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"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-131

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-131

विषय - "मुझे कुछ कहना है"

आयोजन अवधि- 11 सितम्बर 2021, दिन शनिवार से 12 सितम्बर 2021, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.

ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 11 सितम्बर 2021, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

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ई. गणेश जी बाग़ी 
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दोहे - (मुझे भी कुछ कहना है)

उलझन में मन खूब है, मिली आँख से आँख
कहना मुझको जो रहा, उड़ा  लगाकर पाँख।१।
*
मन में बातें हैं बहुत, कहने को फिर आज
कहते देती पर नहीं, जगत रीत की लाज।२।
*
राजा तू है  देश  का, नित  कह  ऊँचे बोल
बस मैं इतना ही कहूँ, कुछ सपने भी तोल।३।
*
गाँव  गली  में  भूख  है, खाली  है खलिहान
कहना मुझको है यही, दुख में बहुत किसान।४।
*
सुनते  नेता  सेठ  का, रखते  खूब खयाल
सेवक सा जिससे हुआ, यहाँ देश का हाल।५।
*
मैं  कहता  हूँ  नित  करो, बातों  की  बरसात
लेकिन जिससे दुख बढ़े, क्या कहनी वो बात।६।
*
जीवन में  रख  तू  तनिक, काँटों  से भी मेल
बात सीख यह फूल से, दुख में भी हँस खेल।७।
*
मौलिक /अप्रकाशित

नमस्कार, भाई लक्ष्मण सिंह मुसाफिर, अच्छे दोहे लिखे आपने ।किन्तु पहले दोहे के तीसरे चरण में कदाचित कहने के बजाय कहती लिख गये हैं। चौथे दोहे के प्रथम चरण( बात ) सुनते नेता सेठ की होना चाहिये सादर....

आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद। 

आप द्वारा इंगित दोनों दोहे त्रुटिरहित हैं। चौथे दोहे में "सुनते ' शब्द का सम्बंध नेता से नहीं है देखिएगा। सादर

जीवन में रख तू तनिक, काँटों से भी मेल
बात सीख यह फूल से, दुख में भी हँस खेल।७।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी , बहुत ही प्रेरक प्रस्तुति, बहुत बहुत बधाई, सादर।

आ. भाई विजय जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।

अति सुंदर सीख भरे दोहे आदरणीय लक्ष्मण धामी जी। हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति व सराहना के लिए धन्यवाद ।

क्या कहें , गंतव्य क्या है

————————

कहें भी
तो क्या कहें ?
कौन सुनता है ?
हरेक तो अपनी ही कहता है ,
कहता ही जाता है।
हरेक हर दूसरे को ज्ञान बांट रहा है ,
जैसे असीमित ,अनंत , अद्वितीय ,
ज्ञान है उसके पास
जो कभी समाप्त होगा ही नहीं।
इंटरनेट इस कार्य में सदैव तत्पर है ,
ज्ञान के प्रसारण में , सेकेंडों में ,
पर , होता भी कुछ नहीं ,
कहीं कुछ संभलता दीखता भी नहीं।
ऐसे में क्या कहें , किस से कहें ?
एक दौड़ है जैसे , सब भाग रहें हैं ,
एक पल भी रुके , किसी की सुनने के लिए
तो पीछे रह जायेंगे , हार जायेंगे।
मतलब ?
वहां नहीं पहुँच पाएंगे।
कहाँ नहीं पहुंच पाएंगे ?
वहीं जहां सब भागे जा रहें।
इसी ज्ञान को बाँट रहें हैं ,
इसी पर इतना इतरा रहें है.

मौलिक एवं अप्रकाशित

जीवन की भागमभाग पर सुंदर सृजन। वस्तुत: सभी भाग रहे बिना किसी विशेष उद्देश्य के। बहुत बहुत बधाई आपको।

आपका ह्रदय से आभार , सादर। क्या कहें , गंतव्य क्या है

आ. भाई विजय जी, सादर अभिवादन। सुन्दर प्रस्तुत हुई है । हार्दिक बधाई।

आपका ह्रदय से आभार , सादर। क्या कहें , गंतव्य क्या है

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