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"ओ बी ओ लाइव महा-उत्सव" अंक - 33(Now closed with 1275 Replies)

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन । 

 

पिछले 32 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलमआज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है.

इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - 33 

विषय - "प्रकृति और मानव"

आयोजन की अवधि-  शनिवार 06 जुलाई 2013 से सोमवार 08 जुलाई 2013 तक

 
तो आइए मित्रो, उठायें अपनी कलम और दिए हुए विषय को दे डालें एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति | बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य-समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए ।आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित पद्य-रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं । साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं ।


उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक

शास्त्रीय-छंद  (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना : ओबीओ लाईव महा-उत्सव के 33 में सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टियाँ अर्थात प्रति दिन एक ही दे सकेंगे, ध्यान रहे प्रति दिन एक, न कि एक ही दिन में तीन । नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी ।

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 06 जुलाई दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा) 

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.


महा उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 
मंच संचालिका 
डॉo प्राची सिंह 
(सदस्य प्रबंधन टीम)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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Replies to This Discussion

अति सुन्दर रचना हेतु बधाई स्वीकारें आदरणीय रविकर सर..

आदरणीय रविकर जी...बहुत ही बढ़िया कुण्डलिया है...हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये

आदरणीय..रविकर जी, बहुत सुंदर रचना हार्दिक बधाई
आदरणीय रविकर जी! आप तो सम्भववाद से नववनियतिवाद की तरफ चले आये। फिल्हाल नवनियतिवाद में आपका स्वागत है।

उगे शीश पर श्रृंग, बढ़ा ले इच्छा-आकृति ।

रुके सृजन-निर्माण, तोड़ दे हरदम नव-कृति ॥

बहुत खूब.........

सादर.

आदरणीय रविकर जी, शानदार कुण्डलिया छंद के लिये बधाइयाँ..................

पाया है सब कुछ यहाँ , किन्तु नहीं संतोष

सदा  जुगत  में  है  भिड़ा ,  कैसे बाढ़े कोष

कैसे   बाढ़े  कोष  ,  लोभ यह   कैसे   छूटे

मानव दानव बना, प्रकृति  को  हरदम लूटे

अति कर पाता दण्ड, कोष का होय सफाया

मानव थोड़ा सोच,यहाँ क्या कुछ नहिं पाया ||

आदरणीय सर जी बहुत ही सुन्दर कुण्डलिया छंद वाह क्या कहने, हार्दिक बधाई स्वीकारें.

 बहुत बहुत आभार गुणी जन बहुत बहुत आभार -
बेटी का कंप्यूटर हमको मिलता तनिक उधार-
पढता आकर के दो चार-
पर  प्रत्युत्तर  व्यवहार-
हमारा आज शिथिल है-
पर आभारी यह दिल है-
सादर-

आदरणीय रविकर जी सादर,

      सटीक और सार्थक कन्दालिया छंद रचा है आपने आदरणीय बधाई स्वीकार करें.

बहुत खूब रविकर जी

बेहद सुन्दर और सारगर्भित कुंडली, बधाई स्वीकारें आदरणीय रविकर जी. 

ले विध्वंश सकार, स्वार्थ के वशीभूत हो ।

भू पर हाहाकार, काल का कुटिल दूत हो

उगे शीश पर श्रृंग, बढ़ा ले इच्छा-आकृति ।

रुके सृजन-निर्माण, तोड़ दे हरदम नव-कृति...,, बहुत ही उत्तम .. बधाई आपको

 

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