिथिलेश वामनकर

मंच संचालक

(सदस्य कार्यकारिणी)

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1.आदरणीया डॉ. प्राची सिंह जी

गीत

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सावन आया, मुण्डेरी पर सुन कागा की काँव।

प्यार सँजोए बहना आई फिर वीरा के गाँव।

 

सौंधी सौंधी मुस्कानों में

मीठी मीठी दुआ पिरोए,

नेह भरे नयनों में जबतब

रोकर हँस दे हँसकर रोए,

अपनेपन की दस्तक पर वो दौड़ी नंगे पाँव। प्यार सँजोए...

 

रेशम की डोरी में बाँधे

बचपन की अनगिन यादों को,

पावनता से भर दे वो तो

अनबोले सारे वादों को,

नेह नहीं बदलेगा अपना बदली चाहे ठाँव। प्यार सँजोए...

 

टेड़ी-मेड़ी राहें सबकी

कभी उजेरी कभी अँधेरी,

कोई ठोकर खा जाए तो

सम्बल में हो कभी न देरी,

जाने कौन समय कब खेले किससे कैसे दाँव? प्यार सँजोए...

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2. आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी

कुकुभ छंद आधारित प्रस्तुति

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बड़ी बहन हो या छोटी हो, याद हमेशा करती है।

कब आएगा रक्षा बंधन, दिन गिनते ना थकती है॥

 

एक दिवस होती है राखी, उत्सव है ये सावन का।

विवाहिता या बहन कुँवारी, राह सुबह से तकती है॥

 

साथ बढ़े, खेले बचपन में, प्यार बहन करती जादा।

सदा सुखी हो मेरे भैया, यही दुवा बस करती है॥

 

पास रहे या दूर बड़ा ही, प्यारा है दिल का रिश्ता।

इक दूजे के कुशल क्षेम की, चिंता हर पल रहती है॥

 

आते हैं यमराज बरस में, पास बहन यमुनाजी के।

इन दोनों की अमर कहानी, बहनें अकसर कहती हैं ॥

 

भरा भरा घर आँगन लगता, साथ बहन जब होती हैं।

चुप रहती ना रहने देती, सदा चहकती रहती हैं॥

 

कैसा प्यारा बंधन है ये, रंग बिरंगे धागों का।

टूट नहीं सकता ये रिश्ता, जब तक साँसें चलती हैं॥

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3. आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी

खुश रेशमी लड़ियाँ (अतुकांत)

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दुकानों में सजी

इतराती इठलाती

सुन्दर रेशमी लड़ियाँ

आज  खुश हैं I

 

कुछ ने पिरोया है

भारी भरकम ताम झाम 

तो कुछ हल्की सस्ती,

तारे सितारों में मस्त कोई

कोई हल्की  रेशमी छुअन मेंI

 

लहराती  चहचहाती  रेशमी  लड़ियाँ

सोचती हैं कि

आज दिन उनका है

बाज़ार  घर यहाँ  वहाँ

हर तरफ छाई जो हैं

 

अल्हड़  बेफिक्र  रेशमी लड़ियाँ

नहीं सोचतीं  

कि कल कहाँ होंगी , कैसी होंगीं

दबी कुचली  तार तार 

या सहेजी हुई,

उन्मुक्त स्वतन्त्र  निर्भय

या निर्भया I

 

भोली पगली रेशमी लड़ियाँ

ख़ुशी से लोटे जा रही हैं

पूजा के थाल में

अक्षत रोली के साथI

 

आस विश्वास से भरी  रेशमी लड़ियाँ

सुन रही हैं अच्छी बातें, 

बातें रक्षा, सम्मान और बंधन  की

खुश हैं कि  दिन उनका है  

या शायद खुश हैं कि

कम से कम आज तो दिन उनका है 

क्या सच में ?

