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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
प्रस्तुत है.....
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125
विषय : आत्मसम्मान 
अवधि : 30-08-2025 से 31-08-2025
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, 10-15 शब्द की टिप्पणी को 3-4 पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
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5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)

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विषय - आत्म सम्मान

शीर्षक - गहरी चोट

नीरज एक 14 वर्षीय बालक था। वह शहर के विख्यात वकील धर्म नारायण का सबसे छोटा बेटा था। अच्छे स्वभाव व सबसे छोटा होने के कारण वह घर में सबका प्यारा था। एक दिन सांयकाल जब उसके पिता कार लेकर घर लौटे तो उसने देखा कि उसके गैरेज में उसकी गली की आवारा कुतिया ने चार बच्चों को जन्म दिया है। उसने नीरज को आवाज लगाई और कहा कि ये क्या है? भगा इस कुतिया को। नीरज ने पिता का कहा कि पापा इस कुतिया ने बड़े प्यारे पिल्ले दिए है। सड़क पर ये मर जाते। इसलिए मैं इन्हें यहाँ लेकर आया। नवजात पिल्ले बड़े सुन्दर व मासूम है। अपना गैरेज तो काफी बड़ा है। उसके एक कोने में ये पड़े रहें तो क्या हर्ज है? कुछ दिनों में ये बड़े होकर अपने आप चले जायेंगे। साथ ही उसने एक पिल्ले की तरफ इशारा करते हुए कहा कि देखिये ये कितना प्यारा है। मैं इसे पालूंगा। आप कार को दूसरे कोने की तरफ लगा दीजिए। धर्म नारायण ने देखा तो उसे भी लगा कि वास्तव में सड़क पर तो सब पिल्ले मारे ही जायेंगे। अतः उसे भी लगा कि इस हालत में इनकों यहाँ से भगाना ठीक नहीं है। उसने नीरज की बात मान ली। कार पार्क कर उसने नीरज को कहा तू इन्हें यहाँ ले आया है तो अब इनकी सेवा भी तुझे ही करनी पड़ेगी। जा इनके लिए पानी का टब व दूध लाकर इन्हें पिला। धर्म नारायण की स्वीकृति से नीरज बड़ा खुश हुआ और वह कुतिया और पिल्लों की सेवा में लग गया।
अब वह सुबह शाम सबको दूध लाकर पिलाता था और अपने प्यारे पिल्ले को गोद में उठा कर प्यार दुलार करता था। उसने उसका नाम जानू रख दिया और इसी नाम से वह उसे पुकारा करता था। वह पिल्ला भी समझ गया था कि जब जानू की आवाज आती है तो उसे पुकारा जाता है। अत: वह पूंछ हिलाता नीरज के पास आजाता था। कुछ दिन कुतिया व उसके सब पिल्ले वहाँ रहे। फिर धीरे धीरे सब इधर उधर चले जाते थे पर जानू नीरज के घर के व गैरेज के आस पास ही रहता था।
एक दिन नीरज जैसे ही अपने पाले हुए कुत्ते को दूध पिलाने गया तो जानू ने दूध देखा पर पिया नहीं। गैरेज में रहने के बजाय वो सड़क पर धूप में सो रहा था। नीरज ने ये बात अपने पिता को बताई। उसने अपने बचपन के दोस्त जो अब जानवरों का डाक्टर था, उसे फोन किया तो उसने कहा मैं कम्पाउंडर को भेज देता हूँ वह देख लेगा। कम्पांउडर आया और उसने कुत्ते को धूप में सोते व उसकी सांस लेने के तरीके को देखा तो वह समझ गया कि उसे निमोनिया हुआ है। उसने नीरज को कहा कि इसे इंजेक्शन लगाना पड़ेगा। तुम उसे गोदी में लेकर पकड़ो मैं इंजेक्शन लगाता हूँ। नीरज ने कुत्ते को प्यार जताते हुए गोदी में पकड़ा और कम्पांउडर ने उसे इंजेक्शन लगा दिया। इंजेक्शन के दर्द से जानू जोर से चीखा और नीरज गोद से उछल कर दूर खड़ा हो कर भौंकने लगा। जब उसका दर्द कम हुआ तो वह नीरज के घर से काफी दूर जाकर ज़मीन पर लेट गया। कम्पांउडर जाते जाते नीरज को कह गया कि इसे रोज शाम को एक दो अंडे खिलाना। इससे यह जल्दी ठीक हो