For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-158

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 158 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है |

इस बार का मिसरा जनाब डॉ. बशीर बद्र साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है |

'ज़बाँ सब समझते हैं जज़्बात की'

फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल
122 122 122 12
बह्र-ए-मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम महज़ूफ़

रदीफ़ :- की

क़ाफ़िया:-(आत की तुक)
हालात, रात, बात, ख़ैरात, सौग़ात आदि...

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी । मुशायरे की शुरुआत दिनांक 25 अगस्त दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 26 अगस्त दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 25 अगस्त दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक...

मंच संचालक

जनाब समर कबीर 

(वरिष्ठ सदस्य)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 3029

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आ. Dataram Methani ji, आपने मेरी  ग़ज़ल प्रस्तुति की संस्तुति कर उत्साहवर्द्धन किया,  आपका आभारी हूँ !

आदरणीय चेतन प्रकाश जी, नमस्कार

ग़ज़ल की शुभकामनाएं।

आ.Manjeet Kaur ji, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद कि आपने शुभकामना व्यक्त की !

आदरणीय चेतन जी। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास की बधाई स्वीकार करें।

आदरणीय संजय शुक्ला साहब,  ग़ज़ल का प्रयास बेहतर हो सके, कुछ  सुझावों की अपेक्षा आपसे ज़रूर  थी  । फिर भी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद !

आदरणीय चेतन जी नमस्कार

ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार कीजिए

सादर

आदाब,  Richa Yadav ji, अशेष आभार आपका!

ग़ज़ल पर अच्छा प्रयास रहा आदरणीय चेतन जी 

आदरणीय Chetan Prakash जी आदाब।

आप प्रयास करें की कम से कम बह्र में ग़लती न हो

ताकि बाक़ी बारीकियों पर  चर्चा हो सके

और इस्लाह करने वाले को भी आनंद आए।

मिसरों का भाव भी साफ़ स्पष्ट नहीं होता।

कृपया बहुत सारा अध्ययन और अभ्यास करें। 

 

जो हद हो गई है वो जज़्बात की

रक़ीबों// ने×हमें आ//ज सौगा//त की

( सानी बेबह्र है )

 

यहाँ दुश्मनों से हमीं जा भिड़े

उन्होंने ही जब रार ख़ैरात की

( ख़ैरात की जगह 'शुरूआत की' से कुछ वाक्य बनाएँ )

 

कसक बन रही वस्ल उससे कहीं

जो बर्बाद हमने वो सौगात की

( भाव समझ नहीं आया )

 

सुलगता रहा वो अकेला ज़मीं

जो उसने// कभी फिर//× तन्हा रा// त की

( सानी बेबह्र है )

 

ये जो थरथराते तुम्हारे वो होठ

"जबाँ सब समझते हैं जज़्बात की"

( भाव स्पष्ट नहीं हुआ )

 

ये तनहाई शहरों बुरा रोग है

सँभल जाओ चेतन सुनो तात की

( तन्हाई शहरों?? )

सुझाव - महब्बत मरज़ है बुरा जान लो

        सँभल जाओ चेतन सुनो तात की

              //शुभकामनाएँ//

आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा है। किन्तु लगता है यह आपने जल्दबाजी में पोस्ट की है। थोड़ा समय देने से यह निखर सकती है। फिलहाल हार्दिक बधाई।
इनहें यूँ करके देखिएगा । सादर.....
/
भला दुश्मनों से न हम क्यों भिड़ें
उन्होंने ही जब रार ख़ैरात की

शिकायत उसे हम से यह रह गयी
शबे ग़म में हमने न कुछ बात की
//

न की क़द्र उस ने मेरी बात की
ज़रूरत है अब उस को इक लात की /1

हुई जंग आपस में जिन्नात की
बस इतनी कहानी थी मेवात की /2

मेरे आंसुओं को छुपा लेती है
वो चेहरे पे बौछार बरसात की /3

हर इलज़ाम हम ने किया है क़ुबूूल
दुहाई भी क्या देते हालात की /4

न नजरें मिलें गुफ़्तुगू भी न हो
अजब शर्त रक्खी मुलाक़ात की /5

चिराग़ों के हाफ़िज़ तो सब बन गये
किसी ने न की फ़िक्र ज़ुल्मात की /6

बरस माह सदियों से अनबन हुई
जो हम ने शिकायत की लम्हात की /7

मिलेगी न अब मुफ़्त में मय तुम्हे
हुई ख़त्म मीयाद ख़ैरात की /8

थे पहरे पे जब ऊँट हाथी वज़ीर
तो प्यादे ने फिर किस तरह मात की /9

मेरा ख़त किसी से भी पढ़वाइये
"ज़बाँ सब समझते हैं जज़्बात की" /10

रहे 'तल्ख़' क्यों शहर में यूँ डरा
यहाँ क्या हुकूमत है जिन्नात की /11

(मौलिक एवम अप्रकाशित)

आदरणीय संजय शुक्ला जी, तरही मिसरे पर सुंदर गज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
yesterday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service