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4. आदरणीय ब्रजेन्द्र नाथ मिश्रा जी

बहना के दिल में रहना

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भैया तुम जाओ दूर देश पर,
बहना के दिल में रहना।
तुम्हे न होगा याद मगर,
मेरे में मन में बसी हुई हैं,
बचपन की यादों की छाया।
धींगा मस्ती, दौड़ा दौड़ी,
गलती करना, फिर दुहराना,
पापा के डाँट के डर से
माँ के पल्लू में छुप जाना।
छत पर जाना, पतंग उड़ाना,
पतंग अगर काट जाए तो,
एक नया फिर पतंग बनाना।


साथ लिए बचपन की यादें,
मैं आ गई अपने घर जैसे,
एक पराये घर में,
यहाँ नहीं वह धींगा मस्ती,
नहीं वहां का मस्तनापन,
मर्यादाओं में बाँध दी गई,
पाना नहीं मगर फिर भी
देना है, बस देना है,
सबको अपना अपनापन।

मैं भी लेकर बैठ गई 
तुझे सुनाने अपनी कहानी।
दुखी नहीं होना तुम सुनकर
मैं सुख से हूँ, हरी भरी हूँ,
कहीं नहीं है वीरानी।


एक मेरी, बस विनती मेरी
माँ पापा की उम्र हो गई,
उनके संघर्षो की कहानी
नई आई भाभी से कहना,
कैसे वे फांके करके भी
हमें दे सके राह नई
जीने को अपना सपना।
उनको कोई क्लेश नहीं हो
हम सब उन्हें विश्वास दिला दें।
जी तो नहीं सके वे जीवन
मर तो सकें चैन से, सुख से,
उनको यह अहसास करा दें।
इन्ही भावों को धागों में पिरोकर
भेज रही हूँ  मैं ये राखी।
रोड़ी को माथे पे लगाकर,
बांध कलाई पर ये राखी,
याद कर लेना इस बहना को।
मन में कोई बात न रखना
भले बसे हो दूर देश पर,
बहना के दिल में रहना।
बहना के दिल में रहना।

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5. आदरणीय कालीप्रसाद मंडल जी

छंद मुक्त

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रिमझिम रिमझिम बरस रहा है कजरारे सावन

मनाए त्यौहार भाई बहन, नाम है राखी बंधन |

 

भाई के हाथ पर बहन बाँधी, रेशम का नाज़ुक धागा

जीवन भर करेगा रक्षा, किया बहन से भाई ने वादा |

तिलक लगाई मिठाई खिलाई, दुआ किया दीर्घायु का

जन्म से जुडा है पावन रिश्ता, भाई और बहनों का |

प्रेम से मनाते घर वाले, भाई बहन का यह मिलन

पवित्र प्रेम का बंधन है यह, रहता है याद आजीवन |

 

रिमझिम रिमझिम बरस रहा है कजरारे सावन

मनाए त्यौहार भाई बहन, नाम है राखी बंधन |

 

सावन में आती बाज़ार में, रंग विरंगे अनेक राखी

सावन पूर्णिमा में ही बहन, भाई को बाँधती है राखी |

जरी-गोटा, रेशम धागा औ, सीपी मोती, कुंदन चन्दन

है सब ये राखी की सज्जा, हर लेती है भाई का मन |

 

रिमझिम रिमझिम बरस रहा है कजरारे सावन

मनाए त्यौहार भाई बहन, नाम है राखी बंधन |

 

नई राखियाँ बन जाती हैं, हर बाज़ार की शोभा

बैट्समैन मोगली टेडीबियर, बार्बी डॉल की आभा |

 

लक्षी गणेश की पूजा होती, माँ बनाती स्वादिष्ट व्यंजन

ख़ुशी की आसूँ टपकती है, याद आती है बचपन |

 

रिमझिम रिमझिम बरस रहा है कजरारे सावन

मनाए त्यौहार भाई बहन, नाम है राखी बंधन |

 

द्वितीय प्रस्तुति- हाइकू 

=================

रक्षा बंधन

प्यार भाई बहन

स्नेह मिलन |

 

प्यार के नाम

करते बलिदान

भाई बहन |

 

बचपन था

लड़ता झगड़ता

प्यार सच्चा था |

 

कच्ची उम्र थी

रेशम की डोरी थी

गाँठ शक्त थी |

 

स्मृति लेकर

आता है हर बार

राखी त्यौहार |

 

रूठे भाई को

मनाती थी बहन

स्नेह बंधन |

 

बड़ी भग्नी का

प्यार ज्यों है माता का

करूँ नमन |

 

दुआ करती

भाई जीये शताब्दी

हें भगवान !

