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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-163

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 163 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है |

इस बार का मिसरा 'जान एलिया' साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है |

"मैंने भी एक शख़्स का क़र्ज़ अदा नहीं किया"
मुफ़तइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़तइलुन मुफ़ाइलुन
2112 1212 2112 1212

बह्र-ए-रजज़ मुसम्मन मतव्वी मख़्बून
नोट:-इस बह्र के दूसरे और चौथे रुक्न में एक साकिन(यानी अतिरिक्त लघु) लेने की इजाज़त है ।

रदीफ़ --नहीं किया

काफिया :-अलिफ़ का (आ स्वर) वफ़ा,गिला,क्या,कहा,जुदा आदि

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी । मुशायरे की शुरुआत दिनांक 26 जनवरी दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 27 जनवरी दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक...

मंच संचालक

जनाब समर कबीर 

(वरिष्ठ सदस्य)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आदरणीय अमीर जी

बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए

सादर

/ज़िक्र ए जहान..../ वाह खूब शेर हुआ, आदरणीया ‌‌‌ऋचा जी निरंतर मेहनत से लेखनी निखरती जाएगी। बहरहाल इस प्रस्तुत  के लिए बधाई 

आदरणीय शकूर जी 

बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए

सादर

जी आ अच्छी ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार करें बेहद उम्दा सुधार के साथ

आदरणीय Aazi जी

बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए

सादर

आदरणीय ऋचा जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है, बहुत बधाई।

सुझाव अच्छे आयें हैं और आपने उनका अच्छा निरूपण किया है।

पुनः बधाई

आदरणीय अजय जी

बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए

सादर

आदरणीय ऋचा यादव जी आदाब,

ग़ज़ल के अच्छे प्रयास पर बधाई स्वीकार करें।

आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी

की इस्लाह पर ग़ौर-ओ-फ़िक्र करें। शुभकामनाएँ।

आदरणीय अमित जी नमस्कार

बहुत शुक्रिया हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपका,, ग़ज़ल सुधार का प्रयास किया है कृपया देखियेगा

सादर

वा'दा भुला गये वो या # वा'दा वफ़ा नहीं किया 

हम ने तकल्लुफ़ात में # उनसे गिला नहीं किया 

आशिक़-ए-ना-मुराद हूँ # ग़म भी क़ुबूल हैं मुझे 

मैंने किसी को प्यार में # अपना ख़ुदा नहीं किया 

आया पसंद आपका # ये मुझे तर्ज़-ए-गुफ़्तुगू

ऐसे ही दिल तो मैंने भी # ये हदिया नहीं किया  

 तन्हा न तू ही ऐसा है # मैं भी तो ज़ेर-ए-बार हूँ

"मैंने भी एक शख़्स का # क़र्ज़ अदा नहीं किया"

पाने को आपकी झलक # रहते थे बे-क़रार हम 

ख़ाली महब्बतों ही का # तो दा'वा नहीं किया 

उससे ख़ुशी की कोई भी # कैसे रखें उमीद हम

जिसने कभी किसी को भी # रूह-फ़ज़ा नहीं किया 

  

बैठे हो झंडा गाड़ के # जैसे कोई 'अमीर'-ए-जंग 

पहले किसी ने क्या कभी # ख़ैमा बपा नहीं किया

 

"मौलिक व अप्रकाशित" 

आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी आदाब

अच्छी ग़ज़ल के लिए दाद और बधाई स्वीकार करें।

शुभकामनाएँ।।

आदरणीय अमीर जी नमस्कार

बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार कीजिये

गिरह ज़बरदस्त है

सादर

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"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
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"बारिश का भय त्याग, साथ प्रियतम के जाओ। वाहन का सुख छोड़, एक छतरी में आओ॥//..बहुत सुन्दर..हार्दिक…"
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"चित्र पर आपके सभी छंद बहुत मोहक और चित्रानुरूप हैॅ। हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेश कल्याण जी।"
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