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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - 52

परम आत्मीय स्वजन,

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 52 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह हिन्दुस्तान के मशहूर शायर उस्ताद-ए-मोहतरम जनाब एहतराम इस्लाम साहब की एक बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल से लिया गया है| पेश है मिसरा-ए-तरह

 

"फिजाएं नूर की चादर बिछाती हैं दिवाली में"

1222  1222  1222  1222

मुफाईलुन  मुफाईलुन   मुफाईलुन   मुफाईलुन  

(बह्रे हजज़ मुसम्मन सालिम)

रदीफ़ :- हैं दिवाली में 
काफिया :- आती (बिछाती, उठाती, मुस्कुराती आदि )

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 24 अक्टूबर दिन शुक्रवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 25 अक्टूबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन से पूर्व किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | ग़ज़लों में संशोधन संकलन आने के बाद भी संभव है | सदस्य गण ध्यान रखें कि संशोधन एक सुविधा की तरह है न कि उनका अधिकार ।

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो  24 अक्टूबर दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
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वाह भाई वाह, अच्छी ग़ज़ल कही है शिज्जु भाई, सभी अशआर पसंद आये, अंतिम शेर दिल में गहरा उतर जाता है, दाद कुबूल करें।

bahut khoob bahut Umdaaaa aur murassa gazal janaab Shijju Shakooor sahab 

आदरणीय शिज्जू जी,

उम्दा गज़ल के लिये बधाइयाँ.........

चरागों, रौशनी की वुसअतों के दरमियाँ बेबस

कहीं तारीकियाँ भी छटपटाती हैं दिवाली में..........

इस अश'आर के लिये खासतौर से दाद कबूल फरमायें...........

सजी दहलीज कंदीलें बुलाती हैं दिवाली में

कतारें नवप्रभावर्ती रिझाती हैं दिवाली में

 

अमा की रात में कैसे लिखे वो छंद पूनम के

हुनर ये दीपमालाएं सिखाती  हैं दिवाली में

 

भुलाकर रिश्तों के बंधन डटें हैं सीमा पर भाई

तो बहनें  चैन की बंसी बजाती हैं दिवाली में

 

जले दीपक से दीपक तो खिले है खील सा हर मन

तो गलियाँ गाँव की हमको  बुलाती हैं दिवाली में

 

दिये को ओट में रखकर नयन के ज्योतिवर्धन को

ख़ुशी से माँ मेरी काजल बनाती हैं दिवाली में

जला कब दीप है बोलो निरी माटी की यह रचना

उजाले बातियाँ स्नेहिल सजाती हैं दिवाली में

 

अकेले भी करो कोशिश अगर तम को हराने की

सफलताएँ सगुन-मंगल मनाती हैं दिवाली में

 

हठीली आग रख सिर पर निभाती है कसम कोई

फिज़ाएं नूर की चादर बिछाती हैं दिवाली में 

 

अनूठा दृश्य रचते हैं कतारों में सजे दीपक

विभाएं शुद्ध अनुशासन दिखाती है दिवाली में

 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

आदरणीय वंदना जी क्या खूब अशआर कहे हैं, 

जले दीपक से दीपक तो खिले है खील सा हर मन
तो गलियाँ गाँव की हमको  बुलाती हैं दिवाली में


दिये को ओट में रखकर नयन के ज्योतिवर्धन को

ख़ुशी से माँ मेरी काजल बनाती हैं दिवाली में

दाद हाजिर है....

आपकी सराहना से मुझे हौसला मिला आदरणीय भुवन सर 

वाह वाह !! बहुत खूब वंदना जी। इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए मेरी झार्दिक बधाई।     

यह ओबीओ परिवारके आप वरिष्ठजनों  का समर्थन और मार्गदर्शन है जो छोटा सा प्रयास कर पाती हूँ आदरणीय आपका तहे दिल से शुक्रिया 

आ. वंदना जी इस खूबसूरत ग़ज़ल हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें. 

अनूठा दृश्य रचते हैं कतारों में सजे दीपक

विभाएं शुद्ध अनुशासन दिखाती है दिवाली में     अनूठा शेर 

बहुत२ आभार आदरणीय सत्यनारायण सर 

सुंदर 

बहुत२ आभार आदरणीय 

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