 

लड़ाई करे

हम झगडा करे

प्यार से रहे |

 

जीवन यही

सुख शांति भी यही

त्यौहार रहे |

 

मनाओ ख़ुशी

बांधो भाई को राखी

रक्षा प्रण की |

 

अनेक साक्षी

इतिहास गवाही

राखी-शक्ति की |

 

निरपेक्ष हो

सर्व धर्म में राखी

बांधे भाई को |

 

हिन्दू मुस्लिम

बौद्ध सीख ईशाई

सभी मनाई |

 

शाह हुमायूँ

राखी भाई बना था

कर्नावती का |

 

किसी को अब

भाई-बहन प्यार

नहीं इन्कार |

 

अभिनन्दन !

है शुभ कामनाएं 

भ्राता-भग्नी को |

 

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6. आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी

रक्षा-बंधन (अतुकांत)

===========================

रक्षा-बंधन ,

रक्षा का विश्वास ,

एक आस्था ,

स्व-जनित ,

पारस्परिक विकसित ,

निरंतर पल्लवित ,

एक आस्था।

 

बन्दूक भय देती है, और

सुरक्षा का अहसास भी।

बात सिर्फ इतनी सी है

कि वह किन हाथों में है।

विश्वास हाथों का है ,

बन्दूक में नहीं कहीं ,

कोई आस्था.

 

रक्षा का बंधन

कोई बंधन नहीं

एक आज़ादी है ,

स्वतंत्रता की ,

स्वच्छंदता की ,

सुरक्षित उन्मुक्तता की ,

एक दृढ़ विश्वास ,

एक आस्था।

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7. आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी

ग़ज़ल 
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रक्षा बंधन सिर्फ धागों का नहीं तहवार है। 
इसके धागों में निहां भाई बहन का प्यार है।

 

रक्षा बंधन को बंधा के राखी अपने हाथ में 
खुद बहन से भाई करता हिफ़्ज़ का इक़रार है।

 

देखिये तो रक्षा बंधन का करम ऐ दोस्तो 
भाई को होता बहन के चेहरे का दीदार है।

 

आ गया फिर रक्षा बंधन ऐसा होता है गुमां 
हाथ में राखी किसी के और किसी के हार है।

 

सिर्फ वक़अत रक्षा बंधन की उसी से पूछिये 
जिसका बिन भाई बहन के अपना इक घरबार है।

 

रक्षा बंधन को न देखे रास्ता यूँ भाई का 
जा न पायी है बहन शायद बहुत बीमार है।

 

ख़ास इक तहवार है यह रक्षा बंधन प्यार का 
इस हकीकत से हमें तस्दीक़ कब इन्कार है।

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8. आदरणीय गिरिराज भंडारी जी

विषय आधारित अतुकांत

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परम्परायें उत्सव देती हैं

उत्सव, आत्मीय जनों से मेल मिलाप के मौके

और आत्मीय मिलन, देते हैं

नयी ऊर्जा

 

प्रेम थोपा नहीं जा सकता

स्वीकार किया जाता है

बड़प्पन थोपा नही जाता, स्वीकार किया जाता है

छोटों के द्वारा

वैसे ही ज़िम्मेदारी थोपीं नहीं जा सकती

हृदय से स्वीकार की जाती है

 

तभी पूरी होतीं हैं ज़िम्मेदारियाँ

स्वाभाविकता से

और रहता है रिश्तों में एक स्वाभाविक बहाव

 

फिर ऐसा क्यूँ न हो ?

भाई बाँधे बहना को रक्षासूत्र

और कहे ..

