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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-139

विषय - "मेरी आवाज़ सुनो"

आयोजन अवधि- 11 जून 2022, दिन शनिवार से 12 जून 2022, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.

ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 11 जून 2022, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालक
ई. गणेश जी बाग़ी 
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
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स्वागतम

गीत
*******
मेरी आवाज सुनो, यूँ न नफरत को चुनो।।
*
कब तलक देश मेरा, यूँ ही जलता ही रहे
जाति -धर्मों का बुरा, खेल चलता ही रहे
अब इसे रोक भी दो, नयी बोतों को गुनो
मेरी आवाज सुनो, यूँ न नफरत को चुनो।।
*
ये वतन एक रहे, सारा जग गाथा कहे
न दिल में घाव लगे, अब न यूँ खून बहे
एक दूजे के लिए, अब नहीं जाल बुनो।।
मेरी आवाज सुनो, यूँ न नफरत को चुनो।।
*
होने को एक सदी, काटी जो दुख से लदी
नेकी को छोड़ मिली, दोनों को सिर्फ वदी
सोचना हल है उठो, बैठ मत सर को धुनो।।
मेरी आवाज सुनो, यूँ न नफरत को चुनो।।
*
सारे ही लड़ते हुए, पीड़ी दर पीड़ी जिए
आग का राग तजो, नौनिहालों के लिए
जी सकें हर्ष से वो, सारी घृणा को लुनो
मेरी आवाज सुनो, यूँ न नफरत को चुनो।।
*
मौलिक/अप्रकाशित

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन,समरसता का संदेश देती हुई उत्तम रचना के लिए दिल से बधाई

आ. भाई छोटेलाल जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।

हाल फिलहाल के हालातों पर चिंता जताती हुई प्रभावशाली प्रस्तुती। हार्दिक बधाई आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी

आ. प्रतिभा बहन , रचना पर उपस्थिति व प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।

आ. भाई लक्ष्मण सिंह धामी  'मुसाफिर '  अच्छा गीत  रचा, आप ने  ! टंकण  की कुछ  त्रुटियाँ कदाचित  भूल बशर रह गई  हैं , जैसे, बातों के स्थान पर,  बोतों,  बदी की जगह, 'वदो', तो के स्थान पर,  'लुनो' ।

एक छोटी ख़बर
_________

वो एक छोटी सी ख़बर थी

 छोटी क्योंकि उसमे 
न कोई बलवा था न जलवा
 न शोर न नारे 
धर्म मज़हब भी नहीं था उसमें 
कौन देखेगा उसे 
ख़बर थी खदान में छः मजदूर 
दब कर मर गये बस्स
न घड़ियाली आँसू लिये 
कोई नेता पहुँचा 
न मुहँ में माइक घुसेड़ने 
कोई चैनल वाला 
न लापरवाह मालिकों को 
 सज़ा का एलान हुआ 
न जवाबदेही तय हुई
ऐसी हजारों  छोटी खबरें
उग आती हैं हर दिन
खुद को सुनाने के लिये
क्यों जनाब! क्यों सर खपायें 
इन नीरस  ख़बरों पर 
जब देखने दिखाने के लिये 
इतना कुछ है हर दिन
_____
मौलिक व अप्रकाशित

आदरणीया प्रतिभा पंडे जी सादर प्रणाम, बेहतरीन भावों से सराबोर सन्देशप्रद रचना के लिए बहुत बहुत बधाई

हार्दिक आभार आदरणीय डाॅ छोटेलाल सिंह जी

आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सारगर्भित रचना हुई है। हार्दिक बधाई।

हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी

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