जायेगा। नीरज का परिवार था शाकाहारी वह अंडे कैसे लाता और कैसे खिलाता? लेकिन थोड़ी देर में नीरज को ध्यान आया कि गली के नुक्कड़ पर रोज शाम को एक आदमी अंडे का ठेला लगाता है। बस वह शाम को उसे वहाँ ले जायेगा। इंजेक्शन से जानू को आराम मिला और वह लौट कर नीरज के घर आया। नीरज ने उसे दूध थोड़ा कम दिया तो कुत्ता पूंछ हिला कर दूध और देने की मांग करने लगा। नीरज ने उसको इशारा किया और वह नीरज के पीछे पीछे हो लिया। नीरज उसे अंडे वाले के यहाँ ले गया और अंडे वाले को कहा कि इसे एक अंडा खिला दो। अंडे वाले ने कुत्ते को देखा तो एक उबला हुआ अंडा काट कर टुकड़ों में कुत्ते के सामन फर्श पर रख दिए। कुत्ते जानू ने उसे मज़े से खाया और नीरंज के साथ लौट आया। अब यह क्रम दैनिक हो गया। कुत्ते को दूध के बाद एक के बजाय दो अंडे खिलाये जाने लगे। नीरज भी खुश तो उसका जानू भी खुश रहने लगा। अब वह बड़ा भी हो गया था और घर के सब सदस्यों से घुल मिल गया था। अब दूध तो किसी भी घर के सदस्य द्वारा देने पर पी लेता था लेकिन अंडा खिलानें के लिए नीरज के अलावा कोई साथ नहीं जाता था।
अब जानू बड़ा हो चुका था और दिन भर इधर उधर घूमता फिरता रहता था लेकिन शाम होते ही व नीरज के घर आ जाता था। एक दिन अपनी आदत के मुताबिक कुत्ता समय पर आ गया लेकिन उस दिन किसी काम में नीरज उलझा हुआ था और उसका मूढ़ भी कुछ खराब था। अतः उसका ध्यान जानू पर गया ही नहीं तो जानू उसके पास जाकर उसका पांव चाटने लगा। नीरज का ध्यान भंग हो गया और जानू से पांव छुड़ाने के लिए उसने अपना पांव जोर से हिलाया तो जानू उछल कर दूर जा गिरा। ऐसा लगा मानो नीरज ने गुस्से में आकर लात मारी हो। नीरज ने भी महसूस किया कि उससे गलती हो गई। वह अपनी गलती सुधारता उसके पहले ही उसके मुंह से निकल गया कि इतनी जल्दी क्यों आ गया? मेरे माथे कर्ज मांगता है क्या जो वसूली करने आगया। जीवन में पहली बार ऐसा व्यवहार देख कर जानू रोने की आवाज निकालते हुआ जाने लगा तो नीरज को ध्यान आया कि कि उसने ये क्या किया। अतः संभलते हुए उसने कहा जानू सॉरी। कुछ देर बाद आना फिर दूध व अंडा दोनों दिलाऊंगा। जानू चला गया। काफी देर हो गई पर जानू नहीं आया तो नीरज उसे ढूंढने निकला। गली के एक कोने में वह बैठा दिखाई दिया। उसकी आंखूं से आंसू बहते हुए साफ दिख रहे थे। नीरज ने उसे प्रेम से आवज दी ...जानू तो जानू उठ खड़ा हुआ पर वह नीरज के पास आने के बजाय दूसरी ओर चला गया। नीरज उसे पुकारता रहा पर उसने मुड़ कर भी नीरज को नहीं देखा। नीरज निराश होकर घर लौट आया। उसने सोचा कि वो कल आ जायेगा तो वह उसको खूब प्यार करेगा और अपने किए की माफी मांगेगा।
दिन पर दिन बीतते गए पर जानू लौट कर नहीं आया। नीरज ने उसको खूब इधर उधर ढूंढा पर वह कहीं नजर नहीं आया। थक हार कर वह चुपचाप हो गया। उसने किसी से इस बात जिक्र तक नहीं किया। एक दिन नीरज के पिता ने अचानक नीरज से पूछा बेटा आजकल तेरा जानू नजर नहीं आता, क्या बात है? नीरज ने दर्द भरे लहजे में सारी बात बता दी। बात बताने के बाद वह सिसक कर रोने लगा। सारी बात सुनने के बाद उसके पिता ने कहा कि बेटे तुमने जो किया लगता है उससे तेरे जानू के दिल को गहरी चोट लगी है। प्यार भरे व्यवहार के बाद ऐसा व्यवहार बहुत दुखदाई होता है। उसे जो तुम पर विश्वास था वह उसका आत्म विश्वास था जिस पर गहरी चोट हुई है। इस चोट के बाद मुझे लगता है कि अब वो कभी भी लौट कर तेरे पास नहीं आयेगा। मनुष्य हो या पशु पक्षी आत्म सम्मान पर गहरी चोट बर्दाश्त नहीं कर सकते।
- दयाराम मेठानी
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