मैं उठाऊँगा तेरी तमाम ज़िम्मेदारी

स्वीकार करता हूँ रक्षा का भार,  मैं खुद

बिन मांगे , बिना शर्त

 

अगर इनकार करूँ तो दिखा देना ये रक्षासूत्र, याद दिलाने के लिये 

मेरी स्वीकारोक्ति , मेरा वचन

 

क्योंकि ज़िम्मेदारी मैने स्वयं उठाई थी

थोपी नहीं थी तूने

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9. आदरणीय डॉ. टी. आर. शुक्ल जी

कच्चा धागा (अतुकांत)
=============================

संरक्षित रखने, 
पवित्रता,
पारिवारिक संबंधों की।
सुसंस्कृत कच्चा धागा,
कमर कस आगे आया।
देखते ही रह गये उसके आत्मबल को,
लौह रेशे।


अपनी नैतिकता के सहारे
वह जीर्ण निर्जीव,
लेता रहा लोहा, सदियों से।
उन बलिष्ठ सजीवों से।


पर,
काल के व्याल से विषाक्त नैतिकता
बेहोश पड़ी है एक कोने में।
देर नहीं लगती अब,
अपनों को पराया होने में।


पारिवारिक संबंधों की औपचारिकता से ऊब,
अब , घर से बाहर निकलते ही
हो जाते हैं विखंडित बंधन।
दिखता है केवल उन्मुक्त स्वच्छंद जीवन।


बाहर और भीतर अपनत्व का
तारतम्य बनाने में ,
हम होते जा रहे हैं कितने कृपण !
बंधन, लोहे के हों या सोने के, 
तोड़ डालें उन सबको
पर कमजोर क्यों करें प्रेम का ये अटूट बंधन ?

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10. आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी

रक्षाबंधन

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एक बार राजा बलि ने

किया यज्ञ अनुष्ठान ।

पूर्ण करने को उसे

लगा दी अपनी जान ।

दानवेन्द्र के यज्ञ सौ

ले रहे पूर्णाकार ।

स्वर्ग प्राप्त करने की

इच्छा हुई अपार ।

हिला सिंहासन इन्द्र का

विष्णु लिए पुकार ।

संकट हरने देवों का

लिया वामनावतार ।

ब्राह्मण वेश धारण कर

हरि पहुंचे बलि दरबार ।

तीन पग भूमि दान दो

बस इतनी दरकार ।

गुरु शुक्र पहचान गए

माया अपरम्पार ।

दानवेन्द्र सचेत हों

ये विष्णु अवतार ।

नहीं फिरे फिर वचन से

भूमि कर दी दान ।

प्रथम स्वर्ग दूजा पृथ्वी

तीजा सिर पे मान ।

तीजा पग सिर रखते ही

बलि पहुंचे पाताल ।

भक्तिबल से प्रसन्न प्रभु

बन गए द्वारपाल ।

भगवान के रसातल जाने से

लक्ष्मी हुई परेशान ।

बैकुंठ सूना-सूना लगे

कैसे कटे वरदान ।

लक्ष्मी जी को नारद ने

बताया एक उपाय ।

दानवेन्द्र को राखी बाँध

भाई लियो बनाय ।

उपहार स्वरूप लक्ष्मी ने

लिये भगवान पाय ।

उस दिन से ये सारा जग

रक्षाबंधन मनाय ।

भाई बहन के प्यार का

अजब है ये त्योहार ।

सावन मास की पूर्णिमा को

आता है हर बार ।

बहन भाई को राखी बांधे

भाई प्यार लुटाए ।

अनुपम छवि उन लम्हों की

वर्णन करी न जाए ।

चहकते चमन के

चमकते हुए सितारे ।

कोंपल से कोमल

तृष्णा से न्यारे ।

चाँदनी सी चंचल बहना

भाई जिनके उजियारे ।

बंधवा रहे हैं आज राखी

नन्हें-नन्हें प्यारे-प्यारे ।

 

रक्षाबंधन- कुकुभ छन्द (द्वितीय प्रस्तुति)
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खूब बरसी बहारे सावन, भादों की हुई तयारी।
सावन की आज पूणम आई, चमकेगा चाँद अटारी।
कलाई सूनी ना रहेगी, महकेगी ये फुलवारी।
राखी लेकर दर पे आई, भगवती बहना हमारी।1।

