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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-145

विषय - "दिवास्वप्न"

आयोजन अवधि- 12 नवम्बर 2022, दिन शनिवार से 13 नवम्बर 2022, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.

ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 12 नवम्बर 2022, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें

मंच संचालक

ई. गणेश जी बाग़ी 
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम परिवार

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स्वागतम

सादर अभिवादन।

दोहे
***
दिवास्वप्न  की  चादरें, जो  ओढ़े दिन-रात।
उसकी जग में है नहीं, बनती बिगड़ी बात।१।
*
रोटी, कपड़ा, गेह का, दिवास्वप्न नित बेच।
नेता निर्धन को कहें, सकल देश हित बेच।२।
*
अपनो के सिर रख दिया, भले लोक ने ताज।
दिवास्वप्न स्वाधीनता, फिर भी हमको आज।३।
*
दिवास्वप्न है देश  का, तब तक सही विकास
नेताओं की जब तलक, बची लोभ की प्यास।४।
*
दिवास्वप्न की भीख पा , जनता हुई निहाल।
नेताओं  के  कंठ  में, डाल  रही  जयमाल।५।
*
दिवास्वप्न मत देखना, नेताओं की ओट।
उनके तो हर रूप में, भरा हुआ है खोट।६।
*
अभिलाषायें  शेष  जो, दिवास्वप्न है नाम।
पूरित जो होती रहीं, बन जाती सुख धाम।७।
*
मौलिक/अप्रकाशित

दिवास्वप्न......एक ग़ज़ल 

122     122     122    122

बह्र ए मुतकारिब मुसम्मन सालिम

कवायद उन्होंने वो की थी वफ़ा में

हैं करते जो तामीर  मंज़िल हवा में

दुराग्रह से वो मुक्त कब हो सके हैं 

दिवास्वप्न ये है किया सब वफ़ा में

हमेशा की ताबीर सबकी अहं वश

न सोचा पड़ेंगे कभी खुद करबला में

किनारे ग़लत है वो साहिल सही है

है अंदाज़ उनका गज़ब सुन कला है

कि फुरसत उन्हें सोचते वो मिथक हैं

समझते  हैं खुद को वो ग़ालिब ख़ला में

वो करते हैं सेवा तो हिन्दी मगर दिल 

है उर्दू ही उनके कहीं मन पढ़ा में 

वो अवतार नफ़रत मुहब्बत ग़ज़ल की

नहीं  जानते हैं  वो  मरक़ज बला है 

कि बेज़ार जीवन हुआ हादसा है

बड़ी बेमज़ा ज़िन्दगी फलसफ़ा में

ख़ुदारा बचाए हमें मनपढ़ों से 

घटाकर जो 'चेतन' रखें सच जरा में

मौलिक व अप्रकाशित 

आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर गजल का प्रयास अच्छा हुआ है। हार्दिक बधाई।

आज जब दुनिया में

चारों तरफ

हाहाकार

मचा हुआ है।

आग के

बरसने से

दुनिया जल रही है

तब

हम

यह दिवास्वप्न 

पाल रहे हैं

कि

एक ऐसा समय आयेगा जब

सब खुशहाल होंगे?

मौलिक अप्रकाशित

आ. भाई विद्यावाचस्पति जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।

रचना की प्रशंसा करके मेरा उत्साह वर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।

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आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

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