सादर नमस्कार। हार्दिक स्वागत आदरणीय दयाराम मेठानी साहिब।  आज की महत्वपूर्ण विषय पर गोष्ठी का शुभारंभ करने हेतु हार्दिक बधाई। बहुत ही प्यारी भावपूर्ण और शिक्षाप्रद रचना है। कथा लेखन में भी आपकी सधी हुई लेखनी की अनुभूति हुई। बढ़िया कथानक और कथ्य है। लेकिन यह कथानक है कहानी का, लघुकथा का नहीं। बढ़िया कहानी रची गई है। 

इसमें से मुख्य एक विसंगति का पल लेकर छोटी सी लघुकथा भी रची जा सकती है प्रत्येक अनुच्छेद की मुख्य भाव/बात दो-तीन वाक्यों में कुछ कहे और कुछ अनकहे में समेटते हुए। 

 इस रचना में कृपया एक जगह 'मूढ' के स्थान पर 'मूड' कर दीजियेगा और  पहले अनुच्छेद में पॉंचवे वाक्य में /नीरज ने पिता का कहा/ के स्थान पर/नीरज ने पिता से कहा/ कर दीजियेगा।

शीर्षक बहुत बढ़िया और सटीक है। सादर।

आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि यह कहानी लगती है लघु कथा नहीं। ये बात सही है। मेने लिखी तो लघु कथा ही थी लेकिन लिखते लिखते वह काफी बड़ी हो गई तो फिर उसमें कांट छांट कर छोटी करने का प्रयास किया किंतु जब में इससे और छोटा नहीं कर पाया तो यही पोस्ट कर दी। मैं ये जानता हूँ कि लघु कथा में शब्दों की एक सीमा होती है किंतु मुझे शब्द कैसे गिने जाते है, यह नहीं आता। यदि आप इस दिशा में मार्ग दर्शन करें तो शायद कुछ बेहतर कर पाऊं। सादर।

शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु कथा । जबकि हम यहॉं अभ्यास कर रहे हैं एक भिन्न विधा का जिसका अंग्रेज़ी और हिंदी दोनों में एक शब्द का ही नाम है लघुकथा। इसमें शब्द गिनने की आवश्यकता नहीं है। यह विधा एक पल की विसंगति पर एकांगी रचना होती है। विस्तार से इसके मानकों और तत्वों को समझने हेतु हम सब आदरणीय सर श्री योगराज प्रभाकर जी का प्रसिद्ध आलेख पढ़ते व समझते हैं:  'लघुकथा विधा: तेवर और कलेवर' 

इसी वेबसाइट पर पढ़ियेगा। सादर।

कौन है कसौटी पर? (लघुकथा):
विकासशील देश का लोकतंत्र अपने संविधान को छाती से लगाये देश के कौने-कौने में भ्रमण कर जनता से रूबरू हो रहा था। जनता कभी सुखी, तो कभी दुखी; कभी दिग्भ्रमित, तो कभी अंधी; कभी देशभक्त, तो कभी अंधभक्त होती नज़र आ रही थी उसे।
एक जगह जनता ने लोकतंत्र से कहा,  "ऐसे लोकतंत्र का क्या मतलब जहॉं लोग ज़मीर बेचकर नाम और दाम कमा रहे हों! देश को विकसित बनाने के नाम पर खेल पर खेल खेलते जा रहे हों!"
यह सुनकर लोकतंत्र ने अपनी ऑंखें फाड़ लीं। सिर झुकाकर वह जनता से बोला, "मुझे सब पता है कि क्या, क्यों और कैसे हो रहा है! लेकिन देश में मैं पूरी दमख़म से मौजूद हूॅं तुम में से उन बहुतों के दम पर जो मेरे ज़मीर, बल और देश की ज़मीनी हक़ीक़त को जानते और समझते हैं। मेरा मान ही उनका मान है न!"
(मौलिक व अप्रकाशित)

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