रानी कर्मवती मंदर में, जब समाचार यह पाया।
दुश्मन की सेना ने घेरा, महलों पे संकट आया।
रेशम का एक धागा लेकर, तभी रक्षासूत्र बनाया।
दूत के हाथ गुप्त रूप से, पास हुमायूं भिजवाया।2।

चला छोड़कर कुरूक्षेत्र को, वीर हुमायूं अलबेला।
मान राखी का रखन खातिर, सौ सौ से लड़ा अकेला।
अनगिनत ने जान गंवाई, भूले सब जान झमेला।
जीत गया वो वीर बहादुर, काटा बहन का दुहेला।3।

रक्षाबंधन पर्व है आया, कह रही चाची व ताई।
रंग बिरंगी सुन्दर राखी, हर भाई को मन भाई।
हरी बैंगनी लाल गुलाबी, सब लच्छेदार बनाई।
गाथा अजब भाई बहन की, जो कही बरनी न जाई।4।

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11. आदरणीया कल्पना भट्ट जी

रक्षा बन्धन
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रक्षा सूत्र में
बंधे हुए
भाई बहन
कच्चे धागों
की लड़ियाँ
बाज़ारों में
घर घर में
मिठाईयों की
टोकरियाँ ।
हर माथे पर
शोभायमान तिलक
हर बहन की आस
भाई की कलाई पर
बंधे उसके प्यार
का प्रतीक ।
पर यह कौन
निर्भया और ऐसी
अनगिनित बहने
भैंट चढीं
भाइयों की प्रीत
क्यों कम हुई
सखा ,मित्र
भाई ,पति
हर रिश्ता बंधा हुआ
एक रक्षा सूत्र में ।
काश एक और
बने रक्षा बंधन

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12. आदरणीय रवि शुक्ल जी

विषय आधारित प्रस्तुति

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पापा के इस घर में बहना 
तेरा भी तो हिस्सा है
मेरी यादो में बचपन का 
ताज़ा हर इक किस्सा है

 

घर बेशक छोटा है लेकिन
मिल कर इसमें रह लेंगे 
तेरी बाते सुन लेंगे कुछ 
अपने मन की कह लेंगे

 

तेरे हाथ किये हैं पीले
फर्ज निभाया जीवन का 
वरना तो तुलसी का पौधा 
अब भी है तू आँगन का

 

तेरी भाभी भी इक घर की
बेटी बहन कभी थी पर 
सब कुछ उसने अर्पण करके 
बना दिया इस घर को घर

 

उसी तरह तू भी अपनेपन
की गंगा की धार बने 
पीहर और पिया के घर में
खुशियों का आधार बने

 

राखी के इस पावन दिन पर
रोली अक्षत ले आना
सदा तुम्हारा स्वागत बहना
जब चाहो तुम आ जाना

 

सदा मिले आशीष सभी का 
खुशियों की हर डगर लगे 
तुझ पर आँच न आये कोई 
रवि भैया की उमर लगे

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13.आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी

विषय आधारित प्रस्तुति

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देखो अपना देश निराला

यहाँ उत्सवों की है माला

रक्षा बँधन उत्सव इक आता

आज उसी की बात बताता

दानव दल की मारा मारी

देवों संग युद्ध था भारी

इंद्र डरे संकट को देखे

हल कोई कब उनके लेखे

मन्त्र शक्ति से था जो जागा

इन्द्राणी लायी वो धागा

बाँधा उसको इंद्र कलाई

जो लड़ जीते पूर्ण लड़ाई

श्रावण की पूणम वह दिन था

रक्षा सूत्र बाँधा जिस दिन था

 

जब राजा बलि गर्व भरे थे

ईश्वर वामन रूप धरे थे

राजा ने संकल्प लिया था

भूमि तीन पग दान किया था

ईश्वर ने अद्भुत की माया

मही स्वर्ग दो पग में आया

तीजा पग सर पर रखवाया

बलि पाताल चले तब भाया

राजा बलि जब वहाँ गए थे

भगवन खुदके साथ लिए थे

माँ लक्ष्मी तब पड़ी अकेली

नारद जी से बुझी पहेली

 

बहन बनीं बलि भाई माना

उसे कलाई धागा ताना

इक उपहार तभी मांग लिया

हरि जी को अपने साथ लिया

मुँह बोला भाई चन्दन था

अनुपम सा यह इक बन्धन था

श्रावण की पूणम वह दिन था

बलि को भी बाँधा जिस दिन था

शायद तब से सभी मनाते

भाई राखी हैं बँधवाते

कुमकुम टीका बहन लगाएँ

भाई पर सब वारी जाएँ

 

रण में जब लड़ने जाते थे

रक्षक वे तो बँधवाते थे

रानी ही बाँधा करती थी

राजाओं पर जो मरती थी

रक्षा को जो बँध जाता है

रक्षा बन्धन कहलाता है

 

द्वितीय प्रस्तुति

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भाई अच्छे तब कहलाते

घर से बाहर भी बहनें हैं
इतना ही तुमको समझाऊँ
उनको याद करूँ जैसे ही
तुमको ना अपराधी पाऊँ
भ्रातृ भाव को यूँ दर्शाते।

मान करे जो हर लड़की का
बहना उसकी इज्जत पाती
लखकर ऐसे कर्म वीर के
वह फूली ना सदा समाती
रक्षा का वे अर्थ बताते।

बना समाज शत्रु नारी का
सब ओर उन्हीं की अनदेखी
बस राखी त्यौहार मनाएं
आपस की ही देखादेखी
करें दिखावा धन गंवाते।

चाहत चित की है अब ऐसी
रक्षा को सब धर्म बनाएँ
बहनों का मान करें रक्षित
कसम सभी ऐसी ही खाएँ
कन्या-आदर मन में लाते।

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14. आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी

विषय आधारित प्रस्तुति

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मुआफ़ करना सलमा बाजी (दीदी), अबकी भी मुश्किल आना,
पंडित जी के घर हो आना, तुम अपनी रस्म निभाना।

राखी, धागे की रस्मों से, ऊपर जो उठते रहते,
खरे, ख़ान के घर हो आना, बहना बहना जो कहते।

पंडित जी ने दुःख में साधा, दूर यहाँ हम जब रहते,
खरे योग से पेंशन चालू, कष्ट, भ्रष्ट सबको सहते।

गुजर गये दूल्हा भाई भी, बीमारी से लड़-लड़ कर,
दोस्त सभी धर्मों के मिलकर, साधें तुमको बढ़-चढ़ कर।

बेरोज़गार ठहरे हम तो, मुश्किल कुछ भी कर पाना,
भ्राताओं का संकट समझो, तुम रूठ कभी मत जाना।

शुक्र रहा तूने पढ़-लिख कर, नौकरी अभी संभाली,
बिटिया को भी ख़ूब पढ़ा कर, कर शिक्षा से रखवाली।

हर दिन रक्षाबंधन तेरा, शिक्षा और हुनर से हो,
भैया तो अब हर मज़हब का, नसीब हर दिन तुम्हें हो।

 

दूसरी प्रस्तुति :
=================
भैया मेरे तुमने सीखे, राखी के गुण सारे,
सालों तुमने सुख ही बांटे, बनकर रक्षक हमारे।


भैया मेरे तुमने जाने, चुप्पी के सब कारण,
बहनों के भी मन को पढ़कर, संकल्प किये धारण।


भैया मेरे तुमने देखे, अबला के दुःख सारे,
तुमने ही तो हम में रोपे, सबला के गुण सारे।


भैया मेरे तुमने सींची, निर्धनजन की कुटिया,
अनपढ़ बहनों को पढ़वाकर, थामी डूबती लुटिया।


भैया मेरे फिर से देखो, रक्षा बंधन आया,
सबके सपनों का भैया, आँखों में दिखलाया।

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15. आदरणीया राहिला जी

राखी का त्यौहार
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लाया खुशियाँ उमंग अपार,
खट्टी-मीठी सी मनुहार ।
भाई बहिन का पावन पर्व,
आया राखी का त्यौहार।।
रंग-बिरंगे नाजुक धागे,
प्रेम- प्रीत के मोती लागे ।
अटूट बंधन गहरा प्यार,
आया राखी का त्यौहार ।।
भाई बहिन की आँख का तारा ,
बहिना जैसे चाँद सितारा।
ईश्वर का अनुपम उपहार ,
आया राखी का त्यौहार।।
हल्दी कुमकुम संग मिठाई,
बहना थाली सजा के लायी।
सुंदर राखी ,फूलों का हार ,
आया राखी का त्यौहार।।
आओ सूनी कलाई सजा दूँ,
भैया तोहे तिलक लगा दूँ।
देना पड़ेगा फिर उपहार,
आया राखी का त्यौहार।।

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16. आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी

बहन क्या राखी बाँधे ! (नवगीत)
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अर्थ रहा अब क्या राखी का 
बहनें रहीं कराह 
सुनी सहोदर की करतूतें 
घुट-घुट भरती आह.. 

बहन क्या राखी बाँधे ! 

हम हैं संबल परिवारों की 
घर-चौखट की लाज 
लेकिन भाई उच्छृंखल क्यों 
पूछ रही है आज 
क्यों उसके बस दिखने भर से 
सखियाँ बदलें राह.. 
बहन क्या राखी बाँधे ? 

सजी थाल की अक्षत-रोरी, 
रेशम-धागा मौन 
पूछ रही हैं सखी-सहेली 
यह घर में नर कौन !
गली-मुहल्लों, सड़क-चौक से 
मिल जाती है थाह 
बहन क्या राखी बाँधे ! 

एक उदर के जाये दोनों 
रही गोद भी एक 
उत्पाती क्यों हुआ सहोदर 
भाव लिये अतिरेक 
गन्दी सोच, घिनौनी भाषा 
तिर्यक अगर निग़ाह.. 
बहन क्या राखी बाँधे ! 

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17. आदरणीय सतीश मापतपुरी जी

विषय आधारित प्रस्तुति

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सूत का बंधन मोल ना कोई .

बहना सा अनमोल ना कोई .

 

बहन भुजा पर बाँधे राखी,

माथे तिलक लगाये .

माँगे दुआएं मेरी उमर भी ,

भाई को लग जाये .

भाई - बहन के इस रिश्ते का ,

दूजा जोड़ ना कोई .

बहना सा अनमोल ना कोई .

 

सोच रहा है मन ही मन में,

नेग में क्या दे भाई .

दिया जा सके जो, कुदरत ने ,

वो शै नहीं बनाई.

तेरे स्नेह् के धन के सम्मुख,

भाई धनी ना कोई .

बहना सा अनमोल ना कोई .

 

बेटी - बहन पराये घर की ,

सोच बदल गए सारे .

भाई - बहन हैं एक सहोदर ,

एक चन्दा - एक तारे .

बहन यूँ आते - जाते रहना ,

मैका पराया घर ना कोई .

बहना सा अनमोल ना कोई  .

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18. आदरणीय अभिषेक कुमार अम्बर जी

रक्षाबंधन (गीत)
========================================
हाथों में लेकर के थाली
रखकर उसमें कुमकुम मौली।
आस लगा कर आई है
बहना राखी लाई है।

विश्वास को अपने बना के धागा,
,बड़ी आस से तुमको बांधा।
जीवन भर मेरी रक्षा करना,
दो मुझको बस एक ये वादा।
बहना को खुश रखे हमेशा
वही तो सच्चा भाई है।
बहना राखी लाई है।

जिस घर न हो कोई बहना,
फिर कैसे आये सुख चैना।
बेटी घर की हलचल होती,
अम्बर का बस है ये कहना।
आँगन का वह फूल है बहना
जिसने फ़िज़ा महकाई है।
बहना राखी लाई है।

--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

19. आदरणीय सुशील सरना जी

धागों में संसार (अतुकांत)

===========================

कितनी सारी खुशियाँ हैं 
कितना सारा प्यार 
सिमटा हुआ है 
भाई बहन का 
धागों में संसार 
है कलाई का आग्रह 
बहना की मनुहार 
बहना की है राखी में 
छिपा भाई का प्यार 
रंग बिरंगे धागों का 
ये है पावन त्यौहार 
कच्चे धागों में पक्का है 
भाई बहन का प्यार 
प्यार ही मज़हब 
इस धागे का 
इसमें जीत न हार 
भाई से अपनी ज़िद मनवाना 
बहना का अधिकार 
अपने भाई की खुशियाँ चाहे 
बहना सौ सौ बार 
राखी के इक धागे ने 
बाँध लिया संसार

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20. आदरणीया नयना आरती कानिटकर

हायकू

===========================

पर्व निराला
पवित्र प्यार का
रक्षाबंधन

नेह मिलन 
प्यार का ये बंधन
रक्षाबंधन

रेशम डोर
लायी है बहनाई
भाई के द्वार

हे अनमोल
राखी का यह तार
प्यार दुलार

रक्षा का सुत्र
दुआओं की बौछार
प्रेम अपार

*******************************************************************************

समाप्त 

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वाह्ह्ह्!आदरणीय मिथिलेश जी महोत्सव के सफल संचालन की हार्दिक बधाई एवं त्वरित संकलन प्रस्तुति पर बहुत् बहुत् आभार।

हार्दिक आभार 

आयोजन के प्रश्चात रचनाओं के संकलन का शीघ्र प्रस्तुत होना उत्साह का द्योतक है. हार्दिक धन्यवाद आदरणीय 

हार्दिक आभार सर.

वाह!इतनी शीघ्र संकलन
जितना उत्साह फीता काटने का होता है, संकलन यदि साथ साथ तैयार किया जाए तो उतना ही उत्साह 12 बजते ही संकलन प्रस्तुति का भी होता है।
ये ऊर्जा मंच पर निरंतर बनी रहे।।
सादर

हार्दिक धन्यवाद. जी प्रयास यही रहता है. सादर 

सराहनीय , प्रसंशनीय , बधाई, शुभकामनाएं , प्रिय मिथिलेश वामनकर जी।

हार्दिक धन्यवाद आपका 

वाह! आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी इतना जल्दी संकलन रचनाकारों के मन में उत्साह भर देता है। सफल आयोजन के लिए हार्दिक बधाई मान्यवर।

हार्दिक धन्यवाद आपका 

आदरनीय मंच संचालक महोदय , शीघ्र संकलन उपलब्ध कराने के लिये आपका आभार । एक और सफल आयोजन के लिये समस्त प्रतिभागियों को हार्दिक बधाइयाँ ।

आदरनीय मेरी रचना को निम्न से प्रतिस्थापित  करने की कृपा करें --

परम्परायें उत्सव देती हैं

उत्सव, आत्मीय जनों से मेल मिलाप के मौके

और आत्मीय मिलन, देते हैं

नयी ऊर्जा

 

प्रेम थोपा नहीं जा सकता

स्वीकार किया जाता है

बड़प्पन थोपा नही जाता, स्वीकार किया जाता है

छोटों के द्वारा

वैसे ही ज़िम्मेदारी थोपीं नहीं जा सकती

हृदय से स्वीकार की जाती है

 

तभी पूरी होतीं हैं ज़िम्मेदारियाँ

स्वाभाविकता से

और रहता है रिश्तों में एक स्वाभाविक बहाव

 

फिर ऐसा क्यूँ न हो ?

भाई बाँधे बहना को रक्षासूत्र

और कहे ..

मैं उठाऊँगा तेरी तमाम ज़िम्मेदारी

स्वीकार करता हूँ रक्षा का भार,  मैं खुद

बिन मांगे , बिना शर्त

 

अगर इनकार करूँ तो दिखा देना ये रक्षासूत्र, याद दिलाने के लिये 

मेरी स्वीकारोक्ति , मेरा वचन

 

क्योंकि ज़िम्मेदारी मैने स्वयं उठाई थी

थोपी नहीं थी तूने

*********************     
सादर निवेदन

हार्दिक धन्यवाद आपका. प्रतिस्थापित हो गई प्रस्तुति. सादर 

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